48वां सर्वोदय समाज सम्‍मेलन मंगलवार से सेवाग्राम में शुरू

0

14 मार्च। सेवाग्राम में तीन दिवसीय 48वें सर्वोदय समाज सम्मलेन का मंगलवार को विधिवत उदघाटन निर्वासित तिब्बत सरकार के पूर्व प्रधानमंत्री, प्रो.सामदोंग रिनपोछे के आतिथ्‍य में हुआ। इस मौके पर प्रो. सामदोंग रिनपोछे ने सम्मलेन को संबोधित करते कहा कि आधुनिक सभ्यता से प्रताड़ित युवा पीढ़ी आज गांधी व विनोबा के विचारों से प्रेरित होकर सम्मलेन में सहभाग कर रही है, यह स्वागत व अभिनंदन योग्य है।

प्रो. सामदोंग रिनपोछे ने आगे कहा कि वर्तमान परिस्थिति में पूरी जनता जिन चुनौतियों का सामना कर रही है, वह बहुत विकट है। हम इन परिस्थितियों का गांधी-विनोबा के विचारों से प्रेरित होने के नाते सामना कर सकते हैं। परंपरागत रूप से कहें तो यह कलियुग का समय चल रहा है। ऐसा नहीं कि इस समय का अंत नहीं है। आज हम सभी को गांधी और अहिंसा के मार्ग पर आगे बढ़ना होगा।

विकल्प है सर्वोदय

प्रो. रिनपोछे ने आगे कहा कि गांधी और हिन्द स्वराज की बातें अगर आज के युवाओं के सामने रखी जाएं तो अधिकांश युवा कहेंगे कि यह मूर्खता है। यह कुछ लोगों का विचार हो सकता है। हमारे पहले की जो व्‍यवस्‍था और विचार हैं, स्वाधीनता की शक्ति है, उसे हम सब खो चुके हैं और विकास को सब कुछ मान बैठे हैं। पहले जमाने में विकास शब्द विशेषण था, परंतु आज इसके माध्यम से सभी लोगों को एक ही दिशा में एक ही रफ्तार से भगाया जा रहा है। आखिर इसकी सीमा क्या हैं?

सम्पूर्ण विश्व में पर्यावरण प्रदूषण, हिंसा यह सब बहुत खतरनाक स्थिति में हैं। इसके लिए अपने को हमें तैयार करना होगा। इन परिस्थितियों में विकास का अगर कोई विकल्प दे सकता है, तो वह है सर्वोदय। सर्वोदय के बिना जो विकास है, वह ठीक नहीं। उसमें अधिक लोगों का शोषण, दमन और उपयोग करके कुछ लोगों के लिए विकास हो सकता है लेकिन सर्वोदय का विकास इससे बिलकुल उलटा है। सर्वोदय विचार में सहयोग के आधार पर गांधी, विनोबा ने विकास का जो विकल्प देखा था, आज उनकी परिकल्पनाओं को पूरा करने की जिम्मेदारी हम लोगों की है। पृथ्वी और मानव के अस्तित्व को मात्र गांधी विचार से ही बचाया जा सकता है।

शक्ति सत्य और अहिंसा से मिलेगी

उन्‍होंने कहा कि वर्तमान परिस्थिति में जो चल रहा है, उसमें मनुष्य और प्रकृति के स्वभाव में विरोध है, जो काफी समय तक नहीं चल सकता है। इनकी एक गरिमा है, इनमें अपनी अपनी गरिमा के अनुसार बदलाव नहीं हो सकता है इसलिए हम लोगों को यह विश्वास नहीं रखना चाहिए कि वर्तमान परिस्थिति को रोका नहीं जा सकता है। हमें कई पीढ़ियों तक ऐसे कार्यक्रम करने और योजना बनाते रहना चाहिए। आधुनिक व्यवस्था ने प्रकृति के कई नियमों को उलटा किया है, हमें सजग रहना है।

हमें इन चुनौतियों का सामना करने की शक्ति सत्य और अहिंसा से मिलेगी, ऐसी कामना है। अगर हम कर्ता के गलत कामों का विरोध करते रहेंगे तो हम अहिंसक नहीं हो सकते। हमें गलत कामों का अहिंसक तरीके से विरोध करना होगा और कर्ता से प्रेम करना होगा। इसलिए गाँधी के सत्य, अहिंसा को अपने अंतर्मन में उतारें और प्रयास करें, जो परिवर्तन हम देखना चाहते हैं, उसे पहले अपने आप में करना होगा। तभी सम्पूर्ण जगत को बचाने वाले नये विकल्प समाज को हम दे पाएंगे।

सर्वोदय समाज के संयोजक प्रो.सोमनाथ रोड़े ने कहा कि अमृत महोत्सव वर्ष में सर्वोदय समाज का 48वां सम्मेलन सेवाग्राम में हो रहा है। महाराष्ट्र में यह 11वां और सेवाग्राम में 5वां सम्मलेन हैं। सृष्टि और मानव में शोषणरहित संबंध रहे यह सर्वोदय समाज का दृढ संकल्प है। यह सम्मेलन ऐसे मोड़ पर हो रहा है, जहां एक तरफ हिंसा और युद्ध की आग में दुनिया झुलस रही है। दुनिया की आर्थिक व्यवस्था गहरे संकट में हैं। देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतर गयी है, लोकतान्त्रिक मूल्यों का ह्रास हुआ है, लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर हुई हैं, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आधार पर निर्मित भारतीय संविधान को विफल करने के प्रयास हो रहे हैं।

अहिंसा में दीक्षित व्यक्ति से ही सही समाजवाद की शुरुआत

सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि ‘सर्वोदय’ बापू की नजर में एक ऐसा शक्तिशाली महामंत्र है, जो मनुष्य समाज को साम्राज्यवादी पूंजीवाद, साम्यवाद, समाजवाद से आगे एक नयी वैकल्पिक दिशा में ले जाता है। समाजवाद भी हिंसा को स्थान देता है। इसने कभी हिंसा को इनकार नहीं किया। असल में हिंसा के द्वारा कभी भी समाज तथा दुनिया में सही रूप से शांति की प्रतिष्ठा में उपयुक्त भूमिका का पालन नहीं कर सकते हैं। कोई कह सकते हैं कि गांधीजी खुद को तो एक समाजवादी मानते थे। गांधीजी ने भी श्रमिक शोषण के विरोध में दक्षिण अफ्रीका से आन्दोलन शुरू किया था जो बाद में अपने देश के श्रमिक शोषण के विरोध में तत्पर रहे। लेकिन दोनों के आन्दोलन पथ में काफी फर्क है। इसीलिए गांधीजी समाजवादियों जैसा केवल मात्र श्रमिक शोषण विरोधिता में सीमित नहीं थे, श्रमिकों के बीच में जो पारस्परिक शोषण होता है इसके भी विरोधी थे।

चंदन पाल ने कहा कि अहिंसा के बारे में एक धारणा लंबे समय से चलती आ रही है कि अहिंसा मात्र व्यक्ति-धर्म है और इसका प्रयोग भी व्यक्ति तक सीमित है। असल में वह सही नहीं है। अहिंसा निश्चित रूप से समाज का भी धर्म है। उसका प्रयोग भी गांधीजी ने करके दिखाया है। यह बात भी सही है कि अहिंसा में दीक्षित व्यक्ति से ही सही समाजवाद शुरू होता है। जिसको गांधीजी के शब्दों में ‘सर्वोदय’ कहते है।

चंदन पाल ने कहा कि इस महामिलन मेले से हम एक दूसरे को मदद करने, सहायता, सहयोग करने के लिए खड़े नहीं होंगे तो सम्मेलन का कोई औचित्य नहीं रहेगा। इस घड़ी में हमें अपने छोटे-बड़े असंतोष, अभिमान, अहंकार को अलग रखकर काम करने की कला सीखनी होगी।

प्रारम्भ में सम्‍मेलन के स्वागताध्यक्ष एवं महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री सुनील केदार ने उपस्थित प्रतिनिधियों का अभिनंदन किया।सम्‍मेलन की अध्यक्षता सर्व सेवा संघ के पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ गांधीवादी अमरनाथ भाई ने की। उदघाटन सत्र का संचालन संतोष द्विवेदी ने किया।

(सप्रेस)

Leave a Comment