
— विवेक मेहता —
इन दिनों यौन उत्पीड़न की खबरें समाज को उद्वेलित नहीं करतीं। जैसे भ्रष्टाचार जीवन का अंग है वैसे यौन उत्पीड़न भोगना भी नियति सा बनता जा रहा।
बच्चे कुपोषण के शिकार इसलिए हैं कि महिलाएं अपने सौंदर्य के लिए दूधपान नहीं करातीं। गर्लफ्रेंड के लिए कोई 55 करोड़ की टीम खरीदता है? चुनाव के समय मेरी भी सीडी बाहर आ सकती है- जैसे वक्तव्य देकर और स्नूपगेट की हरकतों से महिलाओं के प्रति पुरुष प्रधान मानसिकता जगजाहिर की हुई थी। यह संघर्ष लंबा खींचता दिख रहा है। बतंगड़ तो इस बात का होना चाहिए कि इस संघर्ष में देश के खेल के साथ-साथ देश की बेटियां का सम्मान भी दांव पर लगा है और सत्ता मौन है। देश की बेटियों से गाय की महत्ता ज्यादा है।
हम जिस दौर में हैं, जिस सोच के साथ जी रहे हैं, उसमें बतंगड़ उन्हीं बातों का बनता है जिन्हें सत्ता की सुरक्षा के लिए खड़ा किया जाता है। पेट्रोल के बढ़ते दाम, टूलकिट पर ट्वीट्स करने वाले बिकाऊ खिलाड़ी पैसों के पीछे चुप्पी लगाकर बैठ गए। पनामा पेपर्स में उनकी शेल कंपनियों का उल्लेख है। और वे हमारे रत्न भी ठहरे! इस प्रकरण में पड़ने से नुकसान ही है, फायदा नहीं। तो रीढ़ की हड्डी को मोड़कर बैग में रखना ही अच्छा है।
शोषण के विरोध में आदमी पुलिस के पास ही जाएगा। पुलिस नहीं सुनेगी तो धरना प्रदर्शन करेगा। इस पर महान खिलाड़ी रही महिला का शर्मनाक वक्तव्य आता है कि देश की इज्जत खराब कर रहे हैं खिलाड़ी। अनुशासनहीनता है यह। वक्तव्य देते वक्त वह अपना फूट फूट कर रोना भूल जाती है कि उसे एयरपोर्ट पर कोई लेने नहीं आया, होटल में उसकी व्यवस्था नहीं की। वे बीती बातें हैं। अब तो पास में राज्यसभा की रेवड़ी है, अध्यक्षता है।
अनुशासित होने का मतलब खिलाड़ियों के लिए शोषित होना और चुपचाप सहते रहना नहीं होता। राजनीति के लिए कई लोग कहते हैं जिनमें सांसद भी शामिल है कि पैसा और लड़कियां हों तो टिकट मिल जाते हैं। खेल में तो दम दिखाना पड़ता है। 3 महीने में रिपोर्ट आने वाली थी। रिपोर्ट तो आई नहीं धमकियां आ रही हैं।
महिला पहलवानों ने जब पदक जीते थे तो देश गर्व करता था। खिलाड़ियों की सारी मेहनत का श्रेय सरकार के मुखिया का हो जाता था। जब अन्याय की बात उठती है तो चुप्पी गहरा जाती है।
एक ओर तो कोई महिलाओं के शोषण की बात अपने भाषण में करता है तो उससे सूचनाएं लेने पुलिस पहुंच जाती है। पुलिस की सक्रियता पर सीना चौड़ा करने का मन करता है। दूसरी ओर महिलाएं शोषण की रिपोर्ट थाने में दर्ज करवाने जाती हैं तो रिपोर्ट दर्ज नहीं होती। इसे विडंबना कहें या आने वाले अच्छे दिनों की शुरुआत। बड़ा कठिन हो गया गलत को गलत कहना और गलत की जांच करवाना। आज तक अडानी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। न इनकम टैक्स की, न ईडी की। क्योंकि अदानी पर हमला देश पर हमला है। करोड़ों के घपले वाले देशभक्त और जो घपलों पर ध्यान खींचे वे देशद्रोही! बड़ी विचित्र स्थिति है!
बतंगड़ खड़ा करने का कोई अर्थ नहीं। भविष्य किसने देखा। वर्तमान सुधारना है। आपकी परेशानी से मुझे क्या! इसलिए अब बतंगड़ बंद।
Discover more from समता मार्ग
Subscribe to get the latest posts sent to your email.
















