इंद्र मेघवाल की मॉं के ऑंसू

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— रितु कौशिक —

दिल्ली से एक 9 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल जिसमें ऑल इंडिया महिला सांस्कृतिक संगठन (एआईएमएसएस) की दिल्ली राज्य उपाध्यक्ष शारदा दीक्षित और सचिव रितु कौशिक शामिल थीं, जब इंद्र मेघवाल के घर, राजस्थान के जालौर जिले के सुराणा गांव में पहुंचा तो वहां दीवार के सहारे टेबल पर नौ वर्षीय इंद्र मेघवाल की फोटो लगी हुई थी और उसी के नीचे बिछी एक सफेद चादर पर सर नीचा किए उसके दादाजी बैठे हुए थे। हमें देखकर उन्होंने अंदर चले जाने का इशारा किया। जैसे ही हम घर के प्रांगण में पहुंचे तो इंद्र की मां और दादी की आसमान छूनेवाली चीत्कारों को सुनकर हम सहम गए। ऐसा लग रहा था मानो मां और दादी की चीत्कारें रह रहकर असमान में जाकर पूछ रही हों कि आखिर उनके मासूम बेटे को किस जुर्म की सजा मिली? क्या पानी पीना भी कोई जुर्म है ??

किसी भी तरह से उनके आंसू रुक नहीं रहे थे। इंद्र की मां पवनी देवी ने किसी तरह से अपने आंसू रोक कर बताया कि 20 जुलाई की सुबह भी हर रोज की तरह इंद्र अपने भाई नरेश के साथ स्कूल गया था लेकिन कुछ देर बाद ही इंद्र को लगभग बेहोशी की हालत में उनके घर वापस लाया गया। जब इंद्र ने उन्हें बताया कि उनके कान में और सर में बहुत दर्द है तब उनको इस बात का अहसास नहीं था कि इंद्र को इतनी अधिक चोटें लगी होंगी कि वह शायद बच भी नहीं पाएगा। उसे शहर से दवाइयां लाकर खिला दी गईं ताकि दर्द बंद हो जाए। लेकिन दर्द की दवा खाने के बाद भी इंद्र की हालत में सुधार नहीं हुआ तो उसे अमदाबाद के एक हॉस्पिटल में ले जाया गया जहां इलाज के दौरान 11 अगस्त को उसकी मौत हो गई। इंद्र के पिताजी ने बताया कि 11 अगस्त की रात को पुलिस द्वारा इंद्र की लाश को एक ट्रॉली में डालकर लाया गया जैसे वह किसी इंसान की लाश नहीं बल्कि जानवर की लाश हो। किसी तरह से सिर्फ उसकी मां को अंतिम बार उसका चेहरा देखने दिया गया और रात 10 बजे घरवालों के बार बार मना करने के बावजूद पुलिस ने जबरदस्ती उसका अंतिम संस्कार कर दिया।

सिर्फ इतना ही नहीं, उसके दादा, दादी,भाई, चाचा, चाची और बुआ को न सिर्फ इंद्र की लाश के पास आने से रोका गया बल्कि पुलिस द्वारा उन्हें लाठियों से बेरहमी से पीटा गया। इंद्र की बुआ बंटा देवी जो छह महीने की गर्भवती हैं उन्होंने बताया कि रात भर उन्हें भी पुलिस ने घर के अंदर नहीं आने दिया। परिवारवालों को यह सजा इसलिए मिली क्योंकि उन्होंने उस दोषी अध्यापक छैल सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी। इंद्र की मां पवनि देवी ने बताया कि पुलिस ने हमारे गांव के, यहां तक कि हमारी बिरादरी के लोगों को भी हमारे घर आने से मना कर दिया है।

इंद्र के पिता देवाराम ने बताया कि आज भी ऊंची जाति का शोषण और अत्याचार इस हद तक बना हुआ है कि गांव में ठाकुरों के घर के सामने से गुजरना होता है तो उन्हें अपने चप्पल और जूते निकाल कर हाथ में उठाकर गुजरना पड़ता है।

न जानें और कितने ही प्रकार के जाति आधारित विभेद आज भी कायम हैं। किसी को मूंछें रखने के जुर्म में तो किसी को घोड़ी पर चढ़ने के जुर्म में मार दिया जाता है। इंद्र की मृत्यु के विषय में कहा जा रहा है कि इंद्र पहले से ही बीमार था और उसी बीमारी के चलते उसकी मृत्यु हुई है। इंद्र की बीमारी की कहानियां इसलिए गढ़ी जा रही हैं ताकि यह ना पता चल सके कि इंद्र की मौत सिर्फ इसलिए हुई कि उसने एक ब्राह्मण अध्यापक के पानी पीने की मटकी को हाथ लगा दिया था।

लेकिन एक तरफ आज भी व्याप्त जातीय भेदभाव की अन्य घटनाओं की रोशनी में ही इस घटना की उच्चस्तरीय जांच की आवश्यकता है। इस प्रकार की और घटनाएं ना घट सकें, कोई और इंद्र जातीय घृणा का शिकार ना बन पाए इसके लिए एक तरफ सरकार को अत्यधिक कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है वहीं दूसरी तरफ एक व्यापक सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन समय की मांग है ताकि ज्योतिबा फुले, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, सावित्रीबाई फुले का इन बुराइयों के खिलाफ़ संघर्ष और कुर्बानियां जाया न जाएं।

एक ही दिन में जातीय भेदभाव की क्रूरता की सच्चाई को देखकर हम शर्मसार हो गए वहीं असली मानवीय गुणों और इंसानियत से भी रुबरू हुए। हमारा प्रतिनिधिमंडल लगभग 24 घंटे की यात्रा करने के बाद इंद्र कुमार के घर पहुंचा। इंद्र के घरवालों को यह बात कैसे पता चली हमें नहीं पता लेकिन उनसे मुलाकात के बाद जब हम वापस आने लगे तो इंद्र के पिताजी और इंद्र की दादी हाथ जोड़कर हम सबके सामने खड़े हो गए और उन्होंने कहा कि आप लोग हमारे घर आए हो तो आपको हमारी एक बात माननी होगी कि आप यहां से खाना खाकर जाएं, अगर आप लोग खाना खाये बगैर जाएंगे तो इंद्र कुमार की आत्मा को शांति नहीं मिलेगी। हम सोच रहे थे कि इतने गरीब घर में जहां इन लोगों के सर पर पक्की छत तक नहीं है, मुश्किल से ही वो अपना गुजारा चलाते हैं, हम यहां खाना खाएं! नहीं, इन लोगों पर इतना बोझ ठीक नहीं लेकिन उनके आग्रह के आगे हमारी एक न चली। ऐसा खाना शायद ही कभी खाया हो, जिस प्यार और इज्जत के साथ खाना खिलाया उसे जिंदगी भर मैं भुला नहीं पाऊँगी। इंद्र तुम मरे नहीं हो, तुम मरकर भी जिंदा हो। तुम्हारी कुर्बानी इस सोए हुए समाज को अवश्य जगाएगी। इंद्र को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि।

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