1. अपनी धरती
अपनी धरती अपना अंबर
हम इसके रखवाले
आजादी की सालगिरह पर
सौ-सौ सपने पाले।
ठहरे हम आजाद परिंदे
बांटें रोज उजाले
स्वर सरगम पर झूम उठें
मस्जिद और शिवाले।
साझा चूल्हा प्यार मोहब्बत
झूले प्रेम के बारे
साखी सबद रमैनी के रस
छकें खूब मतवाले।
हम बिस्मिल आजाद भगत के
बांचें रोज रिसाले
दीप से दीप जलाने के दिन
रौशन ख्याल निराले।
2. रिश्तों की धरोहर
होते हैं
माटी के खिलौने भी
अटूट रिश्तों के वारिस
जो टूटने के बावजूद
बने रहते हैं अटूट।
अगर जानना हो
खिलौनों से रिश्तों का राज़
तो फिर कागद के कोरे पन्नों पर
परिंदों की तरह
फुदकते नन्हों से पूछिए
जो बगैर कुछ बोले
आंखों की भाषा में
कह डालते हैं सब कुछ
जो कभी कभी
हो जाते हैं उदास
टूटे खिलौनों को
सीने से चिपकाए
बच्चे हमेशा
बचाए रखना चाहते हैं
रिश्तों की धरोहर।
3. है शिकायत
आजकल अपने
पुराने घाव गहरे हो गये हैं
कौन सुनता है यहां
सब लोग बहरे हो गये हैं।
हो गयीं बहरी दिशाएं
हर जगह प्रहरी लुटेरे हो गये हैं
आदमी की खाल ओढ़े भेड़िए
वक्त तो उनके सुनहरे हो गये हैं।
पुतलियों में रोशनी
किसको पता
सब ॲंधेरे के यहां पर हो गये हैं।
क्या मुनासिब है
यहां किसको पता
भेड़ियों की पांत के सब हो गये हैं।
हर जुबां खामोश तालेबंद सी
है शिकायत
लोग गूंगे हो गये हैं।
कौन सहलाये
यहां पर घाव किसका
हर किसी के हाथ लूले हो गये हैं।
4. बीते संदर्भ
बीते संदर्भों की बात याद आती है
ऑंधी-तूफानों की रात याद आती है।
जो चाहा जब चाहा धुन लिया
तानों और बानों में बुन लिया
धुनकी के तांतों की चोट याद आती है
ऑंधी-तूफानों की रात याद आती है।
बात-बात बातों में रह गयी
जहरीली एक नदी भीतर से बह गयी
डूब रहे सूरज की सांझ याद आती है
ऑंधी-तूफानों की रात याद आती है
बातों का एक जहर पी लिया
हर घाव सीने का ही लिया
घावों के टांकों की चोट याद आती है
ऑंधी-तूफानों की रात याद आती है।