यह वोट की ताकत है जो गरीबों के पास है

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— रमाशंकर सिंह —

बरों के मुताबिक ज्योतिरादित्य सिंधिया ने शिवपुरी (म प्र) में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जाने-अनजाने में मुझसे जो गलतियां हुई हों, उसके लिए मुझे क्षमा करें। मैंने जो भी गलतियां की हैं उसके लिए माफी मॉंगता हूँ।

यह उस एक वोट की ताकत है जो सामान्य साधारण गरीब गुरबा मजलूमों वंचितों के हाथ में गांधी जी थमा गये थे।

जो सैकड़ों बरसों तक अपने महलों में दरबार लगाकर गलती या अपराध या अकारण बगैर कानून के लोगों को मौत की सजा सुना देते थेथे, वे एक सामान्य व्यक्ति के द्वारा चुनाव में हरा दिये जाते हैं और उन्हें एक एक वोट के लिए घर-घर गली-गली दर-दर भटक-भटक कर हाथ जोड़ कर माफी माँगनी पड़ रही है !

अस्थायी कुर्सी का अहंकार अपने साथ विनाश लाता है। समय का न्याय शायद देर से हो पर होता जरूर है।

सैकड़ों (करीब हजार) सम्राट महाराजा राजा नवाब और उनके हजारों जमींदार और इन सबके कारकुन एक झटके में सत्ताच्युत विशेषाधिकार-विहीन हो गये कि मामूली आदमी ने सौ साल की लड़ाई लड़ी गुलामी की जंजीर तोड़ने के लिए और इस लड़ाई में हजारों हंसते-हंसते अपनी जान दे दी, लाखों का जीवन जेल में सड़ा और करोड़ों ने सक्रिय प्रतिकार किया !

क्यों?

यही दिन देखने के लिए कि हमारे पूर्वजों को गुलाम बनाकर रखने वाले कैसे इतिहास के कूड़ेदान में जाते हैं।

और तवारीख़ ठठाकर हॅंसती है।

यदि राजनीतिक पार्टियों खासतौर पर कांग्रेस ने आजादी एवं गांधी जी की हत्या के बाद इन कुछ सामंती अवशेषों को शरण देने की भूल न की होती तो दूसरे सैकड़ों की तरह ये भी गुमनाम ज़िंदगी जी रहे होते।

अभी भी सामान्य घरों से उपजे नेताओं के साथ बैठकर या उनके नीचे मातहती में काम करते देखना अच्छा लगता है।

मैं निजी रूप से सिर्फ इस मामले में कांग्रेस के विपरीत भाजपा की तारीफ करूँगा कि सामंतवाद को उसकी अपनी सही जगह दिखाई और वह सब करने कहने को बाध्य किया जो वे कभी भी न कहते थे और न ही कभी सोच सकते थे, करना तो दूर की बात थी। मसलन, रानी लक्ष्मीबाई की समाधि पर जाना जहाँ इनके परिवार में पिछले 165 बरसों में कोई झांका तक नहीं।


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