नफरत की राजनीति के कांटे बरअक्स सद्भाव के फूल

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18 जून। शुक्रवार के विरोध प्रदर्शन के बाद समाज के विभिन्न वर्गों के बीच शांति और सद्भाव की कुछ प्रेरक कहानियों पर एक नजर डालते हैं। पुलिस और लोगों के बीच गुलाब का आदान-प्रदान हिंसा की अस्वीकृति का हृदय को गदगद करनेवाला एक उदाहरण हाल ही में लखनऊ में टीलेवाली मस्जिद के पास देखा गया। 17 जून को पूरे उत्तर प्रदेश में पुलिस बल हाई अलर्ट पर थे। वे 3 और 10 जून के विरोध प्रदर्शनों को दोहराने की अनुमति देने के लिए तैयार नहीं थे। लखनऊ पुलिस ने नमाजियों को गुलाब बाँटकर चीजों को अलग तरह से पेश किया। जबकि गाजियाबाद पुलिस ने लगभग 5,000 कर्मियों को तैनात किया।

दोपहर में मस्जिद की ओर जानेवाले श्रद्धालु पुलिस को शांति की निशानी के रूप में फूल बाँटते देख सुखद आश्चर्यचकित रह गए। सद्भावना दिखाने के लिए श्रद्धालुओं ने भी नमाज के बाद अधिकारियों को फूल भेंट किये। लोगों से बातचीत करते हुए पुलिस प्रशासन को सुखद आश्चर्य हुआ। अहिंसक विरोध के प्रतीक के रूप में फूलों का उपयोग करने का विचार सबसे पहले कवि एलन गिन्सबर्ग ने अपने निबंध ‘हाउ टु मेक ए मार्च/स्पेक्टैकल’ में प्रस्तावित किया था। विचार यह था कि प्रदर्शनकारी, पुलिसकर्मियों, प्रेस, राजनेताओं, और नफरत और हिंसा के चेहरों पर प्यार और करुणा फैलाने के लिए ‘फूलों का गुलदस्ता’ दिया जाना चाहिए।

पुलवामा के मुसलमानों ने निभाए पुराने वादे

जबकि इलाहाबाद के कार्यकर्ता जावेद मोहम्मद के घर को अवैध रूप से ध्वस्त कर दिया गया था, शेष भारत भयभीत था, पुलवामा के मुसलमानों ने स्थानीय शिव मंदिर की रक्षा करना जारी रखा। एक निवासी ने ट्वीट किया, “मुसलमानों के प्रति ध्रुवीकरण और नफरत फैलाने और घाटी में अल्पसंख्यकों की हत्या के बीच सद्भाव का संदेश मेरे पैतृक जिले पुलवामा से आता है। पेयर में सदियों पुराना मंदिर सह-अस्तित्व की भावना के साथ, देखभाल करने वाले होने के गर्व के साथ, मुसलमानों द्वारा बनाए रखा जाता है।” आचन गाँव में यह वही मंदिर है जिसे 2019 में हिंदुओं और मुसलमानों ने एकसाथ बहाल किया था। गाँव से 15 किमी दूर सीआरपीएफ जवानों पर 14 फरवरी के हमले के कुछ दिनों बाद बहाली की गयी थी।

द ट्रिब्यून से बात करते हुए, औकाफ कमेटी के अध्यक्ष नज़ीर मीर ने कहा, कि लोग शांति और सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश देना चाहते हैं, जब दूसरी तरफ के लोग इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया पर युद्ध छेड़ने में लगे हुए हैं। समिति से स्थानीय पंडितों द्वारा जीर्णोद्धार और रखरखाव के लिए संपर्क किया गया था, जिसे मुसलमानों ने आज तक जारी रखा है। मीर ने द ट्रिब्यून को बताया, “हम यह बताना चाहते हैं कि मुस्लिम और कश्मीरी पंडित यहाँ पहले की तरह एकसाथ रहते हैं।”

विरोध के एक दिन बाद हिंसा की खबरें आयी थीं। मीडिया घरानों ने इलाहाबाद, रांची और अन्य शहरों में पथराव की निंदा की। इसी तरह, मुस्लिम समुदाय के प्रगतिशील समूहों ने भी 11 जून से कार्रवाई शुरू कर दी, जब बंगाल में एक मुस्लिम मौलवी ने शांति और सांप्रदायिक सद्भाव का आह्वान किया। इस बात पर जोर देते हुए, कि भारत सभी धर्मों के लोगों की मातृभूमि है, उन्होंने लोगों से शांतिपूर्ण रहने की अपील की। 15 जून को मुंबई के मीरा-भयंदर में हक फाउंडेशन द्वारा शांति के लिए यह आह्वान फिर से दोहराया गया। महिलाओं और युवाओं ने एक मूक विरोध के लिए एकसाथ आकर समुदाय को अराजक तत्वों और इसकी राजनीति का शिकार नहीं होने के लिए कहा। ये घटनाएं प्रभावशाली नहीं लग सकती हैं, लेकिन सामूहिक रूप से इस बात को उजागर करती हैं कि कैसे भारतीय नागरिक अपनी जगह पर शांति बनाए रखने के इच्छुक हैं।

(‘सबरंग इंडिया’ से साभार)


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