
1. मौसम
बारिश के पानी में
नमक है
आंख के भी
यह मालूम होने के
बाद
लगा कि
यह तुम पर मर मिटने का मौसम है।
शिमला नी बसणा कसौली नी बसणा
चम्बा जाना जरुर
भोली पवित्र प्रेयसी,
पुंछ की पहाड़ी
आशना है
तुम्हारी
पगध्वनि से
तुम्हारे पदचापों का इतिहास
पुंछ के फिसलन भले रास्तों को मालूम है
कई कई बार गुजरी हो इधर से
पीर पंजाल के आबसारों को
तुम्हारे पैरों का स्वाद मालूम है बेतरह
कितनी सुबहों को पाँव पखारा है तुमने
पंजाल की ठंडी हवाओं में
तुम्हारे रुखसार के मरमर पत्ते हैं
बारहां छुआ है सबा ने
तेरे बदन के मायूस हिस्सों को
पहाड़ों के आसपास
बिखरी जेबाई से सनी कुदरत
तुम्हारी पालतू है
कभी मुझसे गुजरो
पदचिह्नों सहित
तुम्हारा घरेलू होना चाहता हूँ
पहाड़ों की तरह
2. करेजऊ
मुझे गरीब स्त्री की तरह प्यार करना
जब तुम्हारे पास आऊं
बारिश में पूरी तरह भीगकर
अपनी फ़टी कुर्ती देना
पहनने को
तुम्हारा स्पर्श बसा हो जिसमें
जिसके फटे सुराख से मेरी पीठ दीखे
सुराख जिससे
हज़ार हज़ार उल्फ़तें सांस लेती हों
जिसका कॉलर
मेरे चाक दिल सा
तुम्हारे ख्याल से लरजता हो
गरीब स्त्री की तरह प्यार करना प्रिये मुझे
जिसके चूल्हे की गैस खत्म हो गई हो
जो चाय बनाने में गुम न हो
पास बैठी बतियाती रहे
गरीब स्त्री की तरह मुझे प्यार करना सुग्गा
जिसके पास देने के लिए कुछ न हो
न देह न दीवार
न दुनिया न संसार
बारिश में जब भीगा हुआ आऊँ
उसके पास
मगर इतना कह सके –
वृष्टि तोमाके दिलाम !
3. लौटना
छोड़ आया था जो पदचिह्न तुम्हारे द्वार पर
उन्हें खोजने गया अनेक दिन बाद
धूसर आकाश के निस्संग पक्षी को साथ लिये
गोधूलि के विषण्ण आलोक में
लौटा लाया हूं
सर्वस्व जो तुम्हें पवित्रता के आवेग में
दे डाला था
लक्ष कोटि आलोकवर्ष की दूरी पार की मैंने
तुमसे दूरत्व के झोंक में
मैंने हारकर पर्वतों से क्षमा मांग ली है
जबकि सर्वदा उनसे औदात्य मांगना चाहा था
अब वृष्टि की प्रतीक्षा में दिन कटते हैं
पदचिह्नों के धुल जाने तक
वृष्टि जल में,
प्रेमापराध की ग्लान्याग्नि में
जलना है मुझे अहर्निश।

4. आनन्द
बारिश हुई
पर जल जमाव नहीं हुआ
तुम्हारी देह के भूगोल से बड़ा था
मेरा प्रेम
मन का इतिहास
कौन जानता है भला
सिवाय उस दुख के
जिसके पास एक फाउंटेन पेन है
जिसमें सब्ज रंग की स्याही भरी हुई है
जाने क्या सोचकर
मैंने एक सुग्गापंखी स्त्री से प्रेम किया
मैंने उसके छवि के आ-लोक में
छलांग लगा दी
झेलम नदी के आ-कर्षण को बर्दाश्त करते हुए
उसमें उसके पाँव पखारे
पखारते हुए मैंने पाया कि
पाँव ने पानी को पखार दिया है
शुक्र है तुम आलता नहीं लगाती
शायद मैं तुम्हें सबसे ज्यादा प्यार नहीं करता
या तुम्हें मैं सबसे ज्यादा प्यार नहीं कर
लेकिन जब भी धरती पर
या पीर पंजाल में
तुम पर मर मिटने का मौसम होगा,
सुग्गा !
सुग्गापंखी !!
मैं जन्म जरूर लूँगा
तुम पर मरने के सिवा
मिटने के अलावा
आनंद और कुछ नहीं है.
5.अनुत्क्रमणीय
एक दिन
जो जन्मा है मुक जाएगा
एक दिन
जो खिला है मुरझा जाएगा
एक दिन
जो बना है मिट जाएगा
एक दिन
जो है
वह नहीं होगा
एक दिन बुद्ध ही सही सिद्ध होंगे।
मगर एक रात
कोई गद्दन दूध निकालेगी
मेढ़े के थन से
वह वापस नहीं जाएगा थन में
एक रात
मेरी रूह के थनों से
टपकेगा प्यार
चन्न मेरे।
अनुत्क्रमणीय।
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