29 अक्टूबर। भारत में साल 2000 से 2004 के बीच जितने लोगों की मौत अत्यधिक गर्मी की वजह से हुई, 2017-2021 के बीच उसमें 55 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। मेडिकल जर्नल ‘द लांसेट’ की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। रिपोर्ट में कहा है, कि भारत में गर्मी से मरने वालों की संख्या में बड़ी वृद्धि देखी जा रही है। गर्मी के कारण देश को भारी आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ रहा है। ‘हेल्थ ऐट द मर्सी ऑफ फॉसिल फ्यूल’ नाम के इस शोधपत्र में अतिसूक्ष्म कणों के कारण भारत में होनेवाली मौतों का भी जिक्र किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में इन कणों के कारण भारत में अनुमानतः 3,30,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। ये कण जीवाश्म ईंधन जलाने से पैदा होते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक तेल, प्राकृतिक गैस और बायोमास जैसे जीवाश्म ईंधन जलाने के कारण भारतीय घरों में अतिसूक्ष्म कणों की सघनता विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों से 27 गुना ज्यादा बढ़ गई।
रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में भारत को काम के 167.2 अरब घंटों का नुकसान गर्मी के कारण हुआ। यानी अगर उतनी गर्मी ना पड़ती तो लोग इतने घंटे और काम कर पाते। इससे देश को जीडीपी का 5.4 फीसदी का नुकसान हुआ। भारत में बीते कुछ सालों में गर्मी तेज और लंबी होती गई है। मंगलवार को द लांसेट में छपी इस रिपोर्ट में 103 देशों की बात की गई है। शोधकर्ताओं ने पाया, कि इस साल मार्च से अप्रैल के बीच भारत और पाकिस्तान में जो ग्रीष्म-लहर चली थी, उसका कारण जलवायु परिवर्तन होने की संभावना 30 गुना ज्यादा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कमजोर तबकों के लोगों के लिए खतरा ज्यादा होता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हीट वेव के कारण पूरी दुनिया में मौतों की संख्या बढ़ रही है। रिपोर्ट के अनुसार, तेजी से बढ़ते तापमानों के कारण कमजोर आबादी को 1986-2005 के बीच सालाना औसत से 2021 में 3.7 अरब ज्यादा ऐसे दिनों का सामना करना पड़ा, जबकि हीट वेव चल रही थी।
रिपोर्ट की मानें तो अधिकतर देश कार्बन उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य से दूर हैं। सभी देशों ने पेरिस समझौते के तहत 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 43 प्रतिशत की कमी लाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन वर्तमान में यह 2010 की तुलना में 14 प्रतिशत अधिक है। यूरोप सहित कई देशों ने यूक्रेन युद्ध के बाद फॉसिल फ्यूल के उपयोग में वृद्धि की है। भारत और चीन पहले ही कोयला बिजली का उपयोग बढ़ाने की योजना बना चुके हैं। गौरतलब है, कि फॉसिल फ्यूल के इस्तेमाल से हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में चावल, गेहूं और मक्का फसल उगाने की अवधि कम हो रही है। इसका असर फसलों पर होता है और उत्पादन घट जाता है।
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