— प्रो. राजकुमार जैन —
हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच की मुनादी होते ही दोनों मुल्कों में खलबली मच जाती है, जुनूनी माहौल फैलने लगता है। खेल में जीतने से ज्यादा एक दूसरे को पटकनी देने की दुआएं, पूरे जोश-खरोश के साथ चारदीवारी में पर्दानशीन औरतों से लेकर, रेहड़ी-पटरी पर खोमचा लगाने वाले, खेत में पसीना बहाने से लेकर, गली-मोहल्लों में देशभक्ति का उफान जोर मारने लगता है। कि कुछ भी हो जाए पाकिस्तान न जीतने पाए। पाकिस्तान को हराने का मतलब है, बिना विश्वकप जीते भी हम जीत गए हैं! गांव की चौपाल पर हुक्के को गुड़गुड़ाते जो लोग कुश्ती में ज्यादा रस लेते हैं, वह भी हिंदुस्तान-पाकिस्तान के दरमियान होने वाले मैच की पूरी मालूमात लेते रहते हैं।
सवाल है कि क्या यह उमंग उत्साह खेल तक ही महदूद है? जी नहीं, हिंदुस्तान पाकिस्तान के बीच जो बारूदी, मजहबी, नफरत का सैलाब बहता रहता है यह उसी का नतीजा है। मुल्क के सियासी बंटवारे से जो नफरत पैदा हुई थी, उसको मुसलसल अपने सियासी फायदे के लिए लगातार हवा दी जाती रही है।
एक तो क्रिकेट का खेल, इंग्लैंड के ‘हाउस ऑफ लॉर्ड्स’ के रईसजादों के लिए बना था, उसने हिंदुस्तान के दूसरे खेलों को दोयम दर्जे का बना दिया। बहुत कम लोगों को जानकारी है कि क्रिकेट के खेल की शुरुआत उन्हीं मुल्कों में हुई जहां-जहां अंग्रेजी सल्तनत की गुलामी रही थी। साहब के मातहत रहने वाला इंसान, अपने लोगों, बिरादरी में साहब की नकल कर अपना रुतबा गालिब करने की कोशिश करता है। उसी की एक निशानी क्रिकेट है। क्रिकेट का खेल हिंदुस्तान पाकिस्तान के बीच एक जंग का रूप अख्तियार कर लेता है। और यह ऐसे ही नहीं हो रहा इसके पीछे एक सोची-समझी गहरी साजिश रची जाती रही है। खेलों के मैदान में हर हिंदुस्तानी-पाकिस्तानी की तमन्ना रहती है कि उसका मुल्क जीत हासिल करे, यह स्वाभाविक है। परंतु हिंदुस्तान या पाकिस्तान किसी दूसरे मुल्क से खेल में हार जाता है तो वह उसे खेल भावना से कबूल कर लेता है।
दोनों मुल्कों में नफरत के सौदागरों के खिलाफ भी एक बड़ी तादाद मौजूद है। पाकिस्तान क्रिकेट टीम के मशहूर गेंदबाज शोएब अख्तर ने एक टेलीविजन चैनल पर इंटरव्यू देकर सनसनी फैला दी थी, कि पाकिस्तान क्रिकेट टीम के हिंदू खिलाड़ी दानिश कनेरिया को मजहब की बिना पर परेशान करने वाले पाकिस्तान की क्रिकेट टीम के कप्तान शाहिद आफरीदी की मुखालाफत करते हुए यहां तक कह दिया कि ‘तू होगा कप्तान, अगर तूने यह दोबारा किया, तो तुझे मैं कमरे से बाहर उठाकर फेंक दूंगा।’ उस जांबाज गेंदबाज के खिलाफ, पाकिस्तान में तास्सुबी दिमाग के लोगों ने उस पर मुल्क का गद्दार करार देने की मुहिम छेड़ दी। पर इसके बावजूद वह चट्टान की तरह अपनी बात पर अड़ा रहा।
हमारी असली लड़ाई गुरबत, बेरोजगारी, बेइंसाफी के खिलाफ होनी चाहिए, परंतु उस गुस्से का रुख बड़े शातिर तरीके से मैच की ओर मोड़ दिया जाता है। एक हिंदुस्तानी के नाते मेरी भी हमेशा ख्वाहिश रहती है कि मेरा मुल्क हर खेल में अव्वल दर्जे पर आकर, तमगा गले में पहन कर आए। हार -हार होती है, मैं दुनिया के किसी भी मुल्क से हारूं।
जब कभी दुनिया के पैमाने पर खेलों के मैच की पदक तालिका गिनवाई जाती है, तो मैं बड़ी मायूसी से देखता हूं कि चीन, अमेरिका जैसे मुल्कों की तुलना में तो कहीं हूं ही नहीं। मेरे से छोटे और पिछड़े मुल्क मुझसे ज्यादा तमगे अपनी झोली में डाल लेते हैं, तो मुझे बड़ी मायूसी होती है। मेरी तमन्ना सिर्फ पाकिस्तान को ही नहीं खेल के मैदान में सभी को हराना है बनी रहती है।