— रमाशंकर सिंह —
यह क्या ही घटिया बात हुई कि ऋषि सुनक (या सौनक) का परिवार आजादी के पहले के हिंदुस्तान या अविभाजित भारत के गुजरांवालॉं में रहता था जो अब पाकिस्तान में है इसलिए वो परिवार अब भारतीय नहीं माना जा सकता!
इस दृष्टि से तो इंद्रकुमार गुजराल, लालकृष्ण आडवाणी, डॉ मनमोहन सिंह समेत तमाम विख्यात लोग पाकिस्तानी हो गये जबकि डॉ मनमोहन सिंह तो दस साल भारत के प्रधानमंत्री रहे और आडवाणी भाजपा के संस्थापक व विपक्ष के नेता। गुजराल भी बीच में प्रधानमंत्री बन गये थे।
संकुचित दृष्टि भी हमारी ऐसी हो गई कि सब कुछ पाकिस्तान की नजर से ही दिखने लगा है। विदेशों में तो मजाक चलता ही है कि भारत की कूटनीति पाकिस्तान से शुरू होती है और वहीं खत्म हो जाती है।
अब भारतीय जनमानस ऐसा कूढ़मगज हो गया है कि जैसे पूरी दुनिया में या तो भारत है या फिर पाकिस्तान और हम दोनों एक दूसरे के घोर शत्रु हैं, इसके अलावा किसी देश समाज का कोई भी अस्तित्व कहीं नहीं है।
ये तो अच्छी बात है कि 1936 के आसपास सुनक परिवार अफ्रीका होते हुए इंग्लैंड में आ बसा और 2009 में ऋषि सुनक हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्य चुने गये और आज वहाँ के प्रधानमंत्री हैं।
जो भी व्यक्ति सामाजिक रूप से अपना पैतृक गाँव कस्बा छोड़ देता है वो अंततः अच्छा सफल व्यक्ति बन ही जाता है। सोशल मोबिलिटी पूरी दुनिया का स्वरूप बदल रही है। अभी ही तीन करोड़ मूल भारतीय विदेशों में नौकरी या रोजगार में हैं और यदि पूर्व हिंदुस्तान यानी पाकिस्तान, श्रीलंका व बांग्लादेश को जोड़ लें तो करीब पाँच करोड़ लोग भारतीय व खुद के परिवारों को इज्जत से पाल रहे हैं और विश्व की दौलत भी बढ़ा रहे हैं।
अब जो सुनक के प्रधानमंत्री बनने पर उड़ रहे हैं वे जान लें कि पूरी तरह सुनक इंग्लैंड का ही हितसाधन करेंगे भारत का नहीं, और मामूली भी दायें बायें किया तो एक झटके में जॉनसन ट्रस की तरह कुछ ही मिनट में इस्तीफा देना पड़ जाएगा!
2004 में जाइए, 18 साल पहले जब सिर्फ अखबारी चर्चा चली थी कि इतालवी मूल की सोनिया गांधी भारत की प्रधानमंत्री बन सकती हैं और तब कई विपक्षी नेताओं में से कोई जीवन भर जमीन पर सोने का प्रण ले रहा था और कोई अपनी केशराशि मुंडवाने की घोषणा कर रहा था।
हॉं अब तो भागवत जी से सुना है कि हमारा सबका डीएनए एक है!
दुनिया की दूरियॉं छोटी हो रही है और बड़ा दिल दिमाग किये बगैर कोई चारा नहीं है जबकि हमारे दिल चूजे के और दिमाग कुएं में पड़े मेंढक जैसा होता जा रहा है।
प्रखर राष्ट्रवाद के साथ प्रखर विश्ववाद ही चलेगा अन्यथा यह राष्ट्रवाद भी ज्यादा दिन नहीं टिकेगा! इस सिद्धांत की धुरी होगी सबसे मित्रता और किसी से भी शत्रुता नहीं लेकिन भारतीय हित सबसे पहले।
और ये गर्व का धंधा बंद करो, बंदा अपनी मेहनत से कौशल से बन रहा है तो इसमें आपके द्वारा गर्व की क्या बात है? हर बात पर गर्व वे करते हैं जिनके खुद के खाते में कुछ नहीं होता तो बस गर्व गर्व गर्व करने लगते हैं। और फिर भी गर्व कम न हो रहा तो यह जानिए कि सुनक गोमांस को बड़े चाव से बनाते खाते हैं! मुझे तो किसी के खानपान से कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन मुसलमानों के घरों के फ्रिज को खंगालना जिन्हें राष्ट्रवादी लगता है उनके लिए कहा !