13 जनवरी। तमिलनाडु की राजनीति में सरकार और राज्यपाल आरएन रवि के बीच टकराव कम होने का नाम नहीं ले रहा है। बीते सोमवार को तमिलनाडु विधानसभा में दिए गए अभिभाषण में राज्यपाल रवि के नाम बदलने के सुझाव के बाद मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कदम रखा और माँग की कि केवल मूल अभिभाषण को ही रिकॉर्ड में रखा जाए, जिसकी वजह से राज्यपाल बाहर चले गए।
तमिलनाडु का नाम बदलने के राज्यपाल के सुझाव पर सत्ता में काबिज डीएमके और उसके सहयोगी दल कांग्रेस और विदुथलाई चिरुथिगाल काची ने विरोध करते हुए हंगामा शुरू कर दिया। नारेबाजी के कारण राज्यपाल ने अपने अभिभाषण को बीच में ही रोक दिया, और सदन छोड़कर बाहर चले गए। अभिभाषण के बाद सत्तारूढ़ गठबंधन के दलों ने उन पर एक के बाद एक आरोप लगाए। मामला यहीं नहीं थमा। मंगलवार को राज्य की सड़कों पर ‘गेट आउट रवि’ के पोस्टर्स लगाए गए। टीपीडीके के कार्यकर्ताओं ने कोयम्बटूर में राज्यपाल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। तमिलनाडु के अधिकतर राजनीतिक दलों ने राज्यपाल आरएन रवि को उनके पद से हटाए जाने की माँग की है।
प्रदर्शनकारियों ने राज्यपाल का पुतला भी फूंका। राज्यपाल के अधूरे अभिभाषण के बाद सत्तारूढ़ पार्टी और उनके सहयोगी दलों ने राज्यपाल पर कई आरोप लगाए। कहा गया, कि राज्यपाल राजभवन से राज्य में आरएसएस और भाजापा का एजेंडा लागू करना चाहते हैं। हम ऐसा बिल्कुल नहीं होने देंगे। चूंकि राज्यपाल के पास तमिलनाडु के अलावा नगालैंड का भी प्रभार है, इसलिए इन दलों ने उन्हें निशाना बनाते हुए कहा, नगालैंड वाली चतुराई यहाँ नहीं चलेगी। डीएमके ने सवाल उठाया है कि क्या राज्यपाल के पास बिना किसी बड़ी वजह के राज्य का नाम बदलने का हक है? नाम को लेकर शुरू हुआ विवाद अभी थमा नहीं, कि अब राजभवन से राजनीतिक दलों को भेजे गए पोंगल के आमंत्रण पत्र पर भी हंगामा शुरू हो गया है। आमंत्रण पत्र में आरएन रवि को तमिझगम का राज्यपाल लिखा गया है, उसमें तमिलनाडु शब्द का प्रयोग नहीं किया गया।
यह पूरा विवाद ‘नाडु’ शब्द को लेकर है। राज्य का नाम तमिलनाडु है, लेकिन राज्यपाल ने इसके लिए तमिझगम रखने की बात कही। ‘नाडु’ शब्द का मतलब होता है- जमीन। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, तमिल इतिहास की गलत व्याख्या और अनुवाद की जटिलताओं के कारण नाडु शब्द का अर्थ देश या राष्ट्र-राज्य हो गया है। इस तरह यहाँ राज्य को तमिल राष्ट्रवाद के तौर पर देखा जाता है। गौरतलब है, कि इसके पहले भी सत्तारूढ़ डीएमके राज्यपाल आरएन रवि पर कई आरोप लगा चुकी है। राज्यपाल को शांति के लिए खतरा बताते हुए द्रमुक ने राष्ट्रपति को एक ज्ञापन सौंपा था। जिसमें लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को लोगों की सेवा करने से रोकने के लिए उन्हें हटाने की माँग की गई थी। द्रमुक ने आरोप लगाया था कि राज्यपाल सांप्रदायिक घृणा भड़काते हैं।
द्रमुक ने राष्ट्रपति को सौंपे गए ज्ञापन में कहा था, कि राज्यपाल आरएन रवि ने संविधान और कानून के संरक्षण, रक्षा और बचाव की शपथ का उल्लंघन किया है। वे विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में अनावश्यक देरी करते हैं। सीएम स्टालिन के नेतृत्व वाली पार्टी ने आरएन रवि को संवैधानिक पद के लिए अयोग्य करार देते हुए कहा था कि कुछ लोग उनके बयानों को देशद्रोही मान सकते हैं, क्योंकि उनके बयान सरकार के प्रति असंतोष को भड़काने का प्रयास करते हैं। वे बर्खास्त होने के योग्य हैं। द्रमुक ने समान विचारधारा वाले सभी सांसदों को पत्र लिखकर आरएन रवि को हटाने के प्रस्ताव का समर्थन करने का आग्रह किया था।