नया साल मुबारक ! सब कुछ ठीक तो है न?

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पेंटिंग- कौशलेश पांडेय


— श्रवण गर्ग —

ए साल का स्वागत हमें खुशियाँ मनाते हुए करना चाहिए या कि पीड़ा भरे अश्रुओं के साथ? लोगों की याददाश्त में कोई भी साल इतना लम्बा नहीं बीतता है कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले ! इतना लम्बा कि उसके काले और घने साये आने वाली कई सुबहों तक पीछा नहीं छोड़ने वाले हों।याद कर-करके रोना आ सकता है कि एक अरसा हुआ जब ईमानदारी के साथ हॅंसने या खुश होकर तालियाँ बजाने का दिल हुआ होगा।

यह जो उदासी छाई हुई है इस समय, हरेक जगह मौजूद है —दुनिया के ज्यादातर हिस्सों, कोनों और दिलों में। काफी कुछ टूट या दरक चुका है।

जिन जगहों पर बहुत ज्यादा रोशनी होने का भ्रम हो रहा है हो सकता है वहाँ भी अंदर ही अंदर घुटता हुआ कोई अंधेरा मौजूद हो। कई बार ऐसा होता है कि अंधेरों में जिंदगियाँ हासिल हो जाती हैं और उजाले सन्नाटे भरे मिलते हैं। चेहरों के जरिए प्रसन्नता की खोज के सारे अवसर वर्तमान की पीड़ाओं ने जबरदस्ती करके हमसे हड़प लिये हैं।

मुमकिन है इस बार के नए साल की सुबह भी पिछली बार की तरह ही बहुत सारे लोगों से मिल या बातें नहीं कर पाएँ। हम जानते हैं कि खिलखिला कर खुशियाँ बिखेरने वाली कुछ आत्मीय आवाजें अपने बीच लगातार अनुपस्थित महसूस करने वाले हैं।

उपस्थित प्रियजनों को नए साल की शुभकामनाएँ देते समय भी हमारे गले उस अव्यक्त संताप से भरे हो सकते हैं जो पीछे तो गुजर चुका है पर आगे का डर अभी खत्म नहीं हुआ है। चमकीली उम्मीदें जरूर आसमान में कायम हैं।

‘गणतंत्र दिवस’ पर हमेशा की तरह ही दिल्ली के भव्य ‘राजपथ’ पर चाँदनी चौक और उससे सटे ग़ालिब के ‘बल्ली मारान’ की गलियों की उदासियों के बीच हम राष्ट्र के वैभव का भव्य प्रदर्शन देखने वाले हैं। दुनिया को बताने वाले हैं कि हम अपनी व्यक्तिगत उदासियों को राष्ट्र की सार्वजनिक मुस्कान पर हावी नहीं होने देते हैं। किसी नए विदेशी मेहमान की मौजूदगी में हम अपनी सामरिक क्षमता और सांस्कृतिक विरासत का दुनिया भर की आँखों के सामने प्रदर्शन करेंगे। हम मृत्यु के प्रति भय पर भी काबू पाते जा रहे हैं। इन उम्मीदों से भरे हुए जीना चाहते हैं कि बीते साल के साथ ही वह सब कुछ भी जिसे हम व्यक्त नहीं करना चाह रहे हैं, अब अंतिम रूप से गुजर चुका है।

ब्रिटेन के राजकुमार प्रिन्स हैरी की पत्नी मेगन मार्केल ने अमेरिकी अखबार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ के लिए एक भावपूर्ण घटना का चित्रण करते हुए एक संस्मरण लिखा था। संस्मरण यह था कि अपनी किशोरावस्था के दौरान मेगन एक टैक्सी की पिछली सीट पर बैठी हुई न्यूयॉर्क के व्यस्ततम इलाक़े मैन्हैटन से गुजर रही थीं। टैक्सी से बाहर की दुनिया का नजारा देखते हुए उन्होंने एक अनजान महिला को फोन पर किसी से बात करते हुए आंसुओं में डूबे देखा। महिला पैदल चलने के मार्ग पर खड़ी थी और अपने निजी दुख को सार्वजनिक रूप से व्यक्त कर रही थी।

मेगन ने टैक्सी ड्राइवर से पूछा कि अगर वह गाड़ी रोक दे तो वे उतरकर पता करना चाहेंगी कि क्या महिला को किसी मदद की जरूरत है ! ड्राइवर ने किशोरी मेगन को भावुक होते देख विनम्रतापूर्वक जवाब दिया कि न्यूयॉर्क के लोग अपनी निजी जिंदगी शहर की सार्वजनिक जगहों पर ही जीते हैं। “हम शहर की सड़कों ही पर प्रेम का इजहार कर लेते हैं, सड़कों पर ही आंसू बहा लेते हैं, अपनी व्यथाएँ व्यक्त कर लेते हैं, और हमारी कहानियाँ सभी के देखने के लिए खुली होती हैं। चिंता मत करो ! सड़क के किसी कोने में खड़ा कोई न कोई शख़्स उस आंसू बहाती महिला के पास जाकर पूछ ही लेगा—‘सब कुछ ठीक तो है न!’’ टैक्सी ड्राइवर ने मेगन को जवाब दिया था।

पिछले सालों के दौरान कुछ ऐसा अद्भुत घटा है कि दुनिया के साथ-साथ हमने भी बिना कहीं रुके और किसी अन्य से उसके सुख-दुख के बारे पूछताछ किए जीना सीख लिया है।

हम याद नहीं करना चाहेंगे कि आखिरी बार शहर के किस अस्पताल या नर्सिंग होम में अपने किस निकट के व्यक्ति की तबीयत का हालचाल पूछने पहुँचे थे ! कोरोना काल के दौरान शहरों के कई मुक्तिधामों में अस्थिकलशों के ढेर लगे रहे और पवित्र नदियों के घाट उनके प्रवाहित किए जाने की प्रतीक्षा में सूने पड़े रहे। मानकर चला जाना चाहिए कि संबंधित परिजनों द्वारा सभी अस्थिकलशों का बाद में श्रद्धा और विधिपूर्वक विसर्जन कर दिया गया था।

खुशखबरी यह है कि इतनी उदासी के माहौल के बीच भी लोगों ने मुसीबतों के साथ लड़ने के अपने जज्बे में कमी नहीं होने दी है।

लोग संकटों से लड़ भी रहे हैं और न्यूयॉर्क के उस टैक्सी ड्राइवर के कहे मुताबिक कोई ना कोई उनसे पूछ भी रहा है—‘सब कुछ ठीक तो है न?’ अगर लड़ने का जज्बा नहीं होता तो कोरोना महामारी के समय लाखों की संख्या में भूखे-प्यासे प्रवासी मजदूर पैदल चलते हुए अपने घरों तक कैसे वापस पहुँच पाते? वे हजारों लोग जो महामारी से संघर्ष में अस्पतालों के निर्मम और मशीनी एकांतवास को लम्बे अरसे तक भोगते रहे, अपनी देहरियों पर वापस कैसे लौट पाते? नए साल में खुश रहने के लिए अब हमें किसी का हमसे इतना भर पूछ लेना भी काफी मान लेना होगा कि : ’नया साल मुबारक, सब कुछ ठीक तो है न?’


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