विशालतम जनसंख्या दायित्व ही नहीं, ताकत भी है

0

— डॉ. लखन चौधरी —

देश की विशालतम जनसंख्या हमारी सबसे बड़ी समस्या और चिंता बनी हुई है, बल्कि इस समय देश की सबसे बड़ी चुनौती और सबसे बड़ा दायित्व भी है। अब तो हम चीन को भी पार कर चुके हैं। 142 करोड़ से अधिक की विशालतम आबादी के लिए जीवनयापन की तमाम बुनियादि सुविधाएं उपलब्ध कराना, करवाना सरकारों के लिए भी आसान नहीं है। भोजन, पानी, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि जीवन की आधारभूत और बुनियादी जरूरतों की उपलब्धता सुनिश्चित करना बहुत बड़ी चुनौती है। इसलिए भारत की विशालतम जनसंख्या को अक्सर दायित्व के रूप में देखा एवं परिभाषित किया जाता रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह अवधारणा बदलने लगी है, बदली है और लगातार बदल रही है।

अब हमारी विशालतम जनसंख्या दायित्व ही नहीं बल्कि आंतरिक एवं बाहरी दोनों मोर्चों पर बाजार की ताकत भी है। देश की विशालतम आबादी हमारे संघीय राज्यों की अर्थव्यवस्थाओं की संभावनाएं बन रही है, बल्कि बन चुकी है। देश की विशालतम जनसंख्या हमारी अर्थव्यवस्था के लिए अब दायित्व ही नहीं अपितु हमारी ताकत भी है और अर्थव्यवस्था के विकास में महती भूमिका अदा कर रही है। देश की विशालतम जनसंख्या हमारी अर्थव्यवस्था के लिए अब बाजार पैदा कर रही है।

आज जब दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं में सुस्ती और मंदी का आलम है, तमाम विकसित देश विकास दर में स्थिरता का रोना रो रहे हैं, ऐसे समय में हमारी अर्थव्यवस्था में पर्याप्त मांग बनी हुई है, जो निवेश को लगातार आकर्षित कर रही है।

इस समय देश की विशालतम आबादी को संसाधन के रूप में तब्दील करने की जरूरत है। चीन ने यही किया है, जिसकी बदौलत आज चीन अमेरिका को आंखें दिखा रहा है। चीन ने अपनी विशाल जनसंख्या को संसाधन के रूप में तब्दील करते हुए आर्थिक विकास का एक ऐसा आंतरिक ढांचा खड़ा कर लिया है, जिसे आज दुनिया का कोई भी देश चुनौती नहीं दे सकता है। इस विशालतम आबादी का चीन को यह फायदा हुआ कि उसने दुनिया की सबसे सस्ती चीजें, वस्तुएं बनाने में विशेषज्ञता, दक्षता हासिल कर ली। घर-घर में कुटीर उद्योग-धंधों की तरह सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग-धंधे एवं कारोबार का विकास व विस्तार कर लिया।

घरेलू और स्थानीय उद्यमिता तथा उद्यमशीलता के विकास का भरपूर दोहन करते हुए चीन ने अपनी आर्थिक ताकत इतनी बढ़ा ली है कि आज अमेरिका या यूरोप का कोई भी देश उसका मुकाबला नहीं कर सकता है। इसी कारण आज पूरी दुनिया चीन की हरकतों से परेशान होते हुए भी उसका कुछ नहीं कर पा रही है। चीन की विशाल जनसंख्या की उद्यमशीलता का मुकाबला करने के लिए भारत को छोड़कर दुनिया में किसी के पास उतनी बड़ी आबादी नहीं है। हमारा यही दुर्भाग्य है कि हम संभावनायुक्त होने के बावजूद बेबस, बेकार एवं लाचार पड़े हैं। हमारी विशालतम आबादी संभावनायुक्त होते हुए, दायित्व मात्र बनी हुई है।

सरकार ने योजना आयोग का नाम बदलकर नीति आयोग कर दिया, लेकिन नीति आयोग की नीतियां, योजनाएं, कार्यक्रम एवं उपलब्धियां धरातल पर कहीं नजर नहीं आती हैं। वास्तविकता यह है कि कि आज क्रयशक्ति समता के आधार पर सुदृढ़ एवं सम्पन्न होने के बावजूद देश की जनता गुणात्मक शिक्षा, उत्तम स्वास्थ्य एवं रोजगार-आजीविका के मामले में पिछड़ी हुई है। दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद गरीबी, बेकारी, आय एवं धन के वितरण में असमानता जैसी सामाजिक-आर्थिक विषमताएं एवं समस्याएं गंभीर व विकराल बनी हुई हैं।

आज दुनिया का शायद ही कोई देश होगा जहां का आम जनमानस घोर संकटों, समस्याओं, कठिनाइयों से घिरा होने के बावजूद अपने राजनीतिक अधिकारों का इस्तेमाल अपनी चिंताओं, परेशानियों, चुनौतियों से निपटने के बजाय नितांत विवेकशून्यता से भावुकता के लिए करता होगा। यह सब इसलिए क्योंकि हमारी सरकारों ने हमारी बहुसंख्यक जनसंख्या को कभी भी संसाधन एवं सभावनाओं के तौर पर शिक्षित, प्रशिक्षित एवं विकसित करने का प्रयास ही नहीं किया। इसका नतीजा यह रहा है कि हमारी विशालतम आबादी देश के लिए हमेशा बोझ बनी रही। इसलिए प्रगति एवं विकास की अपार संभावनाओं के बावजूद हमारा देश आज तक विकसित देशों की श्रेणी में नहीं आ सका है।

वैसे किसी देश के लिए 75 साल का वक्त तरक्की, प्रगति, उन्नति के हिसाब से बहुत अधिक नहीं माना जाता है या नहीं हेाता है, लेकिन जब वह देश अर्थव्यवस्थाओं के आकार, क्षमता एवं संभावनाओं की दृष्टि से दुनिया का 5वां बड़ा देश हो तो उम्मीदें तो अवश्य ही बढ़ ही जाती हैं, और बढ़नी चाहिए। जब अर्थव्यवस्थाओं के आकार, क्षमता एवं संभावनाओं के अनुसार इतनी बड़ी दुनिया के केवल चार विकसित देश शीर्ष पर हों, तो उम्मीदें बढ़ना स्वाभाविक है। सरकार से सवाल-जवाब क्यों नहीं हो कि इतने सालों में इतनी संभावनाओं के बावजूद आमजन की आकांक्षाएं पूरी क्यों नहीं हो रही हैं? देश के साधनों, संसाधनों का इस्तेमाल कहां, कैसे हो रहा है? ये सवाल तो आमजन को पूछना चाहिए। यदि जनमानस से यह सवाल नहीं उठ रहा है तो भी उसके लिए क्या, कौन जिम्मेदार है? यह भी एक स्वाभाविक सवाल है।

बात देश की इतनी बड़ी जनसंख्या की जो लगातार बेहिसाब बढ़ती जा रही है, और देश के लिए बोझ बनते-बनते, दायित्व निभाते-निभाते अब समस्या बन चुकी है। ऐसी समस्या जिसके कारण देश को अन्य कई तरह की जैसे गरीबी, बेकारी, अशिक्षा, अज्ञानता, असमानता, गंदगी, बीमारी, अस्वच्छता जैसी अनगिनत समस्याएं घेरे हुए हैं। लेकिन भारत की विशालतम जनसंख्या विकास का वाहक भी बन सकती है। हाँ इसके लिए नीतियां और प्राथमिकताएं बदलनी होंगी। ऐसी नीतियां बनानी होंगी जिससे आमलोगों की क्रयशक्ति में इजाफा हो। और यह तभी हो सकता है विषमता पर अंकुश लगे तथा आम लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ें। अभी तो उलटा हो रहा है।

Leave a Comment