9 सितंबर। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा जारी मानव विकास सूचकांक 2021 में भारत एक पायदान और नीचे फिसल गया है। यूएनडीपी की ताजा रिपोर्ट में भारत को 191 देशों की सूची में 132वें स्थान पर रखा गया है। वहीं साल 2020 की रिपोर्ट में भारत तो 131वां स्थान मिला था। यानी इसको आसान भाषा में समझें तो देश का विकास होने का भले ही दावा किया जा रहा हो, लेकिन यहाँ रहनेवाले गरीब भारतीयों का विकास नहीं हो पा रहा है। देश के गरीब लोगों का स्वास्थ्य, शिक्षा और औसत आय लगातार दो साल 2020 और 2021 में घट गई है। जो पिछले पाँच साल की प्रगति को प्रभावित करती है।
यूएनडीपी ने अपनी रिपोर्ट में भारत के मजदूरों के लिए समावेशी विकास, सामाजिक सुरक्षा, लिंग-उत्तरदायी नीतियों में सुधार पर जोर दिया है जिसका औचित्य वर्तमान में मजदूरों की स्थिति को देख कर ही सहज ही समझा जा है।
नए लेबर कोड के बाद से ही मजदूरों के ऊपर प्रबंधन द्वारा किये जाने वाले अत्याचारों का आँकड़ा बढ़ता जा रहा है। एक तो नौकरियाँ नहीं हैं, जो हैं उनमें सिर्फ जिंदा रह पाने वाली तनख्वाहें हैं। जो परमानेंट वर्कर हैं, उन्हें भी मेक इन इंडिया के नाम पर निकाल बाहर कर ठेके के सस्ते श्रमिकों को भर्ती किया जा रहा है। सामाजिक सुरक्षा के मानकों की लगातार धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। रोज मजदूरों की काम के दौरान मौत की घटनाएँ सामने आ रही हैं। मजदूरों को जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। इन सभी मुद्दों को देख कर एक बड़ा सवाल यह खड़ा होता है, कि भारत में मानव विकास हो भी तो कैसे हो?
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