46 साल बाद हुए जल सम्मेलन से क्या मिला?

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— जुंबिश —

ढ़ते जल संकट पर चर्चा करने के लिए करीब आधी सदी के बाद दुनिया एक बार फिर इकट्ठा हुई। लेकिन, इस संकट से निपटने के लिए संकल्प लेने के नाम पर पहले से चले आ रहे कामों को दोहरा भर दिया गया। जबकि दुनिया में हर चार में से एक आदमी को साफ पानी और सुरक्षित जल सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं।

1970 का दशक संयुक्त राष्ट्र के लिए यकीनन बेहद महत्वपूर्ण था। इस बहुपक्षीय संगठन ने इन सालों में 9 प्रमुख वैश्विक बैठकें आयोजित कीं, जिनमें से हर बैठक ने एक ऐसे उभरते हुए खतरे या अवसर की तरफ ध्यान खींचा, जिसके लिए पूरी धरती को एकसाथ आने की जरूरत थी। यह कुछ ऐसा था, मानो दुनिया इन संकटों से कई फ्रंट पर लड़ने के लिए तैयार हो रही हो। इन सम्मेलनों में लगभग सभी देशों ने भाग लिया। वैश्विक तौर पर इसे मील के पत्थर के रूप में चिह्नित किया गया।

ये सम्मेलन पर्यावरण (1971 में स्टॉकहोम सम्मेलन), जनसंख्या और भोजन (दोनों 1974 में), महिलाओं (1975), मानव बस्ती (1976), पानी और रेगिस्तान (दोनों 1977 में), विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी (1979) और नए व नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर (1981) पर हुए थे। अगले चार दशकों में इन सम्मेलनों में से हर एक की वजह से विश्वव्यापी परिवर्तन हुए। इनके चलते कई ऐतिहासिक अधिवेशन और वैश्विक संधियां हुईं। इनमें से अधिकतर सम्मेलनों के बाद बैठकें की गईं, जिनमें उठाए गए कदमों के बारे में जानकारियां दी गईं और सभी देशों के संकल्प दोहराए गए।

लेकिन, 14-25 मार्च 1977 को अर्जेन्टीना स्थित मार डेल प्लाटा में पानी के लिए हुआ संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन बाकी आयोजनों की तरह मील का पत्थर नहीं बन सका। इसे अनियमितताओं के लिए ज्यादा जाना गया। दूसरे सम्मेलनों के विपरीत इसे किसी भी सरकार की तरफ से शुरू नहीं किया गया था और किसी भी देश ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली। हालांकि, आखिर में 105 देशों की सरकारों ने इस बैठक में भाग लिया। संयुक्त राष्ट्र के रिकॉर्ड बताते हैं कि संस्था के राष्ट्रीय संसाधन, ऊर्जा और परिवहन केंद्र (अब निष्क्रिय) के तीन वरिष्ठ अधिकारियों ने सम्मेलन की शुरुआत की और 1975 में कई देशों की सरकारों से बातचीत शुरू की, ताकि संयुक्त राष्ट्र महासभा से अनुमोदन हासिल करने के लिए प्रस्ताव पेश किया जा सके। उसके बाद दुनिया को फॉलोअप बैठक के लिए 46 साल तक इंतजार करना पड़ा, जो इस साल 22-24 मार्च को संयुक्त राष्ट्र के “जल सम्मेलन” के तौर पर न्यूयॉर्क में आयोजित की गई।

हालिया सम्मेलन का आयोजन “सतत विकास के लिए जल के अंतरराष्ट्रीय दशक” (वाटर एक्शन डेकेड) के दौरान किया गया। हालांकि, इसका औपचारिक नाम “जल और स्वच्छता पर कार्रवाई के लिए संयुक्त राष्ट्र दशक (2018-2028 के लिए संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राज्यों और हितधारकों की स्वैच्छिक प्रतिबद्धताओं) के कार्यान्वयन की मध्यावधि व्यापक समीक्षा के लिए 2023 सम्मेलन” है। यह नाम इसे विश्व सम्मेलन के तौर पर पहचान नहीं देता है।

लंबे समय तक ठहरी रहीं कोशिशें

1977 में हुए सम्मेलन को 20वीं सदी के अंत तक जल संकट से बचने की पहली कोशिश के तौर पर में पेश किया गया। इस सम्मेलन में खासतौर पर घोषणा की गई कि सभी लोगों को बुनियादी सुविधाओं की तरह ही पीने के पानी तक पहुंच का अधिकार है। इसके परिणामों को “मार डेल प्लाटा एक्शन प्लान” के रूप में जाना गया जिसमें जल संसाधनों की स्थिति का बेहतर आकलन करने के साथ ही बेहतर व्यवस्था और तकनीक का विकास करने की बात भी कही गई, ताकि इंसानों और जैव विविधता के सतत उपयोग के लिए पानी का प्रबंधन किया जा सके और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के जरिए चुनौतियों से निपटा जा सके।

2023 में हुए सम्मेलन के उदघाटन के दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने दुनिया को एक कड़वी हकीकत से रूबरू कराया, “पानी पर गंभीर खतरा मॅंडरा रहा है। हम पाशविक तरीके से जीवनदायी जल का भयंकर दोहन कर रहे हैं। सस्टेनेबल तरीके से पानी का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। हमारी वजह से धरती का तापमान बढ़ रहा है जिससे वाष्पीकरण की प्रक्रिया तेज हो गई है। हमने जलचक्र को तोड़ दिया है, पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट कर दिया है और भूजल को दूषित कर दिया है।”

इन दो जल सम्मेलनों के बीच लंबे अंतराल के दौरान पानी पर इंसानों के असर का मूल्यांकन करते हुए गुटेरेस ने कहा कि चार प्राकृतिक आपदाओं में से लगभग तीन पानी से जुड़ी हैं। हर चार में से एक व्यक्ति को पीने के लिए साफ पानी और सुरक्षित प्रबंधित जल सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं। लगभग 1.7 अरब से अधिक लोग बुनियादी स्वच्छता सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं। आधा अरब लोग खुले में शौच करते हैं। लाखों महिलाओं और लड़कियों को पानी लाने के लिए रोज घंटों तक मेहनत करनी पड़ रही है।” 1977 के सम्मेलन के मेजबान रहे अर्जेंटीना में लगातार तीसरे साल बारिश में रिकॉर्ड तोड़ कमी देखी जा रही है। इसकी वजह से वहां सोयाबीन के उत्पादन में 44 फीसदी और गेहूं के उत्पादन में 31 फीसदी की गिरावट आई है।

सम्मेलन के पहले ही दिन एक के बाद एक प्रतिनिधियों ने स्वीकार किया कि पानी के वैश्विक सर्वेक्षण में कुछ ज्यादा ही लंबा गैप आ गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने नए आंकड़ों के साथ इस सर्वेक्षण की जरूरत पर ध्यान दिलाते हुए कहा कि साफ पानी और स्वच्छता के अभाव के चलते दुनिया भर में डायरिया का शिकार हो रहे पांच साल से कम उम्र के 700 से रोज जान गंवा रहे हैं। उसने बताया, “2030 तक पूरी दुनिया को साफ पानी और स्वच्छता सुविधाएं मुहैया कराने के लिए की जा रही कोशिशों को 4 गुना ज्यादा बढ़ाना होगा। इन लक्ष्यों को हासिल करने से हर साल 8,29,000 लोगों की जान बचाने में मदद मिलेगी। यह संख्या उन लोगों की है, जो आज सीधे तौर पर गंदे पानी, गंदगी और खराब हाइजीन से जुड़ी बीमारियों के कारण जान गंवा रहे हैं।”

कहर बरपा रहे जल संकट और पानी के भविष्य पर दुनिया भर में उठाए जा रहे कदमों पर न्यूयॉर्क में 40 घंटे तक करीब 10,000 प्रतिभागियों ने बहस की। 1977 में दिए गए एक बयान (जो अब एक व्यापक रूप से स्वीकृत सिद्धांत है) को दोहराते हुए उन्होंने घोषणा की कि पानी को पूरी दुनिया की साझा संपत्ति मान लेना चाहिए। 1977 और हाल के सम्मेलन में महज एक ही अंतर है, और वह यह कि इस बार के वैश्विक जल विमर्श में जलवायु परिवर्तन और खाद्य उत्पादन प्रणाली को भी शामिल किया गया।

सम्मेलन में हिस्सा ले रहे देशों, निजी संस्थानों और बहुपक्षीय एजेंसियों ने अंतिम दिन करीब 700 स्वैच्छिक संकल्प लिए, जिन्हें “वाटर एक्शन एजेंडा” में शामिल किया गया। गुटेरेस ने कहा, “इस सम्मेलन में लिए गए संकल्प मानवता को जल सुरक्षा से लैस ऐसे भविष्य की ओर ले जाएंगे, जिसकी जरूरत धरती पर मौजूद हर इंसान को है।”

फंड के नाम पर कोरी बातें

इस सम्मेलन से जैसे परिणामों की उम्मीद थी, वाटर एक्शन एजेंडा उन पर खरा नहीं उतर सका। इसके शुरू होने से पहले उम्मीद थी कि जलवायु परिवर्तन (यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज) और जैव विविधता (यूएन कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी) की तरह ही पानी के लिए भी कोई औपचारिक समझौता हो सकेगा। ताजिकिस्तान के साथ इस सम्मेलन की सह-मेजबानी कर रहे नीदरलैंड की तरफ से पानी के लिए नियुक्त विशेष दूत हेंक ओविंक ने मीडिया ब्रीफिंग में कहा, “इस सम्मेलन से भले ही हमें कोई जनादेश नहीं मिल सका, लेकिन हम आगे की कारवाई सुनिश्चित करने के लिए दुनिया को एक-साथ लाने में सफल रहे।”

उन्होंने कहा, “दुनियाभर में जल प्रशासन टुकड़ों में बंटा है, वित्तीय व्यवस्था अव्यवस्थित है। वैज्ञानिक संसाधनों और आंकड़ों का भी अभाव है।” संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष साबा कोरोसी ने बताया कि इन कामों के लिए कुल मिलाकर 300 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक रकम खर्च करने का वादा किया गया। अपने समापन भाषण में उन्होंने कहा, “इस सम्मेलन के नतीजों में भले ही कानूनी तौर पर कोई बाध्यकारी दस्तावेज शामिल नहीं है, लेकिन फिर भी इसकी वजह से ऐतिहासिक बदलाव आ सकते हैं।”

ये 700 संकल्प ज्यादातर देशों और एजेंसियों के जल क्षेत्र में चल रहे निवेश या स्थानीय जल और स्वच्छता से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिए दशकों से लागू किए जा रहे राष्ट्रीय कार्यक्रमों पर आधारित हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका ने जलवायु के मुताबिक पानी और साफ-सफाई के बुनियादी ढांचे और सेवाओं का समर्थन करने के लिए 49 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश के संकल्प की घोषणा की। ये निवेश पहले से ही देश के जलवायु और जल क्षेत्र के कार्यक्रमों का एक हिस्सा है। जापान ने घोषणा की कि वह एशिया-पैसेफिक में पानी से संबंधित सामाजिक मुद्दों के समाधान के लिए “गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचा” विकसित करके और अगले पांच वर्षों में लगभग 500 अरब येन (3.65 अरब डॉलर) की वित्तीय सहायता प्रदान करके “सक्रिय रूप से” अपना योगदान देगा। विकासशील देशों के सामाजिक-आर्थिक विकास में सहायता पहुंचाने वाली जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (जेआईसीए) के माध्यम से जापान ऐसे बुनियादी ढांचे के कार्यक्रमों में फंड देता रहता है। वियतनाम ने प्रमुख नदी घाटियों के प्रबंधन के लिए 2025 तक नीतियों को विकसित करने और 2030 तक सभी घरों में साफ बहते पानी की पहुंच सुनिश्चित करने का वादा किया। हालांकि ये 1990 के दशक से इसके राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों का हिस्सा रहे हैं।

सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने हाल-फिलहाल में चल रहे जल-संबंधी कार्यक्रमों का हवाला देते हुए कहा कि वाटर एक्शन डेकेड के प्रति देश की प्रतिबद्धता अटूट है। उन्होंने कहा, “भारत ने पानी के क्षेत्र में 240 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है। इस देश में दुनिया में सबसे बड़ा बांध पुनर्वास कार्यक्रम लागू होने जा रहा है और साथ ही भूजल के स्तर को सही जगह पर लाने के भी प्रयास हो रहे हैं।”

पानी और स्वच्छता से संबंधित बीमारियों और आर्थिक बोझ से सबसे ज्यादा पीड़ित अफ्रीका के राष्ट्राध्यक्षों ने जल क्षेत्र के लिए अपनी शीर्ष राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को दोहराते हुए अध्यक्षीय समझौतों की घोषणा की। जलवायु के मुताबिक पानी और स्वच्छता में निवेश पर ध्यान देने वाले अफ्रीकी संघ आयोग और “कॉन्टिनेंटल अफ्रीका इन्वेस्टमेंट प्रोग्राम” ने 2030 तक प्रति वर्ष कम से कम 30 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाने की घोषणा की, ताकि इन देशों में पानी की बेहतर व्यवस्था के लिए जरूरी फंड की कमी दूर की जा सके।

अधिकतर अफ्रीकी देशों ने सुरक्षित जल और स्वच्छता के लिए सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 6 को पूरा करने की राष्ट्रीय योजनाओं को दोहराया। मोजाम्बिक सरकार ने 9.5 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश के साथ 2030 तक एसडीजी 6 की उपलब्धि में तेजी लाने के लिए “सभी आवश्यक कदम” उठाने की तरफ अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। नौ अफ्रीकी देशों की सदस्यता वाले नाइजर बेसिन अथॉरिटी (एनबीए) नाम के एक अंतर-सरकारी निकाय और जर्मन पर्यावरण मंत्रालय ने एनबीए के सदस्य देशों में एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन को मजबूत करने की परियोजना के लिए 21.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मदद देने का संयुक्त संकल्प लिया। यह परियोजना भी पहले से ही चल रही है।

यूरोपीय संघ ने 2030 तक 700 लाख लोगों को बेहतर पेयजल स्रोत और स्वच्छता सुविधाएं मुहैया कराने में मदद देने की घोषणा की और सदस्य-राज्यों को गंदे पानी की निगरानी में तेजी लाने के लिए 20 मिलियन यूरो (21.8 मिलियन डॉलर) धन उपलब्ध कराने के संकल्प की घोषणा की। यूरोपीय संघ से बाहर स्विट्जरलैंड ने संयुक्त राष्ट्र के काम में योगदान देने के लिए पांच संकल्प लिए, जिसमें यूरोप के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग की तरफ से अंतरराष्ट्रीय जल संसाधनों के सतत उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए जल सम्मेलन में सहभागिता शामिल है।

महत्त्वाकांक्षा की कमी

24 मार्च को संयुक्त राष्ट्र ने वाटर एक्शन एजेंडा अपनाया जिसके बाद दुनियाभर के संस्थानों और सिविल सोसायटी ग्रुप्स से जुड़े 114 एक्सपर्ट्स ने गुटेरेस को पत्र लिखा। इसमें उन्होंने पानी के लिए गंभीर निर्णायक कार्रवाई की कमी पर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि हम आपसे साहसिक नेतृत्व करने का आग्रह करते हैं, ताकि सम्मेलन के परिणामों में जवाबदेही, कठोरता और महत्त्वाकांक्षा का स्तर बढ़े, जिससे हमारी वैश्विक जल चुनौतियों की गंभीरता और तत्काल समाधान की आवश्यकता को समझा जा सके। उन्होंने 700 संकल्पों पर कहा कि उन्हें डर है कि उनकी असमान और असंगठित प्रकृति पहले से ही अव्यवस्थित क्षेत्र को और अधिक बिगाड़ देगी, कोई ठोस प्रगति सुनिश्चित किए बिना पानी पर राजनीतिक कब्जे को बढ़ावा देगी। स्वैच्छिक संकल्पों के तौर पर उनकी जवाबदेही न्यूनतम स्तर पर पहुंच सकती है, इससे प्रभावी समाधान की राह मुश्किल होगी।

सम्मेलन के दौरान हुए एक इवेंट में स्कॉटलैंड स्थित गैर-लाभकारी संस्था वाटर विटनेस इंटरनेशनल के कार्यकारी निदेशक और पत्र में हस्ताक्षर करने वाले निक हेपवर्थ ने कहा, “मानवता के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक को स्वैच्छिक संकल्पों और आधे-अधूरे सबूतों के आधार पर हल करने की कोशिश करना गोले-बारूदों वाली लड़ाई में चाकू ले जाने जैसा है। यह पर्याप्त नहीं है और दुनियाभर के उन सारे गरीबों के साथ हुए विश्वासघात को दिखाता है, जो जल संकट का खमियाजा भुगत रहे हैं।”

द वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट नाम की एक गैरलाभकारी शोध संस्था ने संकल्पों का विश्लेषण करते हुए कहा कि 18 मार्च तक वाटर एक्शन एजेंडा में पेश किए गए कुल संकल्पों में से 74 फीसदी यानी 290 से अधिक संकल्पों में फंडिंग के लिए स्पष्ट लक्ष्य ही नहीं थे। काम पूरे करने के लिए जरूरी पैसे के बिना ये संकल्प बेमतलब हैं। संस्था में पानी से जुड़े मुद्दों के लिए ग्लोबल डायरेक्टर चार्ल्स आइसलैंड का कहना है कि केवल एक तिहाई संकल्प ही गेम-चेंजर हैं, जो जल संकट से उबरने में काफी हद तक मदद करेंगे। मुझे लगता है कि स्वैच्छिक संकल्प एक अच्छी शुरुआत है। हर स्वैच्छिक संकल्प में एक पॉइंट ऐसा आता है, जहां आप उसके लिए मुहैया कराए जाने वाले पैसे के बारे में बात करते हैं, लेकिन सम्मेलन में मौजूद अधिकतर लोगों ने इस बारे में कोई बात नहीं की।

(down to earth से साभार)

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