ब्रज श्रीवास्तव की पॉंच कविताएँ

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पेंटिंग- कौशलेश पांडेय
पेंटिंग- कौशलेश पांडेय

Braj

1. एक बटन दबाएगा

जहाँ जहाँ स्वार्थी
मनुष्य रह रहा होगा
हो जाएंगे सूराख ही सूराख
धरती के बदन में

निर्जला व्रत करने वाली दादी
से नहीं सीखेगा
पानी का सम्मान करते हुए
प्यासे रहने का अभ्यास करना
एक मशीन बुलाएगा
और चीर डालेगा
धरती का सीना
जश्न मनाएगा
पाकर एक इंच की जल धार

पानी की चिंता करने
वालों के बीच से उठ कर चला जाएगा
घर के दरवाजे बंद कर लेगा
हो जाएगा शामिल
निश्चिन्तों की जात में

पड़ोसियों की
प्यास को अनदेखा करेगा वह
एक बटन दबाएगा
और गर्व से
डालेगा मोटी बौछार
अपनी कार पर।

2. मगर

ख़ामोश हूंँ
भरा हुआ हूंँ विचारों और भावनाओं से
मगर

मगर बातें करने का मन हो रहा है
राजनीति तो जीवन में है नहीं
न ही वैसा अन्य कुछ
मगर सावधानी उतनी ही रखना है

अनकहे की लंबी श्रृंखला है
परतें भी नहीं जिनकी
पेंसिल की कतरनों की छिलकों जैसी सुंदर
मगर व्यर्थ हैं वे औरों के लिए

सुनसान हूँ और निस्वर
मगर अनेक साज बज रहे हैं
घंटियां मौन हैं घुंघरू की
तत्पर हैं एक अनुनाद बिखेरने को
मगर उनके भी होंठों पर मगर शब्द बैठा है

एक मगर बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है
असंवेदनों की आशंकाएं
इसकी पर्याय हैं
मैं इसीलिए ख़ामोश हूं
इस वक्त
इसी में ही मुमकिन है अब चैन
मगर अब बोलने को मजबूर किया जा रहा है
मगर उस तरफ जो कान हैं
वे ठीक ठीक नहीं सुनते बातों को
व्यर्थ जाएगा मेरा बुदबुदाना

3. हालांँकि

कविता निष्कर्ष देती है क्या
उसे निर्णय का कथन
सुनाने के लिए अधिकार दिया गया है क्या

उसे कितने तापमान पर
रहकर क्वथन करना होगा
ओले की तरह गिरना होगा
आहिस्ते से जाकर बैठ जाना होगा
दूब के दुबले बदन पर
उसे कौन बताएगा ये शिक्षक मित्र की तरह

उसे नीति या नैसर्ग में से एक चुनने
का आदेश कौन देगा
किस शब्दमाला को पहने वह
उतरे किस छंद में
लाए विचार विंची, वेन गाग या सार्त्र की जमीन से
गाए वह इंशा की ग़ज़ल या
सोचती रहे एक पौराणिक किरदार को
उसकी मर्जी है

या आप ही उसके स्वामी बनना चाहते हैं
और किए बैठे हैं आंखें लाल
जो नहीं सुनी उसने किसी की न अर्जी न हुक्म

प्रकृति की तरह
वही तो है एक शय स्वायत्त
हालांकि दुर्जनों ने उसे भी
नुकसान पहुंचाना छोड़ा नहीं है।

पेंटिंग- दिलीप शर्मा
पेंटिंग- दिलीप शर्मा

4. मोर्चा

सीधे सादे वृक्ष को
संकीर्ण सोच की आरी से
काटा जा रहा है
एक सवाल का जवाब
चार सवालों से दिया जाता है
शब्दों के अर्थ चौंक रहे हैं
लगभग सदमे में हैं
कविताएं

जिनको शांति की सुगंध फैलाने
के लिए चुना गया
उनकी आँखें लाल हैं
कुछ झूठे इस समय मालामाल हैं

देह भाषा से तलाशे
जा रहे हैं विमुख लोग
उनके कानों में
डाला जा रहा है स्मृति का शीशा
परिभाषाएं गोदने की तरह
चिपकाई जा रही हैं
लोगों के बदन पर

प्रतिक्रियाएं गालियों और गोलियों की
तरह आती हैं
हर दो व्यक्ति दो ध्रुवों में बंट गए हैं
झूठ झूठ झूठ चल रहा है
केवल आसमान को मालूम है कि
किसका मोर्चा सही है
मगर उसे भी दे दी गई है सौगंध

5. बर्फ़ के कपड़े

दिनों ने बर्फ़ के कपड़े पहन लिये हैं
रातों का एक छोर जैसे हिमालय में रखा है

ठंडी सुबह का एक हाथ दिन से मिला है
एक रात से
जैसे कोई तैयारी करता है उत्सव की
नदियाँ तालाब और झरने
उत्साह से सर्दियों के लिए तत्पर हैं

प्रकृति अभी धरती के इस हिस्से में
ठंडी हवा भेज रही है

रक्षा करते हुए स्वयं की
या अहो अहो करते हुए
हम तो केवल उपभोक्ता हैं
कुदरत के ऐसे ही प्रदायों के।

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