किसानों और कामगारों के ऐतिहासिक सम्मेलन ने किया आंदोलन के नए दौर का एलान

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24 अगस्त। एकता और संकल्प के ऐतिहासिक इजहार के साथ नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में अखिल भारतीय मजदूर किसान संयुक्त सम्मेलन संपन्न हुआ। यह सम्मेलन संयुक्त किसान मोर्चा और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच, के द्वारा साझे तौर पर आयोजित किया गया था। सम्मेलन में हजारों लोगों ने प्रतिनिधि के तौर पर शिरकत की, वहीं तमाम किसान संगठनों और श्रमिक संगठनों के नेताओं का एकसाथ आना एक ऐतिहासिक घटना है।

यह भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है कि किसानों और कामगारों के इस साझा सम्मेलन ने खुलकर सांप्रदायिक हिंसा की निंदा की, उसके प्रति आगाह किया और देश की एकता, भाईचारे और धर्मनिरपेक्षता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का इजहार किया। सम्मेलन के पोस्टरों में भी इस प्रतिबद्धता को व्यक्त किया गया था।

सम्मेलन की शुरुआत 2014 के बाद से केंद्र सरकार द्वारा अपनाई गई आक्रामक कॉर्पोरेट-समर्थक नीतियों द्वारा उत्पन्न खतरनाक स्थितियों के बारे में बताने के साथ हुई। सम्मेलन में इन नीतियों को मजदूर-विरोधी, किसान-विरोधी, जन-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी करार दिया गया और कहा गया कि इन नीतियों के फलस्वरूप राष्ट्र की अर्थव्यवस्था तथा एकता और अखंडता के लिए विनाशकारी परिणाम सामने आए हैं।

सम्मेलन ने केंद्र सरकार की कॉर्पोरेट-समर्थक और किसान-विरोधी नीतियों के कारण भारत में कृषि संकट पर प्रकाश डाला, जिसके परिणामस्वरूप किसानों की आय में गिरावट आई है और ऋणग्रस्तता तथा आत्महत्याएं बढ़ रही हैं।

सम्मेलन ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में 13 महीने के ऐतिहासिक संघर्ष को याद किया, जिसने दमन, दुष्प्रचार, कठोर मौसम और कोविड महामारी सहित प्रतिकूल परिस्थितियों के खिलाफ किसानों के संकल्प को जाहिर किया। सम्मेलन में कहा गया कि लिखित आश्वासन के बावजूद, केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और बिजली (संशोधन) विधेयक के संबंध में किसानों से लिखित वादा करके भी मुकर गयी।

सम्मेलन ने बढ़ती बेरोजगारी, घटती रोजगार सुरक्षा और आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों के साथ मजदूरों के मुद्दों को भी उठाया। नई श्रम संहिता के माध्यम से श्रमिकों के अधिकारों के क्षरण और कृषि और प्रवासी श्रमिकों, जिनके पास सामाजिक सुरक्षा नहीं है और जिन्हें गरीबी में धकेल दिया गया है, की बिगड़ती स्थिति पर भी प्रकाश डाला गया।

सम्मेलन ने सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों से लेकर शिक्षा और बैंकिंग तक विभिन्न सेक्टरों को प्रभावित करने वाली सरकार की निजीकरण नीतियों की कड़ी निंदा की। आम नागरिकों पर अधिक करों का बोझ डालने और सामाजिक कल्याण लाभों को कम करने के साथ-साथ कॉर्पोरेट को दी गई कर-छूट और ऋण माफी पर सवाल उठाए गए। राष्ट्र के संघीय ढांचे के क्षरण, विभाजनकारी सांप्रदायिक नीतियों और असहमति को दबाने के प्रयासों की निंदा की गई।

किसान आंदोलन, बिजली कर्मचारियों की एकजुट कार्रवाई और बीपीसीएल, सीईएल और इस्पात संयंत्रों में श्रमिकों के विरोध प्रदर्शन जैसे संयुक्त संघर्षों की सफलता को याद करते हुए, सम्मेलन ने श्रमिक-विरोधी और किसान-विरोधी नीतियों को चुनौती देने के लिए समन्वय बढ़ाने का आह्वान किया।

सम्मेलन का समापन मांगपत्र जारी करने के साथ हुआ, जिसमें एमएसपी की कानूनी गारंटी सहित केंद्र सरकार द्वारा दिए गए लिखित आश्वासन को पूरा करने, पीएमएफबीवाई को वापस लेना और सभी फसलों के लिए एक व्यापक सार्वजनिक क्षेत्र की फसल बीमा योजना को लागू करना, एक व्यापक कृषि ऋण माफी लागू करना, महंगाई को नियंत्रित करना और आवश्यक वस्तुओं पर जीएसटी हटाना; खाद्य सुरक्षा की गारंटी करना; शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करना; राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन लागू करना, निजीकरण और एनएमपी को समाप्त करना, सभी श्रमिकों के लिए व्यापक सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना, पुरानी पेंशन योजना को बहाल करना, अति अमीरों पर कर लगाना; कॉर्पोरेट कर बढ़ाना; संपत्ति कर और उत्तराधिकार कर आदि को फिर से लागू करना, जैसे मुद्दे शामिल थे।

सम्मेलन में राष्ट्रव्यापी कार्रवाई के आह्वान की भी घोषणा की गई, जिसमें 2021 में लखीमपुर खीरी में किसानों के नरसंहार की याद में 3 अक्टूबर को काला दिवस के रूप में मनाना और 26 से 28 नवंबर तक प्रत्येक राज्य की राजधानी में राजभवन के सामने महापड़ाव का आयोजन करना शामिल है। दिसंबर 2023 और जनवरी 2024 के लिए और बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन की भी योजना बनाई गई।

सम्मेलन देश के किसानों, श्रमिकों और मेहनतकश जनता से सरकार की विनाशकारी नीतियों के खिलाफ एकजुट होने और श्रमिकों, किसानों और आम लोगों के हितों की रक्षा करने के दृढ़ आह्वान के साथ संपन्न हुआ।

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