श्रीधर करुणानिधि की पांच कविताएँ

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पेंटिंग- कौशलेश पांडेय

1. मजबूती का छद्म

वे मजबूत नहीं हो सकते
उनकी ताकत सिर्फ एक छलावा हो सकती है
वे झुक भी नहीं सकते
न वे किसी बच्चे से अपने गाल पर
प्यार की इबारत लिखवा सकते हैं
भाषा चाहे कोई भी
उसमें कोई भी प्यार का मुहावरा नहीं है
जिसे बोलते वक्त उनकी जुबान न लड़खड़ाए
बस दंभ की लंबी साधना से उन्होंने
अपनी आवाजें बुलंद कर ली हैं
इसी बुलंदी से
वे अपनी कमजोरियों को ढक लेते हैं
इस तरह किसी भी झूठ में
उनकी आवाजें नहीं काँपती
किसी बूढ़ी स्त्री ने ये उम्मीद नहीं की उनसे
कि भाषा के दंभ को त्याग कर
वे उनके गले लग जाएं
किसी को चूमने की ताकत नहीं उनमें
सच में वे कमजोर हैं
अक्सर गुब्बारे की तरह फूल भी जाते हैं वे
तर्क करने में वे अक्सर हांफने लगते हैं
वे धर्म को ध्वजा की तरह उठाते रहते हैं
पर एक बार खदेड़ दो तो भड़भड़ाकर गिर सकते हैं
बालू की भीत की तरह
दोस्तो! इसे झूठ मत समझिए
वे सच में बहुत कमजोर हैं …

2. चुनना

जो लोग कम बोलते थे
देखते देखते उनकी आँखों में
ज्यादा बोलने वाले खूब बस जाते थे
इस तरह उनकी बोलने की मितव्ययिता से
भाषा की आजादी के महोत्सव में खलल पड़ना
तय हो जाता था
हजारों सालों से भाषा के मितव्ययी लोगों को
जब किसी एक को चुनने के लिए कहा गया
तो उन्होंने अपने चुनने की प्रक्रिया से उबते हुए
अपने टेस्ट को बदल कर
चुना एक बातूनी किस्सागो को
सिर पर हाथ रखकर सोचते रहे देर तक
और फिर अपने चयन पर जोर से हँसे
वे हँसते हँसते रोने लगे
और फिर गहरे मौन के दलदल में धंसने लगे
कम बोलने वाले लोग
और भी कम ही बोलने लगे
वे हंँसने की बात के लिए जगह नहीं छोड़ने लगे
वे सिर्फ खूब बोलने वाले को
अचंभित आंखों से बोलते हुए देखने लगे…

3. डरावनी चीजों के बारे में

तुम्हें पता है
ऊंची जगहें बहुत डरावनी होती हैं
वहाँ एक सूनापन शोर करता है
डरावनी चीजों में डर नहीं होता
विचार में होता है..
डरने से डर का विचार नष्ट नहीं होता
न विचार के नष्ट होने से डर खत्म होता है
अगर कोई न हो
उड़ान में शामिल
चांद भी नहीं
तारे भी नहीं
नीला आसमान भी नही
आँखों के एक छोर पर अंधेरा और
एक छोर पर उजाले की उम्मीद
तब भी मैं यही कहूंगा
उतरने के लिए नीचे देखना जरूरी है
जरूरी है धरती के बारे में सोचना
मिट्टी, पानी और हवा के बारे में सोचना
पंखों की फितरत है हवा के दबाव से
स्मृतियों को बाहर कर देने की…
पर स्मृतियाँ हवाओं की तरह जरूरी हैं
मैं फिर भी यही कहूंँगा
जब कोई यह कहता है कि मुझे डर लगता है
तब दरअसल ऊंची जगहें सारी स्मृतियों को
हवा के दबाव से मुक्त कर चुकी होती हैं
और निर्वात में घूमते रहते हैं शब्द
तुम्हें भी पता है
डरावनी कही जाती चीजों को
मालूम होते हैं डर से मुक्ति के वे सारे रास्ते…

पेंटिंग- मो. सज्जाद इस्लाम
4. गिनना याद नहीं रहता

सुख सुई-सा नन्हा होता है
नन्हीं चीजें थोड़ी सी असावधानी से
कहीं भी खो जाती हैं
दुख तुरंत अपने पर फैलाता है
अपने छोटेपन से फैल जाता है दुख
गरम पानी में डाली हुई सोया बड़ी की तरह..
याद रखने की चीज न होते हुए भी
दुखों को गिनना बहुत मुश्किल हो जाता है
अनंत तक पहाड़े याद नहीं रखे जा सकते
जैसे याद नहीं रखे जा सकते
सूखे और उमस भरे दिन
जब गिनना याद नहीं रहता
तब भी नहीं गिन पाने के कारण
बारिश के दिन
अंगुलियों पर गिने जा सकते हैं…

5. गुमशुदगी

हत्यारों को सब जानते थे
सब मतलब सब
आप, हम, वह
पान की गुमटी वाला और
लपलपाती जीभ से तेज
लपलपाकर पान पर चूना
और कत्था मलने वाला लल्लन
चाय वाला और चालू को स्पेशल बताने वाला बेचन
सबने देखी थी
सबने का मतलब सबने
आपने, हमने, उसने
हाँ कोई फिल्म नहीं थी
हत्यारों ने हत्या करके
नारे लगाए और फिर
खुद की गुमशुदगी लिखाने चले गए पुलिस स्टेशन
पुलिस वाले भाई-बंद ठहरे
उन्होंने मिठाई खिलाकर
तिलक लगाकर
स्वागत किया और कहा
अब तुमलोग गुम हो गए हो
गुमशुदगी की रपट दर्ज हो गई है
जाओ गुम हो जाओ
आज से तुम सामने भी आ जाओ
तो कोई तुम्हें पहचान नहीं पाएगा
कि तुमने गुर्दे छील लिये थे…

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