बुलडोजर काल

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— कृष्ण कान्त —

अब बुलडोजर ही कानून है, वही संविधान है, वही अदालत है, वही जज है, वही सरकार है। यह बुलडोजर काल है।

श्मीर से कानपुर तक बुलडोजर गरीबों को रौंद रहा है। महिलाएं, बच्चे, बूढ़े सब बुलडोजर के आतंक से चीख रहे हैं। यह बर्बरता कोई आतंकी संगठन नहीं कर रहे हैं। हमारी सरकारों में ऐसे लोग बैठे हैं जिन्होंने इंसानियत को शर्मसार करने का बीड़ा उठाया है।

कानपुर में गरीब ब्राह्मण परिवार पर बुलडोजर चला दिया। प्रमिला दीक्षित और नेहा दीक्षित- दोनों मां-बेटी मिन्नतें करती रहीं कि साहेब गरीब हैं, मत उजाड़ो, कहां जाएंगे? बहरों के आंख-कान बंद थे। बर्बरता हावी थी। मां-बेटी की मिन्नतें हार गईं। दोनों उसी झोंपड़ी में जलकर मर गईं। आग उन्होंने खुद लगाई या किसी और ने लगाई, स्पष्ट नहीं है।

खबर है कि बुलडोजर झोंपड़ी को रौंदने लगा तो परिवार ने खुद को झोंपड़ी में बंद कर लिया। उसी दौरान गांव के आठ-दस लोग भी मौजूद थे जो कह रहे थे कि सबको जला दो। क्या आग उन्होंने लगाई?

कश्मीर के लोग राजा के समय के दस्तावेज दिखा रहे हैं। जिस घर में कई पीढ़ियां रहकर गुजर गईं, उसे अतिक्रमण मानकर बुलडोजर चल रहा है। अब बुलडोजर न्यायाधीश है और हम सब अतिक्रमणकारी हैं।

जब प्रशासन अमानवीयता को सेलिब्रेट करने लगता है तो जनता भी उसी में शामिल हो जाती है। लोगों को भी चर्बी चढ़ गई है। ऑंख में मांस उगा है। अकल में पत्थर पड़ गया है। सत्ता में बैठे अहंकारियों और उनके समर्थकों को जिंदा इंसानों की चीखें सुनाई नहीं दे रही हैं। सब हिंसा और बर्बरता का जश्न मनाने में लगे हैं।

यह बुलडोजर आज पूरे देश में दमन, बर्बरता और मानवता को रौंदने का प्रतीक बन गया है। यह आग का खेल है। एक जगह शुरू हुआ और पूरे देश में फैल गया है। यह ​एक दिन आपके घर भी आएगा। पहले अपराध होने पर पुलिस आती थी, अब बुलडोजर आता है। अब बुलडोजर ही कानून है, वही संविधान है, वही अदालत है, वही जज है, वही सरकार है। यह बुलडोजर काल है।

21वीं सदी के बर्बर बुलडोजर काल उर्फ मृतकाल में आपका स्वागत है।

(फेसबुक से)

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