हनुमान चालीसा पढ़ने वालों से सविनय निवेदन

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— ध्रुव शुक्ल —

नुमान चालीसा नि:स्वार्थ कपि हनुमान जी का बायोडेटा है जिसे महाकवि तुलसीदास ने रचा है। इस जीवन परिचय में राम काज करने को आतुर हनुमान जी की महिमा का वर्णन है कि कैसे उन्होंने जलधि लांघकर राम की खोयी हुई सीता का पता लगाया। रामायण में सीता धरती की तरह हैं जो जीवन के बीजरूप राम से बिछुड़ गयी हैं। अगर यह धरती राम के पास नहीं लौटेगी तो सबके जीवन में राम रसायन सूख जाएगा।

हनुमान जी इसी राम रसायन के ज्ञाता हैं। वे इसे सबके जीवन में बचाये रखने के लिए रामदूत होकर दुर्गम काज करने को तत्पर हैं। अतुलित बलधाम हनुमान ये दुर्गम काज अपने बल-बुद्धि और विद्या से ही संभव कर दिखाते हैं। वे ऐसे ज्ञान-गुनसागर हैं जो कुमति का निवारण करके सुमति की नाव में सबको बिठाकर पार लगा सकता है।

यह सुमति ‘निज मन मुकुर सुधार’ याने अपने-अपने मन के दर्पण की धूल पोंछने से आती है और सबके हृदय में हनुमान जी की तरह नि:स्वार्थ भावना जागती है। ऐसी भावना ही हमारे हृदय में हनुमान के डेरे जैसी है। जो राम की खोयी हुई धरती उनके पास ले आने में सहायक होती है और राम से बदले में कुछ नहीं मांगती। हनुमान पवन-पुत्र हैं। नि:स्वार्थ वायु ही तो सबके हृदय को सबके प्रति स्पंदित करती है। हनुमान के हृदय में राम ऐसे ही बसे हैं। रामायण में राम का परिचय भी तो सबके जीवन के स्वार्थरहित सखा के रूप में अंकित हुआ है।

हनुमान चालीसा गाते हुए यही भाव मन में गहरा होता जाता है कि राम से और उनके नाम से कहीं कुछ मांगना नहीं है बल्कि हनुमान की तरह रामचरित का रसिया होकर सबका मनबसिया हो जाना है। हनुमान जी कोई राजनीतिक सत्ता नहीं है। उनके इस बायोडेटा में साफ लिखा है कि वे उस तपस्वी रामराजा के सकल काज करने को आतुर हैं जिससे सबका जीवन सुखमय अमित फल पा सके। रामराज में हनुमान को कोई पद नहीं चाहिए।

ऐसे नि:स्वार्थ कपि हनुमान के बायोडेटा को जो लोग राजनीतिक शोर में बदल रहे हैं, वे एक दिन ऐसी दुविधा में फॅंस जाने वाले हैं, जहाँ न माया मिलती है और न राम।

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