प्रदीप गिरी के निधन से भारत के समाजवादियों में भी शोक की लहर

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स्मृतिशेष : प्रदीप गिरी (1 नवंबर 1947 - 20 अगस्त 2022)

21 अगस्त। रविवार को पशुपतिनाथ मंदिर के निकट प्रदीप गिरी का अंतिम संस्कार हो गया। उनके अंतिम संस्कार में नेपाल के सभी पूर्व प्रधानमन्त्री- सर्वश्री पुष्प कमल दहाल ‘प्रचंड’, माधव नेपाल, झलनाथ खनाल, बाबूराम भट्टराई तथा वर्तमान प्रधानमन्त्री श्री शेरबहादुर देउबा सहित सभी राजनीतिक दलों के प्रमुख नेता, बुद्धिजीवी एवं नागरिक समाज के गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।

लोकतांत्रिक संघर्ष के दूसरे दौर में फरवरी 2005 में भारत और सोशलिस्ट इंटरनेशनल से नैतिक समर्थन जुटाने के लिए उन्होंने अथक प्रयास किया। वह इसी सिलसिले में सोशलिस्ट इंटरनेशनल की बैठक में मंगोलिया भी गये। नेपाली लोकतंत्र के लिए बनी एकजुटता कमेटी बनवाने में उनकी महती भूमिका थी। श्री देवीप्रसाद त्रिपाठी, श्री सीताराम येचुरी, श्री अनिल मिश्रा आदि के जरिए विभिन्न राजनीतिक दलों में जो समर्थन जुटाते थे उसमें उनका सक्रिय योगदान/मार्गदर्शन रहता था। सभी दलों के शीर्ष नेताओं से उनका संवाद था । नेपाल के माओवादियों और लोकतांत्रिक पार्टियों के बीच समझौते के लिए आधार भूमि तैयार करने में भी उनकी भूमिका थी। हालाँकि नेपाली कांग्रेस के आंतरिक सत्ता समीकरणों के कारण उनको पर्याप्त श्रेय सार्वजनिक तौर पर नहीं मिलता था।

नेपाल के सभी दलों में समाजवाद के प्रखर चिंतक के रूप में उनकी पहचान थी। पहले उनकी बीमारी और अब निधन से नेपाल में पैदा हुए शून्य को भरना आसान न होगा। भारत में भी राजनैतिक कार्यकर्ताओं की बड़ी जमात अपने को अकेला महसूस करेगी।

– विजय प्रताप

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उनमें हिमालय का धीरज और गंगा की गतिशीलता थी

समाजवादी चिंतक, नेपाल की जनतांत्रिक क्रांति के महत्त्वपूआर्ण नायक, भारत नेपाल मैत्री के आधार स्तंभ, नेपाल की संसद और संविधान सभा के वरिष्ठ सदस्य और नेपाली कांग्रेस के एक शिखर पुरुष प्रदीप गिरी का 20 अगस्त को काठमांडू में निधन हो गया। यह एक अपूरणीय क्षति है। उनकी आठ दशक लंबी जिंदगी नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना जैसे बड़े सपने के लिए संपूर्ण समर्पण, रोमांचक संघर्ष और तमाम अवरोधों के बावजूद सफलता हासिल करने की अद्भुत कथा है। उनमें हिमालय का धीरज और गंगा की गतिशीलता थी।

प्रदीप जी के मोहक व्यक्तित्व में विद्यासाधक और कर्मयोगी; चिंतक और नायक; साहस और समझदारी; विद्रोह और अनुशासन; कविता और क्रांति; सपनों और सच का असाधारण समन्वय था।
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नेपाल के एक संपन्न भूमिपति परिवार में जनमे व विराटनगर-काठमांडू-बनारस-दिल्ली में सुशिक्षित और नेपाल के कठोर राणाराज द्वारा तरुणाई में ही राजबंदी बनाए गए प्रदीप गिरी अपने आप में प्रेरणा पुंज थे। उत्साह का अक्षय स्रोत थे। उनके ज्ञान और अनुभव का कम उम्र से ही बहुत बड़ा दायरा था। वह विद्यार्थी जीवन से ही दोस्त बनाने में सिद्ध थे। लोकतांत्रिक समाजवादी की पक्की पहचान के बावजूद नेपाल के राजनीतिक इंद्रधनुष के हर रंग के समूहों में वह सम्मान से देखे जाते थे। वैसे भारतीय राजनीतिज्ञ दायरे में भी उनकी कांग्रेस से लेकर राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल (यूनाइटेड) तक के नेतृत्व मंडल से मैत्री संबंध रहा। नेपाली कांग्रेस परिवार में वह व्यक्ति के रूप में कृष्ण प्रसाद भट्टराई के प्रति श्रद्धा रखते थे और प्रधानमंत्री पद के लिए शेरबहादुर देऊबा उनकी खुली पसंद रहे। भारतीय राजनीति में लोहिया पसंद थे।

उनकी पहली बार की गिरफ्तारी लोहिया के साथ पत्र व्यवहार के कारण भी हुई थी। गांधी, नेहरू, जेपी, नंबूदरीपाद, जार्ज फर्नांडिस से लेकर किशन पटनायक तक के सोच की उनकी अच्छी समझ थी। अपनी असहमतियों के बावजूद प्रदीप जी ने बी.पी. कोइराला की रचनाओं का संकलन-संपादन करके नेपाल के बौद्धिक विमर्श के लिए एक बुनियादी काम संपन्न किया। वैसे भी नेपाली राजनीति में उनकी पहचान ‘वैचारिक साहस’ में अद्वितीय नायक की थी। माओवादियों और नेपाली कांग्रेस में सहयोग की बुनियाद बनाने में उनका असाधारण योगदान था। नेपाल में बसे तिब्बती प्रवासियों के भी वह मददगार थे।
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मेरा उनसे परिचय 1967 में बी.एच.यू. समाजवादी युवजन सभा की पहली विचार गोष्ठी में अपने समय के बेमिसाल समाजवादी विद्यार्थी नेता डी. मजूमदार ने कराया था। मद्रास कैफ़े की एक टेबल के इर्द-गिर्द पाँच युवजनों को नेपाल की जेल से रिहा होकर आए प्रदीप गिरी ने 1 घंटे तक समाजवादी विचार प्रवाह का क-ख-ग समझाया था। शंका समाधान भी किया। मार्क्स-एंगेल्स की कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो, नरेंद्रदेव की राष्ट्रीयता और समाजवाद तथा लोहिया के इतिहास चक्र को पढ़ने का सुझाव दिया। इस तरह एक नेपाली मशाल से बनारस में समाजवादी विचारों की दीवाली सजाना शुरू हुआ।

तब से इस जुलाई में बंबई के अस्पताल में गले के कैंसर के इलाज के लिए भर्ती होने के बाद तक हमलोगों का संपर्क बना रहा। इस बीच लगभग छह दशक बीत गए लेकिन प्रदीप जी से बनारस-दिल्ली-काठमांडू में हुई अनगिनत मुलाकातों में उनका रंग-स्वर-सरोकार-सहयोग जस का तस रहा। हमेशा किसी बड़ी योजना को लेकर कुछ चिंतित, कुछ आशान्वित। कुछ जिज्ञासाएँ, कई सुझाव। कभी व्यस्तता के कारण संक्षिप्त फोनवार्ता और कभी फुरसत में चाय के कई प्याले। वैसे यह भी सही रहा कि उनका स्वभाव ‘रमता जोगी, बहता पानी‘ जैसा था। कल, आज और कल के बीच अक्सर कोई सिलसिला नहीं बना पाते थे। इसीलिए उनके साथ बीता ‘आज और अभी‘ का ज्यादा महत्त्व था।

नेपाली राजनीति की संसदीय लहर में छलांग लगाने के बाद मुलाकात का महत्त्व जरूर बढ़ गया। लेकिन तत्त्व की बात कम रही और तात्कालिकता की प्राथमिकता हो गयी। इसलिए बाद की भेंट के अंत में यह जरूर कहा करते थे कि ‘देखिए, कितनी जरूरी बातें करने की सोच के आया था। कोई काम की बात नहीं हुई। अभी तो काठमांडू में बहुत उलट पलट का माहौल है इसलिए चलता हूँ। अगली बार व्यवस्थित चर्चा करेंगे!’ अब तो वह भी कहने के लिए नहीं ठहरे।

दूसरी तरफ, वह आजीवन नेपाली लोकतांत्रिक नवनिर्माण के लिए प्रतिबद्ध रहे। उनके मन में नेपाल को सामन्तवाद की बंद गली से मुक्ति दिलाने और लोकतंत्र के सूरज की ऊर्जा से समाजवादी नवनिर्माण से सजाने-संवारने का सपना नेपाल के बंदी जीवन के दौरान ही अंकुरित हो गया था। यह उनका सौभाग्य रहा कि उनकी तरुणाई का सपना अधेड़ उम्र में साकार हो गया। हालाँकि इसकी हजारों नेपाली वीरों की तरह प्रदीप गिरी ने भी बड़ी कीमत चुकायी।
अलविदा प्रदीप जी…….

– आनंद कुमार

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हिंदुस्तानी समाजवादी आंदोलन को भी क्षति हुई है

साथी प्रदीप गिरी के इंतकाल की खबर से तकलीफ हुई। वे न केवल नेपाली कांग्रेस के नेता थे, एक मायने में वे हिंदुस्तानी सोशलिस्ट आंदोलन के नेपाल में प्रतिनिधि थे। मेरे से उनका लगभग 40 सालों से ज्यादा से तारुफ था। उनकी बहादुरी की एक मिसाल मैं जिंदगी भर भूल नहीं पाता। अस्सी के दशक में मैं नेपाल गया हुआ था। काठमांडू में मुझको पता चला कि प्रदीप गिरी गिरफ्तार होकर जेल में है। मैंने उनका पता लगाया। काठमांडू से काफी दूर एक जेल के अंदर वह बंद थे।मैं उनसे मुलाकात करने के लिए जेल गया था। बातचीत के दौरान उन्होंने इस बात पर रंज व्यक्त किया था कि ना जाने क्यों हमारे हिंदुस्तानी साथी बड़ी जल्दी हतोत्साहित हो जाते हैं। हमारे नेपाल में सत्याग्रहियों को पांच-सात जेल के सींकचों में बंद रखा जाता है फिर भी कोई घबराहट नहीं होती, परंतु हिंदुस्तान में आपातकालीन समय में बड़ी तादाद में लोग माफी मांग कर जेल से बाहर आना चाहते थे।

सोशलिस्ट तहरीक के लिए उनका एक बड़ा योगदान उनके प्रयासों से या कहें उनके कारण डॉ राममनोहर लोहिया पर एक फिल्म का निर्माण किया गया। उनके आकस्मिक निधन से ना केवल नेपाल के लोकतांत्रिक समाजवादी आंदोलन को वरन हिंदुस्तानी समाजवादी आंदोलन को भी क्षति हुई है। उनकी कमी हमें बहुत दिन तक खलेगी। मैं अपने सोशलिस्ट दोस्त को नमन करता हूं।

– प्रो राजकुमार जैन


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