13 मई। कांग्रेस पार्टी को इस बार विधानसभा चुनाव में 136 सीटें हासिल हुई हैं। इस तरह उसने न सिर्फ स्पष्ट बहुमत पा लिया है बल्कि शानदार जीत दर्ज की है। कर्नाटक में 1989 के बाद पहली बार किसी पार्टी को इतनी सीटें हासिल हुई हैं। कांग्रेस जहाँ राहुल गांधी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही थी वहीं भाजपा का चुनाव अभियान मोदीमय था। इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ज्यादा प्रभावी रही, या मोदी की रैलियाँ?
भारत जोड़ो यात्रा ने कन्याकुमारी से कश्मीर तक, 12 राज्यों से होते हुए, साढ़े तीन हजार किलोमीटर का पैदल सफर 146 दिनों में तय किया था। कर्नाटक उन राज्यों में था जहाँ भारत जोड़ो यात्रा ने ज्यादा वक्त दिया। क्या चुनाव को ध्यान में रखकर ऐसा किया गया था? यह भी कहा जा सकता है कि चूँकि कर्नाटक में सांप्रदायिक तनाव और हिंसा घटनाएँ ज्यादा हो रही थीं, इसलिए सद्भाव के मकसद से निकाली गयी यात्रा को वहाँ ज्यादा वक्त देना ही चाहिए था।
बहरहाल, चुनाव परिणाम के कोण से भी, यह पूछा जा सकता है कि भारत जोड़ो यात्रा का कैसा या कितना असर पड़ा? बेशक, कांग्रेस को मिली ऐतिहासिक जीत के पीछे भाजपा की राज्य सरकार के भ्रष्टाचार व कुशासन के प्रति जन-असंतोष से लेकर कांग्रेस की पाँच गारंटियों तक, अनेक खास कारण हैं। लेकिन क्या भारत जोड़ो यात्रा से भी फर्क पड़ा? इसमें दो राय नहीं कि यात्रा को मिले जबर्दस्त जन-समर्थन से कर्नाटक में माहौल बदलने की शुरुआत हुई। राहुल गांधी की छवि एक संजीदा नेता की बनी और उनकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ। इसका लाभ कांग्रेस को मिला होगा। अब हम देखें कि उन विधानसभा क्षेत्रों से कैसा परिणाम आया है, जहाँ से भारत जोड़ो यात्रा गुजरी।
भारत जोड़ो यात्रा कर्नाटक में 21 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरी थी। इनमें से कांग्रेस को 16 सीटें मिली हैं, जबकि भाजपा को केवल 1 सीट, जेडीएस को तीन सीट, और 1 सीट अन्य के खाते में गयी है। वर्ष 2018 में इन 21 सीटों में से बीजेपी ने 12 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस ने सिर्फ 5 और जेडीएस ने 4 सीट। पूरे राज्य के पैमाने पर देखें तो बीजेपी का वोट प्रतिशत लगभग पिछली बार जितना ही रहा है और टीवी चैनलों के विश्लेषण में इस बात का बार-बार जिक्र किया गया। दूसरी तरफ पूरे राज्य के पैमाने पर इस बार कांग्रेस के मत-प्रतिशत (वोट शेयर) में 5 फीसद की बढ़ोतरी हुई। क्या यही स्थिति उन 21 सीटों पर भी रही, जहाँ से भारत जोड़ो यात्रा गुजरी? गौर करें, जहाँ पूरे राज्य के पैमाने पर कांग्रेस के वोटों में 5 फीसद की बढ़ोतरी हुई वहीं इन 21 सीटों पर 10 फीसद की। बीजेपी का वोट शेयर पूरे राज्य के पैमाने पर पिछली बार जितना ही रहा, लेकिन इन 21 सीटों पर उसके वोट शेयर में पिछली बार के मुकाबले 2 फीसद की कमी दर्ज हुई। क्या ये तथ्य भारत जोड़ो यात्रा के असर की ओर इशारा नहीं करते?
अब हम मोदी की मेगा रैलियों का हाल देखें। बीजेपी को यह गुमान रहता है कि मोदी की रैलियाँ हर हाल में चुनाव का रुख पार्टी के पक्ष में कर देती हैं। लेकिन खूब तामझाम, शोर-शराबे और बेहिसाब पैसा बहाकर की जानेवाली इन रैलियों ने कर्नाटक में बीजेपी को क्या दिया? राज्य के 43 विधानसभा क्षेत्रों में मोदी की बड़ी रैलियाँ और रोडशो हुए। इन 43 सीटों में से 19 सीटें बीजेपी ने जीतीं, कांग्रेस ने 22 और 2 जेडीएस ने। जबकि वर्ष 2018 में इन 43 सीटों में से 22 सीटें बीजेपी ने जीती थीं, कांग्रेस ने 14, और 7 सीट जेडीएस को मिली थी।
इन 43 सीटों के मद्देनजर, पिछली बार के मुकाबले कांग्रेस को इस बार 8 सीटें ज्यादा मिली हैं, जबकि बीजेपी ने 3 और जेडीएस ने 5 सीटें गँवाई हैं। इन 43 सीटों पर भी कांग्रेस के वोट शेयर में 5 फीसद की वृद्धि हुई है, यानी उतनी ही वृद्धि जो कि पूरे राज्य का औसत है। यहाँ भी बीजेपी के वोट शेयर में 3 फीसद की कमी दर्ज हुई।
जिस मोदी मैजिक की बात मीडिया में होती रहती है वह एक मिथक है या उसका तिलिस्म टूट रहा है? जो हो, कर्नाटक के चुनाव से यह तो साफ है कि अगर चुनाव को जन-केंद्रित बनाया जाए और आम लोगों से जुड़ने की भाषा व कौशल विकसित किया जाए, तो ब्रांड-केंद्रित खर्चीले प्रचार की भी काट की जा सकती है और चुनाव को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के हथकंडों का शिकार होने से भी बचाया जा सकता है।
– राजेन्द्र राजन
(इनपुट gaurilankeshnews.com से साभार)