वायु प्रदूषण ने बढ़ाई मुश्किलें

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2 सितंबर। ग्रीनपीस इंडिया की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की 99 फीसदी आबादी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की हेल्थ गाइडलाइन से पाँच गुना अधिक पीएम 2.5 के साथ खराब हवा में साँस ले रही है। ‘डिफरेंट एयर अंडर वन स्काई’ शीर्षक के साथ यह रिपोर्ट प्रकाशित की गई है। रिपोर्ट के निष्कर्षों के अनुसार, भारत में रहनेवाले लोगों का सबसे बड़ा अनुपात विश्व स्वास्थ्य संगठन की तय गाइडलाइन से पाँच गुना अधिक पीएम 2.5 के संपर्क में है।

इसमें कहा गया है कि देश की 56 फीसदी आबादी प्रदूषित क्षेत्रों में रहती है। जबकि 62 फीसदी गर्भवती महिलाएं सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में रहती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रदूषण से सबसे अधिक जोखिम वाला क्षेत्र दिल्ली-एनसीआर है। रिपोर्ट में वृद्ध वयस्कों, शिशुओं और गर्भवती महिलाओं को सबसे कमजोर समूहों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है जो खराब हवा के संपर्क में हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, पीएम 2.5 का मतलब सूक्ष्म कणों से है जो शरीर में गहराई से प्रवेश करते हैं, और फेफड़ों और श्वसन पथ में सूजन पैदा करते हैं, जिससे कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली सहित हृदय और श्वसन संबंधी समस्याओं का खतरा होता है। रिपोर्ट में कहा गया है, कि सरकार को देशभर में एक मजबूत ’वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणाली’ पेश करनी चाहिए और सार्वजनिक रूप से से ’रियल टाइम डेटा’ उपलब्ध कराना चाहिए।

इसमें कहा गया है कि खराब हवा के दिनों के लिए एक ’हेल्थ एडवायजरी’ और ’रेड अलर्ट’ भी जारी की जानी चाहिए ताकि जनता अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठा सके। राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (नेशनल एम्बिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड) अपर्याप्त है और तत्काल सुधार की आवश्यकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर नेशनल एम्बिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड (एनएएक्यूएस) के संशोधन की प्रक्रिया तय करनी चाहिए। सरकार को राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत सभी नियोजित गतिविधियों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना चाहिए।

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