21 दिसंबर। भोपाल गैस हादसे के पीड़ितों के पाँच संगठनों ने दिसम्बर 1984 के गैस हादसे में हुई मौतों और चोटों के आँकड़ों पर राज्य और केंद्र सरकारों की चुप्पी की निंदा की है। उन्होंने घोषणा की है, कि यदि उन्हें 26 दिसम्बर तक सुधार याचिका में आँकड़ों के सुधार की जानकारी नहीं मिली, तो वे सरकारों से अपना वादा पूरा करवाने के लिए शान्तिपूर्ण जन आन्दोलन शुरू करेंगे। विदित हो, कि भोपाल गैस हादसे के लिए अमरीकी कम्पनी यूनियन कार्बाइड और उसके मालिक डाव केमिकल से अतिरिक्त मुआवजे की माँग करते हुए 2010 में केन्द्र सरकार द्वारा दायर सुधार याचिका की 10 जनवरी को सुनवाई होगी।
भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने मीडिया के हवाले से बताया कि 17 नवंबर को भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग की प्रमुख सचिव ने एक बैठक में हमें आश्वासन दिया, कि मुख्यमंत्री के विचारों के अनुरूप राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि सुधार याचिका में हादसे से जुड़ी मौतों का आँकड़ा 5,295 से 15,342 तक संशोधित किया जाए और सभी 5,21,332 लोगों को लगी चोटों को अस्थायी के बदले स्थायी प्रकृति का माना जाए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में दस्तावेज जमा किए हुए दो हफ्ते बीत चुके हैं, और हम अभी भी यह नहीं जानते हैं, कि राज्य सरकार ने वाकई आँकड़े सुधारे है या नहीं।
भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष बालकृष्ण नामदेव ने मीडिया के हवाले से बताया, कि अटॉर्नी जनरल के कार्यालय के निर्देशों के मुताबिक हमने हादसे से हुए नुकसान के आँकड़ों के सुधार के लिए दस्तावेज जमा कर दिए हैं। हालांकि हम अभी भी इस बात की पुष्टि का इंतजार कर रहे हैं कि हमारे द्वारा भेजी गई जानकारी वास्तव में सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए दस्तावेजों के संकलन में शामिल की गई है। वहीं अक्टूबर में अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उनकी सरकार भोपाल पीड़ितों के सर्वोत्तम हितों को सुरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है। यदि वास्तव में सरकार ने अपना वादा निभाया है, तो इस मसले पर पारदर्शिता का इतना अभाव क्यों है? सरकार की कथनी और करनी में इतना फर्क क्यों होता है?