28 जुलाई। केंद्र सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में बताया, कि पिछले दो साल में पुलिस कस्टडी में कुल 4,484 मौतें हुईं, जबकि 233 लोग एनकाउंटर में मारे गए। इनमें सबसे शीर्ष पर उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश हैं, जहाँ पुलिस हिरासत में सबसे ज्यादा मौतें दर्ज की गईं। वहीं माओवाद प्रभावित छत्तीसगढ़ और जम्मू-कश्मीर में एनकाउंर के कारण सबसे अधिक मौतें दर्ज की गई हैं। एनएचआरसी के आँकड़ों के अनुसार रिपोर्ट पेश की गई, जिसमें 1 अप्रैल, 2020 से 31 मार्च 2022 तक के आँकड़े पेश किए गए हैं।
इसमें कहा गया, कि 2020-21 के दौरान कुल 1,940 मौतें हुईं, जबकि 2021-22 में ऐसे 2,544 मामले दर्ज किए गए। 2020-21 में इस मामले में उत्तर प्रदेश शीर्ष पर था और इस दौरान 451 लोगों की मौतें हुईं। इसके बाद पश्चिम बंगाल में 185 और मध्य प्रदेश में 163 लोगों की मौत हुईं। 2021-22 में यूपी फिर से 501 मौतों के साथ सबसे ऊपर रहा, इसके बाद पश्चिम बंगाल 257 पर और एमपी 201 पर था।
2020-21 में पुलिस एनकाउंटर में 82 मौतें हुईं, जबकि 2021-22 में 151 मामले दर्ज किए गए। 2020-21 में सबसे अधिक पुलिस मुठभेड़ में मौतें माओवाद प्रभावित छत्तीसगढ़ में दर्ज की गईं, जबकि इस दौरान केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में पुलिस एनकाउंटर में 45 मौतें हुई हैं। मानव अधिकारों के मुद्दे पर मंत्रालय ने कहा, कि पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार राज्य के विषय हैं। यह मुख्य रूप से संबंधित राज्य सरकार की जिम्मेदारी है, कि वह नागरिकों के मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।
गौरतलब है कि पिछले पाँच साल में पुलिस हिरासत में मौत होने पर पुलिसवालों पर 192 केस हुए। 2017 में सबसे ज्यादा 62 केस हुए। केस तो दर्ज होते हैं, लेकिन चार्जशीट केवल 61 फीसदी मामलों में दर्ज हुई। इनमें से एक भी मामले में किसी पुलिसवाले को सजा नहीं हुई है। ऐसा नहीं है, कि ये सिर्फ पाँच साल के दौरान का ट्रेंड है। 2000 से 2018 तक की बात करें तो इन 18 सालों में 810 पुलिसवालों पर केस हुआ। 334 चार्जशीट हुई और सिर्फ 26 को सजा हुई।
बता दें, कि उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार आने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने क्राइम कंट्रोल के लिए पुलिस को एनकाउंटर की खुली छूट दी। योगी सरकार के ठोंको अभियान के चलते एनकाउंटर में यूपी शीर्ष पर है। हालांकि योगी राज में कई ऐसे एनकाउंटर हुए जिस पर सवाल भी उठाए गए। वहीं पुलिस हिरासत में मौत की बात करें तो इसमें भी योगी सरकार नंबर वन है। केंद्र सरकार द्वारा एनकाउंटर और पुलिस हिरासत में मौत को लेकर संसद में जो आँकड़े पेश किए गए उससे एक बार फिर उत्तर प्रदेश का पुलिस महकमा सवालों के कटघरे में खड़ा हो गया है।
पुलिस हिरासत में मौत होना ये एक काफी गंभीर मसला सरकार के लिए बनता जा रहा है। पुलिस हिरासत में अब तक जितनी भी मौतें हुई हैं उसमें तत्काल दोषी पुलिसकर्मियों के निलंबन किये गए हैं। सवाल यह है, कि पुलिसकर्मियों के निलंबन कर देने मात्र से ही इस समस्या का हल निकाला जा सकता है। अवकाशप्राप्त पुलिस उपाधीक्षक रामनाथ सिंह यादव का मानना है, कि पुलिस कस्टडी में किसी भी आरोपी की मौत हो जाना थाने की पुलिस की कार्यशैली पर एक बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है। उनका कहना है, कि अब थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने की जरूरत है ताकि इस तरह पुलिस कस्टडी में होने वाली मौतों का पर्दाफाश हो सके।
(MN News से साभार)
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