— प्रेरणा —
प्रधानसेवक का आदेश है : हर घर झंडा! उनका आदेश और पूरा देश नतमस्तक! उनकी यह अदा पुरानी है। वे आदेश पहले देते हैं, आगे–पीछे की सोचते है कि नहीं, पता नहीं। कुछ लोग कहते हैं कि वे नतीजे की चिंता किए बिना, हिम्मत से कदम उठाते हैं। यह अलग बात है कि देश उनकी हिम्मत की कीमत अदा करता रहता है। खुदा न खास्ते यदि आप उनके कदम के नतीजों के असर का हिसाब करने लगें तो वे आपके सामने ऐसे लोगों की कतार खड़ी कर देंगे जो उसी कदम के गुणगान करने लग जाएंगे और फिर पूरा मीडिया तो है ही जो उनके हर कदम की ऐसी वाहवाही करेगा कि आपको अपनी ही समझ पर शक होने लगेगा।
फिर भी मेरी तरह के भी तो कुछ लोग होते हैं जो हर कदम का हिसाब लगाते हैं। तो बात ऐसी है कि हर कदम के कुछ फायदे होते हैं, कुछ नुकसान। देखना सिर्फ यह होता है कि फायदा किसका हो रहा है और नुकसान की भरपाई कौन कर रहा है। इससे यह भी पता चलेगा कि आप किस पक्ष में हैं :फायदे वालों के साथ कि नुकसान वालों के साथ। फिर कुछ ऐसे लोग भी आपको मिलेंगे जो यह गिनाते हैं कि नुकसान भले हुआ हो लेकिन दूसरों से कम हुआ है, और फिर देश-हित में थोड़ा नुकसान उठाना तो बनता है न! खुद को ही तमाचा मार कर गाल लाल करने वालों की कब कमी रही है!
हर घर झंडा की बात देखिए! हमारा तिरंगा और वह भी खादी का! इसकी कीमत कैसे आँकेंगे आप? शहीदों के बलिदान और आजादी के जज्बे से बना है यह तिरंगा और खादी ने उसमें मूल्य भरे हैं- प्राइस वाला मूल्य नहीं, वैल्यू वाला मूल्य! इन दिनों इन दोनों मूल्यों में बड़ा गड़बड़झाला हो रहा है। आजादी की लड़ाई में खादी की कैसे अहम भूमिका थी, यह तो उस लड़ाई को लड़नेवाले ही बता सकते हैं, जिन्होंने लड़ा ही नहीं, वे कैसे जान सकते हैं।
लेकिन खादी के उस मूल्य की कमाई दोनों तरह के लोग आज भी खा रहे हैं। वही लोग दुनिया भर के लीडरानों को खादी और साबरमती आश्रम और राजघाट घुमाते हैं, उनसे झूठमूठ का चरखा चलवाते हैं।
गांधी ने खादी से झंडा नहीं बनाया, हाथों को ऐसा काम दिया कि जिसका झंडा बन गया। उस रोजगार ने देश को स्वावलंबी बनाया। स्वावलंबन से जो आत्मविश्वास आया उसने लोगों को निडर बनाया! वे निडर लोग जेल, गोली और फाँसी से भी नहीं डरे और आँखों में आँखें डालकर अंग्रेजों का मुकाबला किया। अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें इस एक छोटे से आर्थिक कार्यक्रम ने हिला कर रख दीं। उनके लंकाशायर की मिलें बंद पड़ने लगीं। इस खादी की अच्छी खासी मार्केटिंग प्रधानसेवक ने भी अपने भारत में की और बिक्री का रिकार्ड बन गया! प्रधानसेवक रिकार्ड से कम वाली कोई बात करें तो लानत है!
अब ऐसा पहला सवाल यह है कि जब खादी का उत्पादन इतना बढ़ा कि बिक्री का रिकार्ड बन गया तो ‘हर घर झंडा’ का कपड़ा खादी का क्यों नहीं बन सकता था? अगर बनता तो कितने लोगों को रोजगार देता। बेरोजगारी के बम के ऊपर बैठे देश में वह कितनी बड़ी राहत होती।
जहाँ कुछ हजार नौकरियों के लिए लाखों-करोड़ों आवेदन आते हैं, वहाँ घर बैठे लाखों को, लाखों का काम मिल जाता। लेकिन ऐसा हो न सका क्योंकि सरकार जानती है कि उसने खादी को जिंदा छोड़ा ही कहाँ है! खादी ब्रांड के नाम पर जो बेचा जा रहा है, वह खादी है ही नहीं। खादी का सारा व्यापार घोटाला है। सरकार के संरक्षण में यह घोटाला चल रहा है।
मेरा दूसरा सवाल यह है कि खादी का झंडा संभव नहीं था तो सूती झंडा तो संभव हो सकता था। आखिर भारत दुनिया का दूसरे नंबर का कपास और सूती धागा उत्पादक है, भारत पहले नंबर का सूती धागा निर्यातक है। सूती धागा बनानेवाली हमारी मिलें अप्रैल महीने से बंद सी पड़ी हैं। इसलिए कि हमारे यहाँ कपास और धागे की कीमतें इतनी बढ़ गई हैं कि दुनिया ने हमसे कपास, धागा और कपड़ा खरीदना बंद सा कर दिया है। इचलकरंजी और तमिलनाडु के धागे के, हाथकरघे के तथा दूसरे लघु उत्पादन के केंद्र बंद पड़ गए हैं।
चीन और अमेरिका के बीच उइगर मुसलमानों के मानवाधिकार हनन के मामले ने ऐसा तूल पकड़ लिया है और चीन ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपना कपास और अपना धागा सस्ते से सस्ते दामों पर डम्प करना शुरू कर दिया है इसका का नतीजा वही है कि ऊँचे भाव वाले भारत के कपास, धागे, कपड़े और परिधानों का निर्यात ठप पड़ गया है। ऐसे में अगर हमारे लोगों को झंडा बनाने का ही काम मिल जाता तो अगली फसल आने तक उनका घर-बाजार तो चल ही जाता!
अब मेरा तीसरा सवाल। खादी का झंडा संभव नहीं था, सूती झंडा बहुत महँगा पड़ रहा था तो फिर ‘हर घर झंडा’ कार्यक्रम लेना इतना जरूरी क्यों था? यहाँ से दूसरा खेल शुरू होता है और वह है पोलिएस्टर का झंडा!दुनिया का सबसे बड़ा पोलिएस्टर उत्पादक देश कौन है? जवाब है- चीन!सबसे बड़ा निर्यातक देश कौन है? जवाब है- चीन! दुनिया की पोलिएस्टर बनानेवाली बीस सबसे बड़ी कंपनियों में भारत की दो कंपनियाँ आती हैं- बांबे डाइंग और रिलायंस। अब ‘हर घर झंडा’ होगा तो किसका झंडा गड़ेगा? जवाब मैं नहीं, आप ही दें।
कुछ दिन पहले जिस झंडा अभियान की घोषणा हुई है, उसका करोड़ों झंडा या झंडे का कपड़ा आएगा तो चीन से आएगा! सरदार साहब की मूर्ति भी तो वहीं से आयी थी न! दूसरा फायदा किसे होगा? भारत की उन चंद कंपनियों को होगा जिनके पास इतने कम समय में, इतना पोलिएस्टर का कपड़ा बनाने की क्षमता है। भाई, थोड़ा हिसाब आप भी तो लगाएं! और फिर प्लास्टिक और पेट्रोलियम पदार्थ से बननेवाले पोलिएस्टर का पर्यावरण पर असर! इसके लिए एक अलग लेख ही लिखना पड़ेगा।
पिछले साल दिल्ली के खादी भंडार से जब मैंने कुछ सामान लिया तो वे सामान के साथ मुफ्त में झंडा भी दे रहे थे। मैंने लेने से मना कर दिया। 15 अगस्त और 26 जनवरी के समारोह के बाद हमारे तिरंगे, स्टीकर और प्लास्टिक के बैज कहाँ मिलते हैं? कचरे में! झंडा कूड़ा बन जाए यह कैसे बर्दाश्त किया जाए? यह झंडे का अपमान नहीं है? फिर यह भी तो सोचिए कि हमारे घरों पर तिंरगा झंडा हो और उसके साए में खुलेआम भ्रष्टाचार और अपने ही देश के भाई-बहनों से नफरत हो तो यह कैसा देशप्रेम हुआ?
तब अंतिम सवाल मेरा यह है कि इस सारी कवायद से हासिल क्या होगा?वही तो असली बात है! चीन को और देश की कुछ कंपनियों को करोड़ों का मुनाफा देने के साथ-साथ यह बात भी तो साबित होगी न कि आज भी भारत देश के नागरिक आँख मूँदकर अपने प्रधान सेवक के पीछे-पीछे चलने के लिए तैयार खड़े हैं! बस, तिरंगा लहराए कि नहीं, हम तो लहरा रहे हैं न!