छह साल बाद भी तय नहीं हो पायी महंगी दवाओं के व्यापार लाभ की सीमा

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— राजू सजवान —

वाओं की अनाप-शनाप कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार ने अप्रैल 2016 में संसद में पूछे गए सवाल के जवाब में एक नीति बनाने का आश्वासन दिया था, लेकिन छह साल बाद व्यापक नीति नहीं बन पायी है।

यह आश्वासन केंद्रीय रसायन एवं उवर्रक मंत्रालय की ओर से दिया गया था। यहां तक कि फरवरी 2023 में सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति ने अपनी रिपोर्ट में मंत्रालय की लेटलतीफी के लिए नाराजगी जताई। लेकिन तीन महीने बाद भी इस पर कुछ खास निर्णय नहीं लिया गया है।

दरअसल 26 अप्रैल 2016 को केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने एक प्रश्न के उत्तर में माना था कि एक उच्च स्तरीय समिति ने दवाओं के व्यापार मूल्य (प्राइस टू ट्रेड) पर श्रेणीबद्ध व्यापार मार्जिन (ग्रेडेड ट्रेड मार्जिन) का प्रस्ताव किया था। उच्च स्तरीय समिति के प्रस्तावों को विभाग की वेबसाइट पर डाल दिया गया था और हितधारकों से टिप्पणियां मंगाई गई थी।

मंत्रालय के इस जवाब को सरकारी आश्वासनों संबंधी संसदीय समिति ने सरकारी आश्वासन माना था और इस पर मंत्रालय से जवाब तलबी शुरू कर दी थी और कोई ठोस जवाब न मिलते देखकर 9 फरवरी 2023 को संसदीय समिति ने लोकसभा में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

इस रिपोर्ट में आश्वासन समिति ने संसदीय आश्वासनों को पूरा करने में देरी पर कड़ी आपत्ति जताते हुए सिफारिश की कि मंत्रालय बिना किसी देरी के महंगी दवाओं के लिए व्यापार लाभ (ट्रेड मार्जिन) को अंतिम रूप दे, ताकि लोगों को दवाएं सबसे सस्ती दरों पर उपलब्ध हों और साथ ही संसद को दिया गया आश्वासन पूरा हो सके।

आइए पहले समझते हैं कि संसद की आश्वासन समिति क्या करती है? यह समिति मंत्रियों द्वारा सदन में समय-समय पर दिए गए आश्वासनों, वचनों, किए गए वादों की जांच करती है और इस आशक का प्रतिवेदन प्रस्तुत करती है कि ऐसे आश्वासनों को किस सीमा तक कार्यान्वित किया गया है।

सदन में कोई आश्वासन दिए जाने के बाद उसे तीन महीने के भीतर पूरा करना अपेक्षित होता है। यदि ऐसा नहीं होता है तो संबंधित मंत्रालयों को समय विस्तार की मांग आश्वासन समिति से करनी होती है।

यदि मंत्रालय उन आश्वासनों को पूरा करने में असमर्थता जताते हैं तो उन्हें आश्वासन को छोड़ने के लिए समिति से अनुरोध करना होता है। समिति ऐसे अनुरोधों पर विचार करती है और यदि वह मंत्रालय की बात से संतुष्ट रहती है तो उन आश्वासनों को छोड़ने की स्वीकृति दे देती है।

अप्रैल 2016 में महंगी दवाओं के व्यापार लाभ की सीमा तय करने संबंधी मंत्रालय के आश्वासन पर आश्वासन समिति लगातार केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय से जवाब तलबी करती तो अगस्त 2022 में रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के औषध विभाग ने आश्वासन के कार्यान्वयन की स्थिति के बारे में बताया कि इस विषय पर सक्रिय रूप से विचार किया जा रहा है, जिसके लिए विभिन्न उद्योग (फार्मा कंपनियों) के साथ व्यापक परामर्श किया जा रहा है।

विभाग के अधिकारियों ने बताया कि वर्तमान में यह मुद्दा अंतिम चरण में है और जैसे ही इसे अंतिम रूप दिया जाएगा, उसकी जानकारी आश्वासन समिति को दी जाएगी।

इस मामले में रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के औषध विभाग के सचिव ने आश्वासन समिति को विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि चूंकि यह विषय दवाओं के मूल्य निर्धारण से संबंधित है, इसलिए हितधारकों की टिप्पणियों के बाद काफी चर्चा व विचार विमर्श हुआ।

फरवरी 2019 में प्रयोग के तौर पर एक पायलट परियोजना शुरू की गई, जिसमें कैंसर की दवाओं पर दवाओं पर ट्रेड मार्जिन रेशनलाइजेशन लगाया गया और एक साल बाद यह जानने का प्रयास किया गया कि क्या रेशनलाइजेशन के बाद दवाओं की कीमतों में कमी आई या नहीं।

सचिव ने दावा किया कि इस एक साल के प्रयोग के परिणाम सफल रहे और कैंसर की दवाओं के लगभग 526 विभिन्न ब्रांडों की कीमतों में 50 से 90 प्रतशित की कमी आई।

सचिव ने यह भी बताया कि इसी प्रयोग को आधार बनाते हुए कोविड महामारी के दौरान जब चिकित्सा उपकरणों जैसे ऑक्सीजन कंसट्रेटर की कीमतों को काबू लाने के लिए ट्रेड मार्जिन रेशनलाइजेशन (व्यापार लाभ को सीमित) को लागू किया गया।

इसके अलावा पल्स ऑक्सीमीटर, ग्लूकोज मीटर व बीपी मॉनिटर आदि की कीमतों को काबू में किया गया। इसके सकारात्मक परिणामों की जानकारी रसायन एवं उर्वरक मंत्री को दी गई है। चूंकि यह नीतिगत निर्णय है, इसलिए सभी पहलुओं को देखने के बाद ही नीतिगत निर्णय लिया जाएगा।

हालांकि आश्वासन समिति ने कहा कि मंत्रालय द्वारा महंगी दवाओं के व्यापार लाभ को सीमित करने की दिशा में बहुत कम काम किया गया है। और अप्रैल 2016 में सरकार ने जो आश्वासन दिया था, छह साल बाद भी वह आश्वासन अधूरा है।

समिति ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि इस देरी का कोई व्यावहारिक कारण नजर नहीं आता, क्योंकि अलग-अलग उद्योग हितधारकों से भी परामर्श किया जा चुका है और मंत्रालय के अधिकारी स्वयं कह रहे हैं कि अब तक जो भी प्रयोग किए गए हैं, वे सफल रहे हैं।

आश्वासन समिति ने यह भी कहा कि मंत्रालय के प्रतिनिधि कोई समय सीमा नहीं बता पा रहे हैं कि कब तक यह आश्वासन पूरा हो पाएगा। जबकि आम आदमी को राहत देने के लिए दवाइयों के अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) को कम करने की सख्त जरूरत है।

खास बात यह है कि फरवरी में सौंपी गई इस रिपोर्ट के बाद भी रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय की ओर से कोई बड़ा कदम नहीं उठाया है। हालांकि 16 मई 2023 को बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि दवा उद्योग के प्रतिनिधियों के साथ मंत्रालय के अधिकारियों ने ट्रेड मार्जिन रेशनलाइजेशन की एक बैठक की है। यानी कि अभी भी बातचीत ही जारी है। इस पर ठोस निर्णय कब लिया जाएगा, कहा नहीं जा सकता।

(down to earth से साभार)

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