12 जुलाई। मप्र के रीवा जिले में भू माफिया की कारगुजारियां बढ़ती जा रही हैं। रीवा भू माफिया के गोरखधंधे की मिसाल बनता जा रहा है, अलबत्ता रीवा अपवाद नहीं है। रीवा जैसी कहानी देश के और भी बहुत से शहरों, और शहर बनते कस्बों की है।
भ्रष्ट व्यवस्था के चलते भू माफिया पनप रहे हैं। पुलिस, राजस्व विभाग, रजिस्ट्री विभाग की मिलीभगत के चलते इस तरह के काम को बढ़ावा मिलता है।रीवा शहर में भी भूमाफिया के आतंक से अधिकांश भूस्वामी अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। जमीनी फर्जीवाड़े में सफेदपोश अपराधियों के शामिल होने से वास्तविक भूस्वामी परेशान हो रहे हैं। भू माफिया के द्वारा फर्जी दस्तावेज बनाकर गलत तरीके से रजिस्ट्री कराने का गंदा खेल चल रहा है। भू माफिया गिरोह में ऐसे बेरोजगार नौजवानों का इस्तेमाल भी हो रहा है जो रातों-रात करोड़पति बनने के सपने देखा करते हैं। फर्जी एग्रीमेंट के कागजात भू माफिया के द्वारा बहुत सुनियोजित तरीके से बनवाए जाते हैं। इसी आधार पर फर्जी तरीके से रजिस्ट्री भी करा ली जाती है।
यदि ऐसे गिरोह के खिलाफ कभी कोई कागजी सुराग हाथ लगता है तो पुलिस कार्रवाई नहीं होने से भू माफिया गिरोह अपने को बेखौफ महसूस करता है। इस गिरोह के द्वारा फर्जी तरीके से जमीन की रजिस्ट्री की नकल निकलवा ली जाती है। जमीनी फर्जीवाड़े में पटवारियों की भूमिका कम खतरनाक नहीं जिनके द्वारा भू स्वामी के नाम की ऋण पुस्तिका तक फर्जी व्यक्ति का चित्र लगाकर तहसील कार्यालय से जारी करा दी जाती है, जिसकी जानकारी वास्तविक भूमिस्वामी को नहीं होती है। इसी को आधार बनाकर जमीन की रजिस्ट्री और नामांतरण का खतरनाक खेल भी होता है। ऐसी स्थिति में भूस्वामी को अपनी जमीन बचाने के लिए कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने होते हैं। वास्तविक भूस्वामी के कीमती समय और पैसे दोनों की बर्बादी होती है और न्याय की प्रतीक्षा में जिंदगी गुजर जाती है। भू माफिया के खिलाफ तत्काल एफआईआर दर्ज होना चाहिए। इसके चलते भू माफिया पर बड़े पैमाने पर अंकुश लगेगा।
इधर यह भी देखने को मिल रहा है कि अनेक पटवारी सरकारी केंद्रों में बैठने की जगह अपना खुद का ऑफिस खोले हुए हैं जो रिश्वतखोरी का अड्डा बने हुए हैं। जिला प्रशासन भ्रष्टाचार को रोकने का जितना भी दावा करे दीपक तले अंधेरे की स्थिति है। गलत तरीके से हो रही रजिस्ट्री से भी शासन को राजस्व लाभ मिलता है जिसके चलते प्रशासन के द्वारा प्रभावशाली कदम नहीं उठाए जाते बल्कि अदालत का रास्ता बता दिया जाता है, जिसमें लोग जिंदगी भर उलझे रहते हैं। ऐसे कई मामले सामने आए हैं लेकिन राजस्व प्रशासन, पुलिस, रजिस्ट्री ऑफिस के बीच ऐसा कोई तालमेल देखने को नहीं मिलता जिससे इस तरह के कूटरचित दस्तावेजी अपराधों को रोका जा सके। यदि प्रभावित पक्ष को समय रहते संयोगवश इसकी सूचना मिल गई तो किसी तरह वह अपनी जमीन को बचा लेता है।
लेकिन उसके लिए भू माफिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराना आसान नहीं है। इसकी बड़ी वजह यह है कि भू माफिया को कानूनी शिकंजे में लेने में बहुत अधिक ढिलाई है। भू माफिया के द्वारा संबंधित विभागों के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों को खुश रखने के लिए काफी पैसे खर्च किए जाते हैं जिसके चलते उनके खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हो पाती है। यदि कभी कोई पकड़ा भी जाता है तो मामला इतना अधिक कमजोर बना दिया जाता है कि अदालत से उन्हें जमानत मिल जाती है और आगे चलकर बरी हो जाते हैं। इस तरह के लोगों के पास पूरा आपराधिक नेटवर्क होता है और उनसे उलझने वालों को जान का खतरा भी होता है।
लोगों के द्वारा सीमांकन कराने, चौहद्दी कराने के बाद भी जमीन सुरक्षित नहीं है। बाउंड्री वॉल बनाने के बाद भी जमीन का फर्जीवाड़ा हो रहा है। महंगा प्लाट खरीदने के बाद हर किसी के पास इतने पैसे नहीं होते कि वह उस पर बड़ा निर्माण कार्य करा सके। किसी तरह वह जमीन का सीमांकन करा पाता है। जमीन को चिन्हित करने के लिए किसी तरह चौहद्दी बनवा लेता है। भू माफिया के डर से वह लाखों रुपए कर्ज लेकर बाउंड्री वॉल बनाता है जिससे बनाने वाले लोगों को काम मिल जाता है फिर भी फर्जीवाड़े के चलते भूस्वामी की जमीन सुरक्षित नहीं रहती है।
रीवा शहर में ऐसे कई मामले प्रकाश में आए हैं जिसमें फर्जी तरीके से कागजात तैयार करके रजिस्ट्री करवा ली जाती है। रजिस्ट्रार ऑफिस के द्वारा यह कह दिया जाता है कि यदि कोई आपत्ति लगाना है तो ₹250 की रसीद कटाइए। फर्जी रजिस्ट्री रोकने के लिए कोर्ट से स्टे लाने की बात करने लगते हैं। यह सवाल काफी महत्वपूर्ण है कि जब किसी को पता ही नहीं कि उसकी रजिस्ट्री कब कौन व्यक्ति करा रहा है तो अदालत का स्थगन आदेश किस आधार पर लाएगा? सामान्य तौर पर रजिस्ट्रार ऑफिस को आपत्तिकर्ता की शिकायत को संज्ञान में लेना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो यह मान लेना चाहिए कि इस तरह के फर्जीवाड़े में रजिस्ट्रार ऑफिस की भी मिलीभगत रहती है।
किसी व्यक्ति को कहीं से यह खबर लगती है कि उसकी जमीन गलत तरीके से बेची जा सकती है तो इस तरह के संदेह पर कोई सुनवाई नहीं है। सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि रजिस्ट्रार ऑफिस केवल कागज देखता है। वास्तविक भूस्वामी की जांच-पड़ताल सही तरीके से नहीं होती है जिसके चलते फर्जी रजिस्ट्री की आशंका काफी बढ़ जाती है। जमीनी फर्जीवाड़े को रोकने के लिए जब राजस्व अधिकारियों से संपर्क किया जाता है तो उनके द्वारा भूस्वामी को यह नसीहत दी जाती है कि वह रजिस्ट्रार ऑफिस के संपर्क में रहे। आखिरकार भूस्वामी रजिस्ट्रार ऑफिस में कब तक आपत्ति लगाकर बैठा रहेगा? फर्जी एग्रीमेंट और फर्जी रजिस्ट्री के मामलों को रोकने के लिए पुलिस की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। पुलिस को यदि एक भी सुराग हाथ लग गया तो वह अंतिम छोर तक पहुंच सकती है। लेकिन देखने को मिलता है कि पुलिस भी अपना हित साधने के लिए आरोपी के साथ खड़ी हो जाती है और फिर आरोपी का भी आवेदन लेकर दूसरी कहानी लिखने लगती है।
भूमाफिया एक संगठित गिरोह है। इसमें बड़े-बडे़ लोग शामिल हैं। यह भी देखने को मिलता है कि फर्जी एग्रीमेंट तैयार करने वाले और बहुत से जमीन खरीदने वालों की आपसी सांठगांठ रहती है। यदि कभी कोई मामला उजागर हो गया तो आरोपी के द्वारा अपना पैसा फॅंस जाने की झूठी कहानी गढ़कर सहानुभूति बटोरी जाती है। पुलिस के यहां आवेदन देकर यह बताया जाता है कि उसके साथ भी फ्रॉड हुआ है। फर्जीवाड़ा करने वाले के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की जगह उसके साथ फ्रॉड होने की मनगढ़ंत कहानी गढ़कर सहानुभूति बटोरी जाती है। इस नौटंकीबाजी में पुलिस का हाथ होने से देर सवेर सारा मामला रफा-दफा कर दिया जाता है। किसी के घर में चोरी हो जाए और फिर चोर के यह कहने पर कि चोरी का माल कोई और ले गया, पुलिस चोर के साथ सहानुभूति दिखाएं यह बात अत्यंत आपत्तिजनक है।
वास्तविक भूस्वामी को यह तसल्ली दी जाती है कि उसकी जमीन सुरक्षित है लेकिन आरोपियों की कहानी बदलने के बाद फर्जीवाड़े के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पाती है। कायदे से पुलिस को फर्जी एग्रीमेंट बनाने वाले के खिलाफ उसी तरह कार्रवाई करना चाहिए जिस तरह वह हत्या के मामले में दफना दिए गए व्यक्ति के कंकाल को खोजकर निकालती है। लोगों की जिंदगी भर की कमाई से खरीदी गई जमीन को हड़पकर भूमाफिया करोड़ों रुपए कमा रहे हैं। भूमाफिया जमीन को विवादित बनाकर वास्तविक भूस्वामी को इतना अधिक तंग कर देते हैं कि वह अपनी जमीन को औने पौने दाम में बेचकर छुटकारा पाना चाहता है। इस गंदे खेल की जानकारी सभी को है लेकिन यह काफी तकलीफदेह बात है कि शासन प्रशासन इस बारे में सख्त कदम नहीं उठाता है। भू माफिया के ख़िलाफ़ शिकायत करने वालों को पुलिस का सहयोग मिलना चाहिए जिससे अपराधियों के गलत हौसले बुलंद नहीं होने पाएंं। लेकिन ऐसा नहीं होने से भू माफिया दुष्प्रभाव बढ़ता जा रहा है।
– अजय खरे
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