22 मार्च. संयुक्त किसान मोर्चा के 15 किसान नेताओं की मुलाकात कृषि भवन में लंबे अरसे के बाद कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से 20 मार्च 23 को हुई। किसान नेताओं ने कृषिमंत्री को मांगपत्र सौंपकर त्वरित कार्रवाई की मांग की। बातचीत में मुख्य मुद्दा एमएसपी की कानूनी गारंटी देने वाली कमेटी बनाने का रहा। किसान नेताओं ने कहा कि सरकार द्वारा बनाई गई कमेटी में उन नेताओं को शामिल किया गया है, जो किसान विरोधी हैं तथा खेती के बाजारीकरण, निजीकरण, उदारीकरण और वैश्वीकरण के पक्षधर हैं। कृषिमंत्री ने कहा कि हमने कमेटी में 2 स्थान संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं के लिए रिक्त छोड़े हुए हैं। किसान नेताओं ने कहा कि कमेटी एमएसपी की गारंटी को केंद्रित करके बनाई ही नहीं गई है। जो कमेटी बनाई गई है, उसके अधिकतर सदस्य सरकार के पक्षधर हैं, इस कारण सरकार द्वारा बनाई गई कमेटी को रद्द किया जाना चाहिए तथा संयुक्त किसान मोर्चा के सुझाव पर नई कमेटी बनाई जानी चाहिए।
किसान नेताओं ने केंद्र सरकार द्वारा दिए गए लिखित आश्वासनों का उल्लेख करते हुए कहा कि एक भी आश्वासन को पूरा नहीं किया गया। मंत्री ने कहा कि केस वापस ले लिये गए, पराली जलाने को लेकर जो सुझाव किसान संगठनों ने दिए थे, उन्हीं के अनुरूप कानून में तब्दीली की गई। बिजली बिल में भी संयुक्त किसान मोर्चा के सुझाव पर ध्यान देकर बिल बनाया गया। किसान नेताओं ने कहा कि वर्तमान बिजली बिल में भी सबसिडी समाप्त करने तथा बिजली क्षेत्र का निजीकरण करने का प्रस्ताव है। मंत्री निजीकरण के मुद्दे पर चुप रहे लेकिन उन्होंने कहा कि सबसिडी देने का अधिकार राज्य सरकारों को है। किसान नेताओं ने कहा कि राज्य सरकारों के पास सबसिडी देने के संसाधन नहीं हैं। इसपर मंत्री ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
कृषिमंत्री ने कहा कि किसानों पर दर्ज सभी मुकदमे वापस ले लिये गए हैं। तब उन्हें किसान नेताओं ने बताया कि दिल्ली में दर्ज मुकदमे अभी चल रहे हैं। मैंने कहा कि मध्य प्रदेश के डीजीपी से जब मैं मिला था, तब उन्होंने कहा था कि उन्हें केंद्र सरकार की ओर से इस आशय का कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ है। कृषिमंत्री ने कहा कि यदि उन्हें प्रकरणों की जानकारी दी जाएगी तो वे अपनी ओर से पहल करेंगे।
किसान नेताओं ने पंजाब के 2 किसान नेताओं पर सीबीआई के छापे मारे जाने के मुद्दे को उठाया। जिस पर मंत्री ने कहा कि किसान नेता होने के कारण छापे मारे जाने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता, कोई अन्य मामला रहा होगा। उन्होंने कहा कि लिखित तौर पर उन्हें दोनों प्रकरणों की जानकारी दी जाएगी तो वे पता करेंगे कि किस कारण छापे मारे गए हैं।
फसल बीमा के मुद्दे पर भी बातचीत हुई। उन्होंने बताया कि राज्य और केंद्र सरकार द्वारा अपनी मदों से किसानों को फसल खराब होने पर मुआवजा दिया जाता है। इसपर मैंने इकाई का प्रश्न उठाया तथा मुलताई किसान आंदोलन की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि उस समय तहसील की इकाई थी, जिसे आंदोलन के बाद तत्कालीन सरकार ने पटवारी हलका किया था लेकिन खेत को इकाई बनाया जाना आवश्यक है। मंत्री ने केवल इतना कहा कि पंचायत इकाई बनाई जा चुकी है।
मैंने जब पिछले 15 दिनों में मध्य प्रदेश के 30 जिलों में आंधी, तूफान, ओलावृष्टि, अतिवृष्टि से फसलों की 50 से 70% तबाही का मुद्दा उठाया तथा तत्काल राहत राशि दिए जाने की मांग की तब उन्होंने कहा कि जल्द से जल्द सर्वे पूरा कर मुआवजा वितरण कराने का प्रयास किया जा रहा है।
बातचीत के दौरान मंत्री ने कहा कि आप ट्रेड यूनियन के लोग हैं। आपका काम करने का अपना तरीका है तथा प्रशासन भी अपने तरीके से कार्य करता है।
इसका मतलब यह था कि सरकार खुद को कारखाने के मालिक और मैनेजमेंट के तौर पर देखती है। इससे किसान संगठनों के प्रति सरकार के दृष्टिकोण का पता चलता है। जो किसान अन्नदाता है, देश की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान करता है, देश को खाद्य सुरक्षा प्रदान करता है तथा देश की बहुसंख्यक आबादी को रोजगार प्रदान करता है, उसके प्रतिनिधियों के प्रति यह रवैया उचित प्रतीत नहीं होता। पूरी बातचीत से यह समझ में आया कि सरकार संयुक्त किसान मोर्चा के साथ संवाद तो करना चाहती है परंतु उसकी मांगों के प्रति गंभीर नहीं है।
कृषिमंत्री का किसान संगठनों को संदेश एकदम साफ है कि आप अपना पक्ष ताकत से रखो, हम अपनी चाल से चलते रहेंगे।
रामलीला मैदान पर किसान महापंचायत की अनुमति देने के फैसले से यह तो दिख ही गया कि सरकार ने किसानों की ताकत के आगे घुटने टेक दिए हैं तथा वह अब उस पुरानी गलती को नहीं दोहराना चाहती जिसके चलते 380 दिन तक संयुक्त किसान मोर्चा को अपना स्थायी मोर्चा दिल्ली की सभी सीमाओं पर लगाना पड़ा था तथा 750 किसानों को शहादत देनी पड़ी थी। पूरी बातचीत के दौरान यह दिखाई नहीं पड़ा कि केंद्र सरकार को इस बात का दुख और खेद है कि उसके अड़ियल रवैये के चलते 750 किसानों की शहादत हुई। मंत्री ने अपनी ओर से तीन कृषि कानूनों का भी कोई जिक्र नहीं किया। जिससे यह तो पता चलता है कि केंद्र सरकार जो कुछ हो चुका है, उसे छोड़कर आगे बढ़ना चाहती है परंतु यह भी सच है कि आदतन सरकार ने माहौल बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पंजाब का माहौल बिगाड़ने के लिए अमृतपाल की गिरफ्तारी का प्रयास ठीक उस समय किया गया जब किसानों को दिल्ली के लिए रवाना होना था। 3 दिन इंटरनेट की सेवा पूरे पंजाब में बंद रही तथा कर्फ्यू जैसा माहौल बनाकर रखा गया। मेरी जानकारी के अनुसार खालिस्तानियों या अमृतपाल को नाम मात्र का समर्थन भी आम पंजाबियों से प्राप्त नहीं है, इसके बावजूद पंजाब का माहौल बिगाड़ा गया ताकि पंजाब के किसानों की उपस्थिति को कम किया जा सके। दिल्ली पुलिस ने ट्रैक्टरों के प्रवेश पर रोक लगाई हुई है जिसके चलते किसान अपने ट्रैक्टर ट्राली से किसान महापंचायत में शामिल नहीं हो सके।
इसके बावजूद किसान नेताओं से मुलाकात करना यह बताता है कि फिलहाल केंद्र सरकार किसानों से पंगा लेने के मूड में नहीं है। किसानों की कृषिमंत्री से मुलाकात को इस संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए कि विपक्ष के 200 सांसद जब ईडी कार्यालय पर जाकर ज्ञापन देना चाहते थे तब उन्हें ज्ञापन देने की इजाजत नहीं दी गई, शायद इसलिए भी हो कि सरकार को यह मालूम है कि यदि सांसदों को रोक दिया जाएगा तो वे अनिश्चितकालीन धरना देने वाले नहीं हैं। लेकिन यदि किसानों को रोक दिया गया तो वे अनिश्चितकालीन धरना देने का फिर से प्रयास कर सकते हैं। कुल मिलाकर बातचीत का निचोड़ यही है कि किसानों को अपनी ताकत दिखानी पड़ेगी, तभी सरकार उनकी सुनवाई करेगी।
– डॉ सुनीलम