विकास के लिए शराबबंदी एक अनिवार्य शर्त

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— कौशल गणेश आजाद —

र + आब=शराब। शर का मतलब बुरा और आब का मतलब पानी। यानी शराब का मतलब बुरा पानी। शराब फारसी शब्द है।

उक्त बुरे पानी यानी शराब पीने से मोतिहारी के तुर्कौलिया, हरसिद्धि , सुगौली और पहाड़पुर में करीब तीन दर्जन लोगों की मौत हो गई है। पिछले वर्ष सारण, मुजफ्फरपुर और भागलपुर में दर्जनों लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हुई थी। जब से बिहार में शराबबंदी कानून लागू हुआ तब से अब तक 199 लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हुई है। अब तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराब पीकर मरने वालों के परिजनों को चार लाख रुपए मुआवजा देने की घोषणा की है। चार लाख रुपए मुआवजे की घोषणा शराबबंदी के लिए कितना कारगर होगी ये भविष्य के गर्भ में है।

शराबबंदी का हम न केवल समर्थन करते हैं बल्कि शराबबंदी के लिए सतत अभियान भी चला रहे हैं। इसी कड़ी में लोक समिति के भागलपुर के जिला संयोजक गौतम मल्लाह शराब माफियाओं के खिलाफ अभियान चला रहे थे। तभी तिलका मांझी विश्वविद्यालय थाना में श्री मल्लाह पर मुकदमा दर्ज होता है और उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है। अभी वे जमानत पर बाहर हैं। शराबबंदी के पूर्ण सफल नहीं होने के पीछे पुलिस-माफिया गठजोड़ भी एक कारण है। शराब पीने से हुई इन मौतों से स्पष्ट है कि केवल कानून बना देने से पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं होती है। कानून के साथ-साथ जागरूकता अभियान भी जरूरी है । बिहार में बहुत से ऐसे संगठन और संस्थाएं हैं जो शराबबंदी के लिए प्रयासरत हैं। मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार को चाहिए कि उन संगठनों को प्रोत्साहित करें और पुलिस-माफिया गठजोड़ पर कड़ा प्रहार करें।

शराब पीनेवालों का जमीर मर जाता है। चोरी, डकैती, छिनैती, छेड़खानी की अधिकतर घटनाओं में शराबियों का हाथ होता है। सत्तर फीसदी सड़क दुर्घटनाएं शराब पीकर गाड़ी चलाने के कारण होती हैं। बहुत तरह की जानलेवा बीमारियां शराब पीने की वजह से होती हैं, जिससे लोग असमय काल के गाल में समा जाते हैं। अधिकतर घरेलू हिंसा की जड़ में शराब होती है। शराब के कारण महिलाएं प्रताड़ित होती हैं। घर तबा ह-बर्बाद होता है, उजड़ जाता है। शराब पीने वाले बड़े-छोटे की मार्यादा भूल जाते हैं, जिसका समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अधिकतर शराबी असमय मौत के मुॅंह में समा जाते हैं।

आजादी के आंदोलन के दौरान प्रमुख मुद्दों में से एक मुद्दा शराबबंदी का भी था। महात्मा गांधी ने शराब मुक्त भारत की कल्पना की थी। उन्होंने यहाँ तक कहा था कि यदि मैं एक दिन का शासक बन जाऊँ तो बिना मुआवजा दिए शराब की सभी दुकानें बंद करा दूॅं।

यह भी गौरतलब है कि किसी धर्म में शराब की स्वीकार्यता नहीं है। बौद्ध धर्म में सुरा-पान नहीं करने का संकल्प तथा सबों को इसका परित्याग करने का उपदेश निहित है। बौद्ध धर्म के सभी अनुयायियों को यह प्रण करना होता है कि वे जीवन-पर्यन्त शराब नहीं पियेंगे और न ही किसी प्रकार का मादक द्रव्य का सेवन करेंगे। सिख धर्म ने भी 15वीं शताब्दी में नशापान की मुखालिफत की थी। पुराणों में मादक पेय पदार्थ सेवन को अनैतिक बताया गया है। मार्कंडेय पुराण में सुरा-पान को पाप मानते हुए हर हाल में इससे दूर रहने और राजा को अपने राज्य में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की सलाह दी गई है। इसलाम में शराब को हराम माना गया है। अलाउद्दीन खिलजी, सुल्ताना रजिया और टीपू सुल्तान ने भी अपने-अपने शासनकाल में शराब को प्रतिबंधित किया था।

आजादी के बाद भारत की केंद्र सरकार ने अप्रैल, 1958 तक पूरे देश में शराबबंदी का लक्ष्य रखा था, जो कभी पूरा नहीं हो पाया। हालांकि आजादी के दो दशक बाद तक मौजूदा महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, ओड़िशा, कर्नाटक और केरल का बड़ा हिस्सा शराब-मुक्त था। लेकिन 1967 में इनमें से ज्यादातर राज्य सरकारों ने अतिरिक्त राजस्व के लोभ में शराब की बिक्री की अनुमति दे दी। इसके बाद 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने पूरे देश में शराब पर प्रतिबंध लगाया, पर बाद में आयी कांग्रेस सरकार ने 1981 में उसे हटा लिया। बाद के वर्षों में देश के कई राज्यों में शराब पर प्रतिबंध लगाया गया और फिर हटा लिया गया। बिहार में अप्रैल, 1916 में नीतीश कुमार की सरकार ने शराब की बिक्री और पीने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। इसे लागू करने के लिए कड़े कानून भी बनाये। क्या ये गांधी के शराब-मुक्त भारत की कल्पना की ओर बढ़ता हुआ कदम नहीं है? विनोबा, जयप्रकाश, डाॅ लोहिया, डाॅ आंबेडकर और कर्पूरी ठाकुर, सबने शराबबंदी की बात कही है।

लोक समिति लंबे समय से शराबबंदी के लिए मुहिम चला रही है। लोक समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष गिरिजा-सतीश का मानना है कि जब तक शराब पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगेगा, तब तक लोगों का सम्यक विकास नहीं होगा। इस तरह हमारी सुचिंतित धारणा है कि समाज और मनुष्य के विकास के लिए शराबबंदी एक अनिवार्य शर्त है। यह उद्देश्य सिर्फ सरकार और कानून से पूरा नहीं हो सकता। इसके लिए समाजिक स्तर पर सतत अभियान चलाने की जरूरत है।

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