जाँच में सहयोग नहीं देना यह संज्ञेय अपराध नहीं है

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— पन्नालाल सुराणा —

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री श्री मनीष सिसोदिया, जो राज्य के आबकारी तथा शिक्षामंत्री भी हैं,, को सीबीई ने अपनेदफ्तर में 27 फरवरी को पूछताछ के लिए बुलाया। कई सवाल पूछे गये। दूसरे दिन सबेरे 11 बजे से फिरपूछताछ शुरू हुई तथा शाम 7:15 बजे ‘वे पूछताछ में सहयोग नहीं दे रहे हैं’ ऐसा कहकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

इस तरह लगातार कई दिन पूछताछ करने के बाद ‘वे पूछताछ में सहयोग नहीं दे रहे हैं’ ऐसा कहकर गिरफ्तारकरना तथा जेल में महीनों रख देना, इस तरह के मामले आजकल बहुत बढ़ गये हैं। यह नागरिक के मूलअधिकारों पर कुठाराघात है।

किसी मामले को लेकर चार-छह सप्ताह उस व्यक्ति से सवाल पूछे जाते हैं। सवालों के जवाब कैसे देना यह तोवही व्यक्ति तय कर सकता है। पुलिस को जैसे चाहिए वैसे जवाब नहीं दिये जाते तो फिर कहा जाता है कि वहतलाशी के काम में सहयोग नहीं देता। यह कहना सरासर नाइंसाफी है। अगर वह व्यक्ति पुलिस के समक्ष पेशनहीं होता, कहीं भाग जाता है तो फिर कह सकते हैं कि,वह सहयोग नहीं दे रहा।

असल में किसी अपराध की जाँच करके मामला न्यायालय में पेश करने के लिए जो सबूत चाहिए वे जुटानापुलिस का काम है। जिस पर शक है वह अपने खिलाफ सबूत पुलिस को दे यह अपेक्षा कानून के परे है

पुलिस के काम में जब तक जान-बूझ कर रोड़े नहीं डाले जाते तब तक वह व्यक्ति जाँच में सहयोग नहीं देताऐसा कहना उचित नहीं है। कानून तो कहता है,मुजरिम ने अपराध किया इसके सभी सबूत पुलिस अपने प्रयास से ही जुटा ले।. मुजरिम अपने ही खिलाफ सबूत या गवाही दे ऐसी अपेक्षा रखना कानून से परे है। अपना बचावकरने का पूरा अधिकार नागरिक को है, तथा इस अधिकार की रक्षा करना यह पुलिस आदि का फर्ज है।

घंटों सवाल जवाब होने के बाद वह व्यक्ति जाँच के काम में सहयोग नहीं देता ऐसा कहना अनुचित है तथा उसजुर्म के लिए उसे गिरफ्तार करना यानी उसकी आजादी छीन लेना बडा अन्याय है। यह सवाल भी उठता है किआठ घंटे की पूछताछ के बाद अचानक वह जुर्म कैसे थोपा जा सकता है? पुलिस जो सवाल पूछती है उसका जैसा जवाब पुलिस को चाहिए वैसा ही जवाब देने की जिम्मेदारी उस व्यक्ति की नहीं है। अगर जाँच में रोड़े डालेजा रहे हैं तो वैसे कागजात पहले से ही तैयार करके उसके आधार पर गिरफ्तार करना यह न्यायोचित माना जासकता है। जाँच में सहयोग नहीं देता है ऐसा निष्कर्ष मजिस्ट्रेट ही दे सकता है। कार्यप्रणाली की ये सबबारीकियाँ व्यक्ति के मूल अधिकार की रक्षा के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं।

हमारे संविधान की धारा 21 में स्पष्ट लिखा है कि जीवन, संपत्ति तथा आजादी ( लाइफ, लिबर्टी एंड प्रॉपर्टी) येनागरिक के मूल अधिकार हैं तथा उनकी रक्षा करना वैसा ही अधिकार है. इन मौलिक अधिकारों को आजकलबार-बार कुचला जाता है। जनतंत्र तथा नागरिकों के अधिकारों की हिफाजत के लिए नागरिक, वकील, स्वयंसेवी संगठन, राजनीतिक दल, पत्रकार आदि सब हमेशा सावधान रहें यह बहुत जरूरी है।

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