मोदी सरकार के 9 साल, देश हुआ बेहाल

0

— प्रभात कुमार —

देश में 9 सालों से नरेंद्र मोदी की सरकार है। अगले साल 2024 में देश में आम चुनाव होना है। एक बार फिर से आम लोगों के बीच महंगाई और बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है। लेकिन आज का विपक्ष सरकार को इस सवाल पर संसद और संसद के बाहर घेरने में विफल दिख रहा है। नौ साल पहले भाजपा जिस तरह देश में महंगाई के मुद्दे को लेकर हमलावर थी, कांग्रेस उसके आसपास भी नहीं दीख रही। डॉ मनमोहन सिंह के शासनकाल में महंगाई के मुद्दे पर तब लोकसभा में विरोधी दल की नेता भाजपा की सुषमा स्वराज ने 9 बार स्थगन प्रस्ताव पेश किया था। सड़क से लेकर संसद तक महंगाई को लेकर विपक्ष हमलावर था। रसोई गैस की कीमत में वृद्धि को लेकर भाजपा नेताओं ने जितनी बार गैस का सिलेंडर लेकर सड़कों पर प्रदर्शन किया वैसा प्रदर्शन बीते 9 साल में नहीं दीखा।

जबकि कच्चे तेल की कीमत में गिरावट के बावजूद बीते 9 साल में पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमत जितनी बढ़ी है, वह आम आदमी के लिए कितनी परेशानी का कारण बना, यह किसी से छिपा नहीं है। डॉ मनमोहन सिंह के राज में पेट्रोल की कीमत लगभग ₹37(36.81) थी। जो 2014 में मोदी सरकार आने के बाद ₹71 हो गई। वर्तमान में ₹106 है। डीजल की कीमत 2004 में ₹24.16थी। जो मोदी सरकार में शुरुआत में ₹57 थी। अब ₹100 के पार है। घर-घर की जरूरत से जुड़ी रसोई गैस की कीमत 2004 में ₹261.50 थी, जो 2014 में ₹414 और अब ₹1100 से भी अधिक है। जब डॉ मनमोहन सिंह की सरकार थी तब विश्व बाजार में कच्चे तेल की कीमत 222 फ़ीसदी बढ़ी हुई थी। मोदी सरकार के शासनकाल में में 27 फ़ीसदी कम हुई। फिर भी पेट्रोल डीजल की कीमत में, मनमोहन सरकार की तुलना में, 3 गुना बढ़ोतरी हुई। रसोई गैस की कीमत में 4 गुना बढ़ोतरी हुई।

सरसों तेल की कीमत में तो कई गुना वृद्धि हुई। 2004 में सरसों तेल की कीमत ₹30 के आसपास थी। जो बीते 9 साल में ₹75 से बढ़कर ₹200 तक पहुंची। अप्रैल 2020 में सरसों तेल की कीमत ₹170 थी। नवंबर 20 में ₹132 मई 2021 ₹163 थी। जून 2021 में बढ़कर ₹180 पर और ₹200 तक पहुँच गयी। वर्तमान में ₹150 से लेकर ₹180 तक है। रिफाइंड की कीमत में भी इस बीच 50 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है।

यही नहीं, आटा दाल चावल की कीमतें भी काफी बढ़ी हैं। 10 साल पहले आटा की कीमत ₹15 प्रति किलो थी। अब ₹30 से अधिक है। साधारण चावल की कीमत भी अब ₹20 से बढ़कर ₹40 से अधिक हो गई है। दाल की कीमत भी लगभग दोगुनी हो गई है। अरहर दाल ₹55 से बढ़कर ₹130 पर पहुंच गयी है। चावल की कीमत में लगभग 137 फ़ीसदी का इजाफा हुआ है। गेहूं की कीमत 117 फीसदी बढ़ी है। डॉ मनमोहन सिंह के शासनकाल की तुलना में वर्तमान शासनकाल में खाने-पीने की चीजों की कीमत में ढाई गुना बढ़ोतरी हुई है। दूध की कीमत में भी अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है। 10 साल पहले दूध की कीमत ₹16 प्रति लीटर थी। वर्तमान में यह ₹50 प्रति लीटर से भी अधिक है।

भोजन के साथ-साथ कपड़े की कीमत में भी अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। मकान बनाना भी काफी मंगा हो गया है। बीते 10 सालों में सीमेंट की कीमत ₹238 प्रति बोरी से बढ़कर ₹330 से भी अधिक हो गई है। ईंट की कीमत ₹5000 प्रति हजार से बढ़कर ₹15000 प्रति 1000 से अधिक हो गई है। बालू की कीमत ₹2000 प्रति 100 वर्ग फीट से बढ़कर ₹5000 प्रति 100 वर्ग फीट भी अधिक हो गई है। छड़ की कीमत भी साडे ₹3500 प्रति क्विंटल से बढ़कर ₹7000 तक पहुंच गई है। गिट्टी की कीमत में भी इसी अनुपात में वृद्धि हुई है।

बीते 10 सालों में दवाई और पढ़ाई भी काफी महंगी हुई है। निजी स्कूलों की फीस 100 फ़ीसदी से भी ज्यादा बढ़ी है। यही हाल दवाई की कीमतों का भी है। वर्तमान में नई शिक्षा प्रणाली को लागू किए जाने के बाद सरकारी शिक्षण संस्थानों शुल्क में भी बढ़ोतरी तय हो गई है।

दुर्भाग्य है कि आम आदमी की दुर्दशा के लिए 10 वर्षों में आया फर्क वर्तमान में चर्चा का विषय नहीं है। मोदी सरकार महंगाई पर चर्चा करने के लिए तैयार नहीं है। वहीं विपक्ष इस मुद्दे को ताकतवर ढंग से नहीं उठा रहा। महंगाई के साथ-साथ बीते 10 साल में बेरोजगारी कितनी बढ़ी यह भी किसी से छुपा नहीं है। भ्रष्टाचार के मामले में भी भारत की स्थिति बीते 10 सालों में बदली नहीं है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के द्वारा किए गए सर्वे में भारत अभी भी भ्रष्टाचार के मामले में दुनिया में 40वें स्थान पर बना हुआ है। जबकि नरेंद्र मोदी ने विदेश में जमा काला धन वापस लाने से लेकर भ्रष्टाचार मिटाने के वादे जोर-शोर से किये थे। कुल मिलाकर, बीते 9 सालों में देश महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के चलते बुरी तरह बेहाल हुआ है। यह अलग बात है कि मीडिया ने इस ओर से आंख, कान बंद कर रखा है।

Leave a Comment