ये कहां आ गए हम?

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पीयूसीएल की संगोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रभाकर सिन्हा
पीयूसीएल की संगोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रभाकर सिन्हा

— अच्युतानंद किशोर ‘नवीन’ —

पिछले दिनों पीयूसीएल की एक संगोष्ठी में प्रभाकर जी के बीज वक्तव्य देने के बाद प्रश्नोत्तरी का दौर चला। उसके बाद दुबारा हस्तक्षेप करते हुए प्रभाकर जी श्रोताओं को अतीत में ले गए। दरअसल अतीत की नींव पर ही भविष्य का निर्माण होता है। दुर्भाग्य से हम आज इसका विपर्याय ही देख पा रहे हैं। यह भी गौरतलब है कि उपस्थित महानुभावों में सचिव अंकित आनंद ही इकलौते नौजवान थे।

प्रभाकर जी ने बताया कि सन पचपन में जबरदस्त छात्र आंदोलन हुआ था। वह आंदोलन के नेतृत्व की कतार में थे। पुलिस लाठीचार्ज में उनकी कलाई की हड्डी टूट गई थी। मगर उनके नाना रामचरित्र सिंह, जो सरकार में सिंचाई और बिजली मंत्री थे और उनके कांग्रेसी विधायक पिताजी के लिए यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं थी। आगे प्रभाकर जी ने बताया कि सरकारी दमन के खिलाफ मुकदमा लड़ने के लिए पटना यूनिवर्सिटी ने एक लाख रुपया मंजूर किया था।

प्रभाकर जी ने बताया कि उन्होंने और दीगर लोगों ने दिग्गज कांग्रेसी नेता महेश प्रसाद सिंह के खिलाफ अभियान चलाया था। मगर जब रामदयालु सिंह कॉलेज में उनकी नियुक्ति का मामला आया तो महेश बाबू कॉलेज कमिटी के अध्यक्ष होने के बावजूद निरपेक्ष बने रहे, सहजता से नियुक्ति हो गई।

चौहत्तर के आंदोलन के क्रम में छात्रों के बीच लोकनायक जयप्रकाश जी की सभाएं प्रभाकर जी और उनके साथियों ने विभिन्न कॉलेजों में करवाईं, कहीं कोई मामला नहीं खड़ा हुआ था। आज राहुल गांधी दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रावास में छात्रों से मिलने जाते हैं तो उनको रोक दिया जाता है।

उन्नीस सौ सड़सठ में रामदयालु सिंह कॉलेज में छात्रों पर गोली चलाई गई थी, जिसमे एक छात्र और एक प्रोफेसर शहीद हो गए थे। घटना के बाद आंदोलन ने तूल पकड़ लिया था। प्रभाकर जी इसके संयोजक थे। प्रभाकर जी और उनके साथियों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री केबी सहाय से मुलाकात की और न्यायिक जांच की मांग रखी। मुख्यमंत्री विभागीय जांच कराने के आग्रही थे, मगर इन लोगों की न्यायिक जांच की मांग मंजूर कर ली गई।

प्रभाकर जी ने इसके बाद की घटना का जिक्र नहीं किया, वजह साफ थी कि वह आत्मश्लाघा से बचना चाहते थे। मगर उसे बताना आज ज्यादा मौजूं है।

रामदयालु सिंह कॉलेज वाला आंदोलन जन-आंदोलन में तब्दील हो गया था। इनके पिता कांग्रेसी उम्मीदवार थे और सोशलिस्ट पार्टी से शिवशरण सिंह (जो बाद में एकाधिक बार सांसद रहे) उम्मीदवार थे। कॉलेज शिक्षक संघ का निर्णय था कि कांग्रेस के उम्मीदवार को हराने के लिए अभियान चलाना है। शिवशरण सिंह प्रभाकर जी से मिलते हैं और उनसे कहते हैं, जब आप लोगों का निर्णय कांग्रेस को हराने का हो गया है तो मेरे लिए चलकर प्रचार करें। प्रभाकर जी धर्मसंकट में पड़ गए। उन्होंने शिवशरण जी से कुछ वक्त मांगा। फिर प्रभाकर जी ने अपने शुभेच्छुओं से परामर्श किया। उनके मित्रों की राय थी कि प्रभाकर जी अपने पिता के क्षेत्र को छोड़ कर दूसरी जगह कांग्रेस हराओ अभियान चलाएं। प्रभाकर जी को लगा यह दोहरा मानदंड अनैतिक है। आखिरकार अपने पिता से मिलकर अपनी दुविधा जाहिर की। उनके पिता ने कहा, “यह इंग्लैंड अमरीका नहीं है, जैसे ही आप मेरे विरुद्ध प्रचार करेंगे उसी क्षण मैं चुनाव हार जाऊंगा। फिर भी यदि आप नैतिकतावश मेरा विरोध करना चाहते हैं तो स्वतंत्र हैं।”

और वही हुआ। प्रभाकर जी ने इलाके में घूम-घूम कर लोगों से कहा, “मेरे पिता साधु प्रवृत्ति के हैं, मगर इनकी पार्टी कांग्रेस पार्टी लोगों पर गोली चलाती है, इसलिए मेरे पिता को वोट न दें।” इस प्रचार का जबरदस्त असर हुआ और इनके पिता चुनाव हार गए।

हमारी पार्टी समाजवादी जनपरिषद के पूर्व जिला अध्यक्ष राधेश्याम सिंह प्रभाकर जी के ही इलाके के हैं। वह कहते हैं, इलाके के बड़े बुजुर्ग आज तक प्रभाकर जी की तीखी आलोचना करते हैं कि कैसा कुपात्र है जिसने अपने पिता को ही हरवा दिया।
राधेश्याम भाई इलाके में प्रचलित एक लोकोक्ति कहते हैं –
“साबुन में सनलाइट, माचिस में टेका
कोकाई के हरालौक कोकाइए के बेटा।”
(प्रभाकर जी के पिताजी का नाम ब्रजनंदन सिंह था, जिन्हें इलाके में लोग कोकाइ बाबू कहते थे)

कभी-कभी अतीत में विचरण करना भी प्रेरणादायी होता है। आज के समय में कोई यदि सरकार के विरोध में ट्वीट भी कर दे तो उसे कारावास हो जा सकता है, देशद्रोह तक का मुकदमा दर्ज हो जा सकता है। एक टीवी पत्रकार ने स्कूल के मध्याह्न भोजन में नमक रोटी खाते दिखा दिया तो उसे जेल हो गया, कोविड में यदि किसी ने ऑक्सीजन सिलेंडर अप्राप्य होने का संदेश क्या दिया, फौरन पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया। इसलिए आज के संदर्भ में इन प्रसंगों का जानना बेहद जरूरी है।

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