— ध्रुव शुक्ल —
सत्तर बरस पहले आज ही के दिन उसी सागर शहर में ढाई अक्षर-सा जन्म हुआ। नाम भी ढाई अक्षर का रखा गया।अपने शहर से निकले छियालिस बरस बीत गये। फिर उसी शहर में लौटना भी कम होता गया। शहर में न सही, उमर में लौटकर अपने शहर को कुछ वाक्यों में याद कर सकता हूॅं।
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भोर होते ही घर में पूजा-अर्चना शुरू हो गयी है। छोटे-से सिंहासन पर राधाकृष्ण विराजे हैं। हमारी बिल्ली किसी घर से चूहे के साथ छोटी-सी अन्नपूर्णा को भी पकड़ लायी, सो वे भी विराजी हैं। कोई वासुदेवा ‘अरे मोरे राम’ की टेक पर गाता हुआ द्वार खटखटा रहा है। कटरा की मस्जिद से उठती अजान के साथ बजती मंदिरों की घण्टियां सुनाई दे रही हैं जैसे अजान को संगीत दे रही हों। चिरई मेहतानी सिर पर मैले की टोकरी रखे शहर से बाहर भागी जा रही है। ठण्ड में ठिठुरती दादी सागर-ताल में कार्तिक स्नान करके घर लौट रही है। सजल नयन मां सुमिरन की कड़ियां पिरोती हुई तुलसाने पर दीप रख रही है। पिता अभी-अभी भैंसा गाॅंव से लौटकर आंगन में साइकिल टिका रहे हैं। नूर मुहम्मद मास्साब बेसरम के पेड़ से ताजी छड़ी तोड़कर स्कूल की तरफ़ जा रहे हैं।
तीनबत्ती तिगड्डा बड़े सबेरे शाहगढ़ के शुद्ध घी की महक से भर गया है। शक्कर के शीरे में गर्म जलेबियां डुबकी लगा रही हैं। बर्फी बनने के लिए अचार की चिरौंजियां भट्टी पर भुन रही हैं। डा हरिसिंह गौर के मित्र भूगर्भशास्त्री डब्ल्यू डी वेस्ट जमना मिठया की चिरौंजी की बर्फी लंदन ले जा रहे हैं। कोतवाली की घटिया पर बड़े थाल में चौबे की मावे की गुजियां लाल पत्थरों की मीनार-सी उठ रही हैं। भुनते हुए मावे में इलायची की खुशबू चकराघाट तक उड़ रही है। किसन कुल्फी वाले की आवाज़ आ रही है—झटपट मल्लाई वाला आग्यो…. जय स्तंभ के पास रावत जी की छोटी-सी दुकान पर गर्म मुंगौड़ी खाने वालों की कतार में अशोक वाजपेयी, राजा दुबे, आग्नेय और रमेश दत्त दुबे खड़े हैं।
सरस्वती वाचनालय के मैदान में लंगोट के पक्के शनीचरी टौरी वाले बाबा का मजमा लगा है। सौ साल जीने की इच्छा से भरे लोग उन्हें घेरे खड़े हैं। ढलती शाम में कामरेड महेन्द्र फुसकेले और कपूर बैसाखिया, समाजवादी रघु ठाकुर और लक्ष्मीनारायण सिलाकारी, कवि और कांग्रेसी शिवकुमार श्रीवास्तव चाचा नेहरू के बाद भारत के भविष्य पर बहस कर रहे हैं। समाजवादी नेता लाड़ली मोहन निगम राम भण्डार के दो आलू बण्डे खाकर आमसभा को संबोधित कर रहे हैं। गोवा मुक्ति संग्राम में भागीदार सहोद्रा राय ने नेहरू जी को अपना भाई मान लिया है और वे इंदिरा जी की बुआ बन बैठी हैं। चकराघाट पर कवि पद्माकर की प्रतिमा के नीचे अगरिया वाले महाराज की महाभारत कथा हो रही है। राज कपूर की फिल्म में विट्ठल भाई पटेल ने ‘झूठ बोले कौआ काटे’ गाना लिखा है। मन्ना डे की गायी हुई हरिवंशराय बच्चन की ‘मधुशाला’ का एलपी रिकार्ड रिलीज़ होकर सागर आ गया है।
परमानंद वाजपेयी अपनी अम्बेसडर कार इस गति से चला रहे हैं कि उनके साथ पैदल चलते हुए बातचीत की जा सकती है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मोहनलाल तिवारी हाथ ठेले पर ख़ुराफ़ात अख़बार बेच रहे हैं। अमर टाकीज में दिलीप कुमार की ‘लीडर’ फिल्म के टिकट न मिलने पर निराश लोग राधाकृष्ण टाकीज़ में जिन्दा नाच-गाना देखने जा रहे हैं। मन्नू जेबकट अपनी ताक में उनके बीच घूम रहा है। प्रेम दाऊ चांदी की मूठ वाली कुल्हाड़ी लेकर घोड़े पर निकले हैं। बड़े बाज़ार के सुनारों द्वारा छोड़ा गया साण्ड शहर की गायों के बीच तिगड्डे पर खड़ा है। वृन्दावन बाग का हाथी अपनी झूल डालकर मंथर-मंथर चला आ रहा है। दोस्त साइकिलों से गढ़पहरा का मेला देखकर लौट रहे हैं। पीली कोठी वाले बाबा के मजार से लोभान की गंध आ रही है। बाबा की सवारी की राह रोक कर लोग अपना भाग्य पूछ रहे हैं। धामौनी के उर्स में छोटे यूसुफ़ आजाद कव्वाली करने आने वाले हैं।
साथी बुक डिपो में अज्ञेय की किताब खोजते हुए निर्मल वर्मा के निबंधों की किताब ‘शब्द और स्मृति’ मिल गयी है। विश्वविद्यालय में भगीरथ मिश्र, बिहारी की कविता पढ़ा रहे हैं। अशोक वाजपेयी का पहला कविता संग्रह ‘शहर अब भी संभावना है’ — लोककवि पिता घर ले आये हैं। कामरेड डा.कमलाप्रसाद शहर के नये लेखकों को फुसलाकर प्रगतिशील लेखक संघ की शाखा रोपने में सफलता के करीब लग रहे हैं। निर्मल वर्मा के नये उपन्यास ‘एक चिथड़ा सुख’ की समीक्षा मदन सोनी ने लिखी है और मेरे घर आयोजित गोष्ठी में वे उसे पढ़कर सुना रहे हैं। विष्णु खरे ने टी एस एलियट की कविता ‘वेस्टलैण्ड’ का हिंदी में अनुवाद किया है जिसकी भूमिका मनोहर वर्मा ने लिखी है। बस स्टैण्ड के पास रवीन्द्र पुस्तकालय में बैठा हूं। रमेश दत्त दुबे, मुकेश वर्मा, नवीन सागर, गोविंद द्विवेदी, मदन सोनी, बृजेश कठिल के साथ रोज़ की तरह शहर में घूम रहा हूं। शनीचरी टौरी से परकोटा तक रोज पैदल चलकर कपिल तिवारी अपने गुरु जी को खाना लेकर आ रहे हैं। आचार्य रजनीश का म्युनिसिपिल स्कूल के मैदान में व्याख्यान हो रहा है। धुरेड़ी के दिन शहर के पढ़े-लिखे लोग महामूर्ख सम्मेलन का आयोजन करके शहर के लोगों को हॅंसा रहे हैं।
विश्वविद्यालय की घाटी में आग के फूल खिल उठे हैं। ईसुरी की फागें गाने का मन हो रहा है। नज़रबाग की अमराई में दोस्त अमियां खोज रहे हैं। बरिया के पेड़ तले विजयलक्ष्मी, हेमलता और उर्मिला अक्षय तृतीया पर पुतरा-पुतरियों का ब्याह रचा रही हैं। जवारों और कजलियों का जुलूस निकल रहा है। ग्रामजन देवी की भक्तें गा रहे हैं — कौनें रची पिरथवी रे दुनिया संसार … दादी माटी के कूंढ़े की राख में थोड़ी-सी आग बचाकर रख रही है। ज्योतिषी दादा शहर के लोगों के कर्म और भविष्य के बीच फंसी भाग्यरेखा पढ़ रहे हैं। कजलीवन के मैदान में कमला सर्कस के शेर दलाॅंक रहे हैं। शहर में गूॅंजती और घर तक आती उनकी दहाड़ से छोटी बहनें डर रही हैं और सर्कस में जोकर को देखकर हॅंस रही हैं। रमझिरिया के मेले में राई नाच हो रहा है और बेड़नी स्वांग गा रही है–मारो नें गुलेल, बिपदा की मारी चिरैया…
हर तीसरे संवत्सर में एक महीना बढ़ जाता है। इस अधिक समय को काटने के लिए जानकी-रमण मंदिर में भागवत की कथा हो रही है। अगरिया वाले महाराज महाभारत में भागवत और रामायण मिलाकर अपनी कथा को लम्बी करते-करते हजारों साल पीछे चले जा रहे हैं और फिर चकराघाट पर लौट रहे हैं …. एक लम्बी लोक कथा में बसे वाक्यों-सा वह शहर याद आता है।