समाज को संदेश देते रिजल्ट

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— डॉ. कश्मीर उप्पल —

स वर्ष के आईएएस और दसवीं-बारहवीं के रिजल्ट में देश और प्रदेश की लड़कियों और गरीब वर्ग के छात्रों ने अपने सीमित साधनों और अभ्यास के बल पर अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है। यह केवल एक समाचार नहीं बल्कि समाज को उसकी नई सुबह का सुनहरा संदेश भी है। इस संदेश को अनदेखा करना या भूल जाना सूर्योदय को सूर्यास्त समझ लेने जैसा होगा।

भारत की ऑल इंडिया सिविल सर्विसेस की आईएएस बनाने वाली परीक्षा भारत की ही नहीं बल्कि विश्व की सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण एवं कठिन परीक्षा मानी जाती है। इस वर्ष इस परीक्षा में एक तिहाई अथवा 34 प्रतिशत महिलाएं चयनित हुई हैं। यही नहीं वरन सबसे ऊपर के चार स्थानों पर भी और टॉप के 20 में से 12 पर महिलाएं ही चयनित हुई हैं। ऑल इंडिया सिविल सेवा की लिखित और साक्षात्कार परीक्षा में सफल 933 भर्तियों में 320 महिलाओं ने अपना स्थान बनाया है, इसके पहले के वर्षों में इनको इतनी बड़ी सफलता कभी किसी वर्ष नहीं मिली थी।

आईएएस परीक्षा में महिलाओं की सफलता का महत्त्व विश्व बैंक द्वारा जारी एक रिपोर्ट के संदर्भ में और अधिक बढ़ जाता है। विश्व बैंक की 2022 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी वर्ष 2005 में 32 प्रतिशत थी जो वर्ष 2020-21 में गिरकर 25 प्रतिशत रह गई थी। इस बार यूपीएससी के रिजल्ट ने देश की महिलाओं के बढ़ते हुए सामर्थ्य को सिद्ध और रेखांकित किया है।

इस वर्ष के रिजल्ट में कई संदेश छुपे हुए है जिन्हें पढ़ना बहुत जरूरी है। इस वर्ष मैनपुरी के सूरज तिवारी ने आईएएस की परीक्षा बहुत खराब पारिवारिक स्थिति के होते हुए भी पास की है। उनके पिता लोगों के पुराने फटे कपड़े सिलते हैं और सूरज ने अपनी किताबों का खर्चा निकालने के लिए पढ़ाई के साथ-साथ ट्यूशन भी पढ़ाई है। इसी तरह केरल की काजल राजू ने एक हाथ से विकलांग और शैरिन सिहाब ने दोनों पैरों से विकलांग होने के बाद भी इस परीक्षा को पास किया है। मुंबई में झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाले एक मजदूर के पुत्र ने घर पर ही रहकर पढ़ाई कर यह परीक्षा उत्तीर्ण की है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि बहुत अधिक सुविधाएं और साधन, अध्ययन में एक तरह की बाधाएं भी बन जाते हैं। इनमें साधनों के मैनेजमेंट में परीक्षार्थियों का अधिकांश समय बीत जाता है। जैसे बहुत अधिक तेल में डूबी हुई बाती जलती नहीं है, इसके लिए उसे निचोड़कर तेल को कम करना पड़ता है तब वह प्रज्वलित होती है। इसी तरह प्रतियोगिताओं में भी और विद्यार्थी जीवन में भी होता रहता हैं।

इन प्रतियोगी परीक्षाओं की तरह देश एवं प्रदेश की स्कूली छात्र-छात्राओं ने भी अपनी बारहवीं एवं दसवीं बोर्ड परीक्षाओं में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। इस रिजल्ट के आंकड़ों की जटिलताओं में जाए बिना यह समझा जा सकता है कि मध्यम वर्गीय एवं इसके नीचे के परिवारों के छात्र-छात्राओं ने अपना सर्वश्रेष्ठ रिजल्ट प्रस्तुत किया है। हम कह सकते हैं कि इस तरह के रिजल्ट से गरीबी भी गबरीली हो गई है।

केंद्रीय एवं राज्य के बोर्डों में अधिकतम अंक लाने वाले विद्यार्थियों द्वारा व्यक्त उदगारों में कई-कई संदेश भरे पड़े है। इन परीक्षाओं में सफलतम विद्यार्थियों ने अपनी सुविधाओं से अधिक अपने त्याग और अपनी अनुशासित जीवनशैली का गौरव के साथ उल्लेख किया है। इन अधिकांश विद्यार्थियों ने टेलीविजन अर्थात मूरख-बक्सा से दूरी बनाये रखने का उल्लेख किया है। इनमें से अधिकांश बच्चों ने बताया है कि उन्होंने मोबाइल का किस प्रकार सकारात्मक उपयोग किया है और यूट्यूब पर अपने कोर्स से संबंधित लेक्चर सुने और समझे हैं।

अत: वर्तमान में स्कूल और कॉलेज में प्रवेश लेनेवाले एवं अध्ययनरत विद्यार्थियों को समझना चाहिए कि स्टडी या अध्ययन का अर्थ पढ़ना और लिखना दोनों होता है। दुख की बात है कि अधिकांश विद्यार्थी पुस्तकें और नोट्स पढ़ते ही रहते हैं वो भी कभी टीवी और कभी मोबाइल के साथ। अक्सर यह बात भुला दी जाती है कि परीक्षा लिखने के माध्यम से होती है इसलिए वर्षभर पढ़ने के साथ-साथ लिखने का भी अभ्यास बहुत जरूरी हो जाता है। परीक्षा के समय तक विद्यार्थियों की कॉपियों का कोरा छूट जाना यही बताता है कि इनके द्वारा बहुत कम लिखा जाता है। इसी तरह लिखने की सामग्री अर्थात पेन आदि की मांग भी परीक्षाओं के समय ही अधिक होती है।

इन विद्यार्थियों को समझना होगा कि हमारा मस्तिष्क भी एक तरह के बर्तन की तरह है, इसके स्वच्छ और साफ न रहने से इसमें पड़ने वाला दूधरूपी ज्ञान भी फट जाता है। हमारे घरों में दूध के बर्तन को तो बहुत साफ रखा जाता है परंतु बच्चों के मस्तिष्क को स्वस्थ और स्वच्छ रखने की तरफ कम ही ध्यान दिया जाता है।

इस संदर्भ में पालकों को भी चाहिए कि वह अपने बच्चों को अपना स्टेटस-सिम्बल या परिवार की शान की चीज न बनाकर उनके अध्ययन पर अधिक ध्यान दें।

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