5 अगस्त। वन संरक्षण अधिनियम 2022 में ग्रामसभा के अंतिम निर्णय के अधिकार को छीन लिये जाने पर देश भर के आदिवासी समाज में भारी आक्रोश है।
बुधवार को दिल्ली में जंतर मंतर पर अखिल भारतीय किसान मजदूर संगठन (एआईकेएमएस) ने वन संरक्षण कानून को तुरंत वापस लिये जाने के लिए धरना प्रदर्शन कर सरकार को ज्ञापन प्रेषित किया।
एआईकेएमएस के राष्ट्रीय अध्यक्ष वी. वेंकटरमैया ने कहा कि “जहां आरएसएस-बीजेपी पहली बार भारत के राष्ट्रपति के रूप में एक आदिवासी महिला के आगे बढ़ने का जश्न मना रहे हैं, वहीं उनकी केंद्र सरकार ने हमारे वनक्षेत्रों में रहनेवाले आदिवासियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के खिलाफ एक चौतरफा युद्ध शुरू कर दिया है।”
वक्ताओं ने कहा कि “अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम – 2006” के माध्यम से दिए गए वन अधिकार जल्द ही छीन लिए जाएंगे।”
एआईकेएमएस ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि 28 जून 2022 को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने वन संरक्षण अधिनियम-1980 के तहत बनाए गए वर्तमान वन संरक्षण नियमों में संशोधन करने के लिए ‘वन (संरक्षण) नियम–2022’ नाम से एक अधिसूचना जारी की है।
नए संशोधन मौजूदा वन संरक्षण नियमों की जगह लेंगे जो 2004, 2014 और 2017 में संशोधनों के बाद बनाए गए थे।
सत्तारूढ़ दल की संख्यात्मक ताकत को देखते हुए इसे किसी सार्थक बहस या चर्चा के बगैर ही इस मानसून सत्र में आसानी से पारित किया जा सकता है।
एक बार इन संशोधनों को मंजूरी मिलने के बाद हमारे लाखों आदिवासी और अन्य पारंपरिक वनवासी, जो पीढ़ियों से वन भूमि में रह रहे हैं, वे हमेशा के लिए जंगल की जमीन पर अपना अधिकार खो देंगे।
ग्राम सभा का अधिकार छिना
एआईकेएमएस के अनुसार, सरकार के पास गैर-वन उद्देश्यों के लिए वनभूमि के हस्तांतरण को मंजूरी देने और ग्रामसभा की सहमति के बिना जंगल काटने की अनुमति देने की अनियंत्रित शक्ति होगी।
आदिवासी प्रतिरोध के डर से, इस सरकार ने एफआरए-2006 में संशोधन लाने के बजाय इसे पिछले दरवाजे से लाने की कोशिश की है।
नियम ग्राम सभाओं की शक्ति को दरकिनार करते हैं, कॉरपोरेट्स के लिए व्यवसाय करने को आसान करते हैं, वन नौकरशाही को ताकतवर बनाते हैं और एफआरए (वन अधिकार कानून) को नजरअंदाज करते हैं।
यह केवल उन बड़े कॉरपोरेट्स के लिए मददगार होगा जो ग्राम सभा द्वारा मंजूरी की इस पूरी प्रक्रिया को वनभूमि अधिग्रहण में बाधा के रूप में देख रहे हैं। अब इस संशोधन के बाद वे आसानी से अपनी विभिन्न परियोजनाओं के लिए वनभूमि प्राप्त कर सकते हैं।
एफआरए 2006 का कार्यान्वयन बहुत धीमा रहा है। लेकिन अब एफआरए के नए नियमों के अनुसार कानूनी अधिकार भी जिन जाएंगे।
यहां तक कि 18 अप्रैल 2013 को, सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक वेदांत फैसले ने ग्राम सभा के माध्यम से वन भूमि पर इन समुदायों के अधिकार की पुष्टि की है।
लेकिन इसके विपरीत बड़े कॉरपोरेट जो अपनी विभिन्न परियोजनाओं के लिए वनभूमि का बड़ा हिस्सा प्राप्त करना चाहते हैं, इस प्रावधान को एक बाधा मानते हैं।
9 अगस्त को देशव्यापी प्रदर्शन
इस धरने में देश के विभिन्न हिस्सों से आदिवासी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। वक्ताओं में एआईकेएमएस के कॉमरेड भाल चंद्र शडांगी, एआईकेएमएस के संयुक्त सचिव, जागृति आदिवासी दलित संगठन से माधुरी, एआईयूएफडब्ल्यूपी की महासचिव रोमा, सत्यवान अध्यक्ष एआईकेकेकेएस, अशोक चौधरी उपाध्यक्ष एनटीयूआई, हिमांशु कुमार, यूपी, तेलंगाना, ओडिशा के एआईकेएमएस के आदिवासी नेता थे।
और अन्य क्षेत्रों, सीईसी एआईकेएमएस के रामिंदर पटियाला, सीईसी एआईकेएमएस के कॉमरेड धर्मपाल और अन्य।
वक्ताओं ने आदिवासियों और अन्य वनवासियों से सरकार के इस कॉर्पोरेट समर्थक और जनविरोधी कदम का विरोध करने का आह्वान किया।
उन्होंने आंदोलनकारी कार्यक्रमों की एक श्रृंखला की घोषणा करके किसानों, विशेष रूप से आदिवासी और अन्य पारंपरिक वनवासियों से देशव्यापी जन विरोध का आह्वान किया।
सभी उपस्थित लोगों ने आदिवासी लोगों से आह्वान किया कि वे इस वर्ष के अंतरराष्ट्रीय मूलनिवासी जन दिवस (9 अगस्त) को आरएसएस-भाजपा के नेतृत्व वाले इस आदिवासी और वन-विरोधी निर्णयों के विरोध दिवस के रूप में अधिक से अधिक लोगों को संगठित करें।
एआईकेएमएस ने कहा है कि ‘वो इस मुद्दे पर एक अखिल भारतीय सम्मेलन आयोजित करेगा जो अगस्त के दूसरे पखवाड़े में आयोजित किया जाएगा जहां हमें उम्मीद है कि आदिवासियों में काम करनेवाले सभी संगठन इन नियमों को वापस लेने की मांग के लिए एकसाथ आएंगे।’
(workers unity.com से साभार)