दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल

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पेंटिंग : प्रयाग शुक्ल
दुष्यंत कुमार (1 सितंबर 1933 – 30 दिसंबर 1975)

मेरे गीत तुम्हारे पास सहारा पाने आएंगे,
मेरे बाद तुम्हें ये मेरी याद दिलाने आएंगे।

हौले हौले पांव हिलाओ, जल सोया छेड़ो मत,
हम सब अपने अपने दीपक यहीं सिराने आएंगे।

थोड़ी ऑंच बनी रहने दो, थोड़ा धुऑं निकलने दो,
कल देखोगी कई मुसाफ़िर इसी बहाने आएंगे।

उनको क्या मालूम विरूपित इस सिकता पर क्या बीती,
वे आए तो यहां शंख सीपियां उठाने आएंगे।

रह-रह आंखों में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरी,
आगे और बढ़ें तो शायद दृश्य सुहाने आएंगे।

मेले में भटके होते तो कोई घर पहुंचा जाता,
हम घर में भटके हैं, कैसे ठौर ठिकाने आएंगे।

हम क्या बोलें इस ऑंधी में कई घरौंदे टूट गए,
इन असफल निर्मितियों के शव कल पहचाने जाएंगे।


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