25 जुलाई। 24 जुलाई की शाम दुसाध भवन, गोलमुरी, जमशेदपुर में एक कन्वेन्शन अच्छी चर्चा और ठोस प्रस्ताव के साथ सम्पन्न हुआ। बेतहाशा बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, श्रम एवं संसाधनों की लूट, स्वास्थ्य एवं शिक्षा सुविधा को छीनने की साजिश के खिलाफ इस कन्वेन्शन का आयोजन साझा नागरिक मंच, डा. अम्बेडकर एससी एसटी ओबीसी माइनरिटी वेलफेयर समिति और पासवान समाज ने मिलकर किया था।
कार्यक्रम का संचालन सियाशरण शर्मा, रवीन्दर प्रसाद और जयचन्द प्रसाद ने किया। विषय प्रवेश डा. रामकवीन्द्र ने किया। सुजय राय ने एक विशेष वक्तव्य रखा। अंत में मंथन ने कन्वेन्शन का प्रस्ताव पेश किया। सहभागियों में से विनोद कुमार, सत्यम, संजय यादव, साहिर, अंकिता, शशांक शेखर, जगत, रूस्तम, दीपक रंजीत, स्वपन सरकार, बुद्धदेव करुआ, जनार्दन प्रसाद गोस्वामी, ब्रह्मदेव प्रसाद, बुबु , श्यामकिशोर, अवधेश कुमार, देवाशीष, तापस चट्टराज और डी एन एस आनन्द ने अपनी बात रखी।
वक्ताओं ने कई महत्त्वपूर्ण बातें कहीं। अनेक आर्थिक मुद्दों को चिन्हित किया गया। पूँजीपतियों की मुनाफे की भूख लगातार बढ़ती गयी है। औसत लाभ से बढ़ते हुए अधिकतम या असीमित लाभ तक पहुँच गयी है। 1% बेरोजगारी बढ़ने पर 2% जीडीपी घटता है। एक ही काम करनेवालों के बीच भी वेतन की बड़ी गैरबराबरी बनायी गयी है। ग्रामीण बेरोजगारी बढ़ने के पीछे मानसून की गड़बड़ी के साथ मनरेगा जैसी रोजगार योजनाओं का कमजोर होना भी है। प्रकृति की लूट से बने प्राकृतिक असंतुलन के कारण ही यूरोप गर्मी से जल रहा है। भारत का व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत में एम एस एम ई क्षेत्र सबसे ज्यादा लगभग 70% रोजगार देता है तब भी मोदी सरकार ने इस क्षेत्र में पैसा देना काफी कम कर दिया है। ज्यादा पैसा गतिशक्ति में लगाया जा रहा है जिसमें सबसे ज्यादा लाभ अदाणी को मिल रहा है। देश आज जिस स्थिति में है, अभूतपूर्व संकट आ सकता है। एक तिहाई आबादी के समक्ष भोजन का संकट खड़ा हो सकता है।
इस कन्वेन्शन के प्रस्ताव में महंगाई, बेरोजगारी, श्रमिकों की स्थिति, प्राकृतिक संसाधनों की लूट, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की बिक्री, सरकारी शिक्षा और चिकित्सा संस्थानों की उपेक्षा और निजी संस्थानों को प्रोत्साहन जैसे पक्षों का संक्षिप्त विवरण देने के बाद अभियान चलाने के लिए कुछ नारों या माँगों को चिन्हित किया गया है। इन मुद्दों पर चलनेवाली पहलकदमियों में दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग, महिला, ठेका मजदूर, भूमिहीन श्रमिक, छोटे किसान जैसे समूहों के नेतृत्व की विशेष जरूरत बतायी गयी। अवसरों के हर पहलू में पारंपरिक तौर वंचित लोगों के लिए आरक्षण और प्राथमिकता की अनिवार्यता मानी गयी। प्रस्ताव में यह कहा गया है कि इन मुद्दों पर अभियान के साथ ही लोकतंत्र की रक्षा तथा जाति एवं साम्प्रदायिकता के उन्मूलन दिशा में सक्रियता रखी जाएगी।
सघन मुहिम चलाने के लिए चिन्हित सूत्र इस प्रकार हैं –
# रोजगार हर नागरिक का मूल अधिकार और सरकार का प्राथमिक दायित्व है। सरकार सम्पूर्ण रोजगार का आधार बनाए। रोजगार न दे पाने पर हर बेरोजगार को मानवीय जीवन जीने लायक जीवन भत्ता दे।
# तमाम सरकारी रिक्तियों को आरक्षण प्रावधानों का सख्त पालन करते हुए तत्काल भरा जाय।
# जमाखोरी और मूल्यवृद्धि पर अंकुश हो।
# पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के तहत लाया जाय। जीवनावश्यक वस्तुओं पर शून्य या न्यूनतम टैक्स लगे।
# प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय जनता का निर्णायक अधिकार हो।
# सरकारी और अन्य सार्वजनिक संसाधनों और संस्थानों का विनिवेश और बिक्री बन्द हो। आवश्यक होने पर इनके संचालन की भाड़ेदारी या साझेदारी की वैकल्पिक व्यवस्था बनायी जाय।
# स्थायी प्रकृति के कार्यों में अस्थायी कर्मी रखना बन्द हो।
# छह घंटे की कार्य पाली हो ।
# श्रम कोडों को रद्द कर पुराने श्रम कानून बहाल हों।
# हर बीमार को आवश्यक चिकित्सा उपलब्ध कराने की गारंटीशुदा व्यवस्था बने। बेरोजगार और बीपीएल जन को मुफ्त चिकित्सा हासिल हो।
# हर जरूरतमंद को 12वीं तक की मुफ्त शिक्षा मिले।
# हर रोजगारशुदा व्यक्ति और व्यावसायिक उद्यम से आय और मुनाफे के निश्चित अनुपात में शिक्षा-स्वास्थ्य अंशदान लिया जाय।
# शिक्षा और स्वास्थ्य पर कुल सरकारी खर्च का न्यूनतम 20% आवंटन किया जाय।
# मूल्य, वेतन/ मजदूरी /आमदनी एवं मुनाफे पर न्यूनतम और अधिकतम का एक अनुपात तय हो।