— रामप्रकाश कुशवाहा —
यशस्वी कवि-कथाकार उदय प्रकाश के पांचवें कविता-संग्रह अम्बर में अबाबील का प्रकाशन-वर्ष कोरोना-काल के ठीक पहले यानी वर्ष 2019 का है। ये कविताएँ कई कारणों से पढ़े जाने के लिए उकसाती हैं। पहला तो इसलिए कि उदय प्रकाश कविताएं लिखने के बावजूद और 1980 में ही पहला कविता-संग्रह ”सुनो कारीगर” प्रकाशित होने के बावजूद उनकी ‘टेपचू’ और ‘तिरिछ’ जैसी कहानियों की अत्यधिक लोकप्रियता के कारण प्रभाव और प्रसिद्धि की दृष्टि से कविताएं और कविरूप द्वितीयक एवं समवर्ती मान लिया गया- चाहे यह मानना पाठक स्तर का ही क्यों न रहा हो। उसके बाद ‘अबूतर-कबूतर’, ‘रात में हारमोनियम’ और ‘एक भाषा हुआ करती है’ नाम से आए तीन कविता-संग्रह भी उनकी कथाकार छवि पर कवि-छवि की प्रधानता नहीं दिला सके। जबकि वस्तुस्थिति बिल्कुल भिन्न रही है। उनकी कहानियों की ताकत संवेदना और संवेगों के धरातल पर उनके कवि और काव्यात्मक होने में ही रही है। यदि इस तरह देखा जाए कि उनकी कविताएं उनकी लिखी लघुकथाएं हैं जबकि उनकी कहानियाँ गद्यात्मक प्रस्तुति में रची गयी उनकी लम्बी कविताएं हैं तो यह वक्र और विलोम कथन होते हुए भी सत्य के समीप और पाठकीय अनुभव से पुष्ट और समर्थित भी होगा।
उदय प्रकाश में विशिष्ट कवि-कथाकार के रूप में समादृत होने के बावजूद एक चिढ़ और असंतोष का भाव बचा रहा है और जिसकी पुष्टि पांचवें संग्रह की ‘कवि और कविता का होना न होना’ शीर्षक लम्बी भूमिका की निम्न पंक्तियों से होती है- “इस (तिब्बत) कविता पर उस समय के कुछ राजधानियों के चर्चित कवियों और उनके संगठनों ने विवाद पैदा किया था। हिन्दी भाषा की व्यवस्था या सांस्थानिक सत्तातन्त्र में 1975 का वह आपातकाल दुर्भाग्य से, इस देश की साधारण प्रजा की तरह आज तक भी समाप्त नहीं हुआ। इसलिए कह सकते हैं कि दो शताब्दियों के लगभग पांच दशकों तक फैले ‘दीर्घजीवी आपातकाल’ में घिरे किसी अकेले नागरिक कवि की ये कविताएँ हैं।
यह संग्रह अम्बर में विस्थापित अबाबीलों का एक घर है। उम्मीद है इसका बाहरी स्थापत्य और इंटीरियर कुछ अलग और वैयक्तिक होगा।”
कवि ने अपनी विस्तृत भूमिका में यह संकेत किया है कि कुछ अलग और वैयक्तिक क्या है – “विस्थापन, निर्वासन, बे-दखली, भय, गृहविहीनता, दिशाहारापन, व्याकुलता इन अधिकतर कविताओ में है। कहीं-कहीं क्रोध, उत्पीड़ित व्यंजना, वक्रोक्तियां और बेलौस निर्भय दुस्साहसी अभिधाएं भी हैं।” तथा ”इस संग्रह की कविताएँ अलग-अलग समय में किसी क्षणिक उद्वेग, जिसे मेरी चेतना के सबसे निकट सदा रहने वाले कवि मुक्तिबोध नें ‘दुखते-कसकते अनुभव का मूल’ कहा था, उसी क्षणिक संवेग से उपजने वाली ‘इम्पल्स’ की कविताएं हैं.”
इसमें सन्देह नहीं कि पर्याप्त अंतराल के बाद आए इस पांचवें संग्रह ”अंबर में अबाबील” की कविताएँ उदय प्रकाश की प्रतिनिधि कविताओं का संग्रह होने का प्रभाव छोड़ती हैं। इसमें उनकी 1980 की पुरस्कृत कविता ‘तिब्बत’ तो शामिल है ही, ‘न्याय’, ‘सत्ता’, ‘गोलम्बर’, फिलहाल’, ‘मुझे प्यार चाहिए’, ‘स्वर्ग’, ‘मैं जीना चाहता हूँ’, ‘उनका उनके पास’, ‘भरोसा’, ‘छह दिसंबर उन्नीस सौ बयानबे’ तथा ‘भाषा बहती वैतरणी’, जैसी कविताएँ भी हैं जो कवि के जीवन, यथार्थ, पर्यावरण, जमाने और इतिहास से सीधे-सीधे साहसिक, मुखर और गम्भीर संवाद करती हैं।
इस तरह इस संग्रह की कविताएं एक चर्चित रचनाकार की आदतन लिखी गयी कविताएं नहीं हैं। कई कविताओं में कवि अपने युवाकाल की लिखी कहानियों में व्यक्त प्रतिरोध की तरह यथार्थ से मुठभेड़ और हस्तक्षेप के संकल्प के साथ अपनी अभिव्यक्ति और भाषा में लौटा है। अधिकांश कविताएँ यथार्थ को पूरी तैयारी और निर्णायकता के साथ देखती हैं। जैसा कि ”भाषा बहती वैतरणी” कविता में देखा जा सकता है। अपनी बात कहने के लिए कवि व्यंग्यबोध और इतिहासबोध दोनों का इस्तेमाल करता है –
”तब तक स्वर्ग का निर्माण हो चुका था/ नरक भी हो गया था जहां जाने से सब डरते थे/ इसीलिए सबने अपने लिए अलग-अलग नरक बना लिये थे/ जिनमें वे कराहते हुए सब बस गए थे./ और बनाया भूतकाल बाकी दोनों कालों को रहने दिया लेकिन/भर दिया उनमें भी/ भूतकाल.”
इस संग्रह की कविताएँ ‘विष्णु की खोज में गरुड़’ (बारह कविताएँ), ‘सिद्धार्थ, कहीं और चले जाओ'(पन्द्रह कविताएँ), अरुन्धति (पांच कविताओं की एक असमाप्त श्रृंखला), ‘किसी पथ्य या दवा जैसी हँसी’ (नौ कविताऍ) ‘क’ (सात कविताएं) तथा ‘तिब्बत’ (कविता और उसकी रचना प्रक्रिया से सम्बन्धित चार कड़ी) इस प्रकार कुल पांच खंडों में व्यवस्थित हैं। ये विभाजन और वर्गीकरण कविताओं को समूहों में अतिरिक्त प्रतीकात्मक अर्थ और दीप्ति देते हैं। इस संग्रह में बहुत सारी सूक्तियां हैं।
‘स्वर्ग का ठिकाना/स्वप्न के भीतर है’
‘मुझे जीवन से प्यार है/मृत्यु से हारे बिना’ आदि।
किताब – अंबर में अबाबील (कविता संग्रह)
कवि – उदय प्रकाश
प्रकाशक – वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली
मूल्य – ₹ 199