— नवनीश कुमार —
25 अगस्त। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उप्र में गुंडा एक्ट के बड़े पैमाने पर दुरुपयोग को लेकर चिंता जताई है। कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि अपनी सनक में अधिकारी गुंडा एक्ट का मनमाना इस्तेमाल कर रहे हैं। यूपी गुंडा नियंत्रण अधिनियम के तहत कार्रवाई में एकरूपता नहीं है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि लोक शांति के लिए खतरा बने समाज में भय फैलाने वाले आदतन अपराधी को गुंडा एक्ट का नोटिस दिया जाना चाहिए, केवल एक आपराधिक केस पर गुंडा एक्ट की कार्रवाई नहीं की जा सकती है, इस एक्ट के तहत व्यक्ति को नगर सीमा से बाहर करने का उपबंध है। इसके बावजूद एक आपराधिक केस पर ही गुंडा एक्ट का नोटिस देकर दुरुपयोग किया जा रहा है।”
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यूपी के कार्यकारी अधिकारी अपनी सनक और मनमर्जी से गुंडा एक्ट की असाधारण शक्तियों का दुरुपयोग कर रहे हैं। वे एक मुकदमे या कुछ बीट रिपोर्ट पर ही नोटिस जारी कर रहे हैं। यह निवारक अधिनियम को कुंद बनाने जैसा है। कोर्ट ने यूपी सरकार को 31 अक्तूबर तक एक गाइडलाइन जारी करने का निर्देश दिया है, ताकि कार्रवाई में एकरूपता आ सके।
न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी और न्यायमूर्ति मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने बुधवार को अलीगढ़ के गावेर्धन की याचिका को स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया। कहा, इस गाइडलाइन का अधिकारियों द्वारा गंभीरता से पालन किया जाए, ताकि इसके अनुपालन में एकरूपता रहे। स्थानीय अखबार अमर उजाला की खबर के अनुसार, कोर्ट ने हाईकोर्ट रजिस्ट्रार को भी निर्देश दिया है कि वह आदेश की कॉपी प्रदेश के सभी डीएम और कार्यकारी अधिकारियों को भेजकर प्रसारित कराएं, जिससे आदेश का सख्ती से अनुपालन हो सके।
कोर्ट ने कार्यकारी अधिकारियों से यह उम्मीद भी जताई है कि प्रस्तावित गुंडा एक्ट की कार्रवाई से पहले जनता के बीच उनकी छवि, सामाजिक व पारिवारिक पृष्ठभूमि भी बताएंगे। इसके बाद निर्धारित प्रोफार्मा के बजाय सुविचारित आदेश पारित करेंगे। निष्कासन का आदेश भी तर्कसंगत होना चाहिए। कोर्ट ने सभी जिला मजिस्ट्रेटों और उनके अधीनस्थ कार्यकारी अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे उसी के खिलाफ कार्रवाई करें, जिसके विरुद्ध ठोस आधार हो कि वह समाज के लिए दुष्ट है और उसका निष्कासन जरूरी है।
अलीगढ़ के छर्रा थाने का है मामला
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मामला अलीगढ़ के छर्रा थाने का है। याची के खिलाफ यूपी गुंडा नियंत्रण अधिनियम 1970 की धारा तीन के तहत दिनांक 15 जून 2023 को दो मामलों के आधार पर कार्रवाई नोटिस जारी किया गया था। याची के खिलाफ दर्ज दो मामले में एक एफआईआर है तो दूसरी तथाकथित रपट है। मामले अलीगढ़ के थाना छर्रा में दर्ज हैं। कोर्ट ने कहा कि आमतौर पर कारण बताओ नोटिस पर हस्तक्षेप नहीं करते। वास्तव में एक ही मामले को लेकर गुंडा एक्ट की कार्रवाई की गई है। कोर्ट ने कहा कि जिला मजिस्ट्रेट को इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त असाधारण और असामान्य शक्तियों का प्रयोग करने से पहले पूरी सावधानी बरतनी चाहिए, लेकिन पाया जा रहा है कि इस अधिनियम के प्रावधानों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है।
अधिकारी अपनी सनक और मनमर्जी से इन असाधारण शक्तियों का प्रयोग कर रहे हैं और एक अकेले मामले या कुछ बीट रिपोर्ट पर नोटिस जारी कर रहे हैं। यह निवारक अधिनियम को कुंद बनाने जैसा है। गुंडा अधिनियम के प्रावधानों का अविवेकपूर्ण प्रयोग नहीं होना चाहिए। व्यक्तियों को नोटिस भेजना अधिकारियों की इच्छा या पसंद पर आधारित नहीं हो सकता। एक ही मामले में नोटिस जारी करना काफी परेशान करने वाला है।
कोर्ट ने कहा कि जिला मजिस्ट्रेट को असाधारण और असामान्य शक्तियों का प्रयोग करने से पहले पूरी सावधानी बरतनी चाहिए, लेकिन पाया जा रहा है कि इसके प्रावधानों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है। एक ही मामले में नोटिस जारी करना काफी परेशान करने वाला है। इससे अनावश्यक मुकदमेबाजी का अंबार लगता है। कोई कार्यकारी प्राधिकारी सिर्फ इस आधार पर नोटिस को उचित नहीं ठहरा सकता कि याची एक आदतन अपराधी है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा कैलाश जायसवाल के मामले में दिए आदेश का हवाला देते हुए कड़ी नाराजगी जाहिर की है। साथ ही कोर्ट ने अलीगढ़ के एडीएम वित्त एवं राजस्व की ओर से 15 जून 2023 को जारी कारण बताओ नोटिस भी रद्द कर दिया है।
आदतन अपराधी को ही जिला बदर करने का आदेश देने का नियम
कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों से अपेक्षा है कि व्यक्ति के विरुद्ध आरोपों की सामान्य प्रकृति, जनता के बीच उनकी व्यक्तिगत छवि, उनकी सामाजिक पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में विचार कर एक निर्धारित प्रोफार्मा पर नहीं बल्कि एक सुविचारित आदेश पारित करेंगे। इस कानून में जिलाधिकारी को गुंडा एक्ट के तहत आदतन अपराधी को जिला बदर करने का अधिकार दिया गया है। कोर्ट ने सभी जिला मजिस्ट्रेटों और उनके अधीन काम करने वाले कार्यकारी अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे आगे से उचित कार्रवाई करेंगे और ठोस आधार व तथ्य होने पर ही कार्यवाही करेंगे।
पिछले साल गोरखपुर डीएम ऑफिस पर हाईकोर्ट ने लगाया था 5 लाख का जुर्माना
गुंडा एक्ट के दुरुपयोग को लेकर पिछले साल नवंबर 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गोरखपुर डीएम ऑफिस पर 5 लाख का जुर्माना लगाया था। कोर्ट ने कहा था कि गोरखपुर डीएम ने दुर्भावना में गुंडा एक्ट लगाया है। ‘द वायर’ की एक खबर के अनुसार, मामला गोरखपुर शहर के प्रमुख इलाके में स्थित एक संपत्ति से जुड़ा है, जिसमें वाणिज्य कर विभाग का कार्यालय हुआ करता था। अदालती कार्रवाई के बाद यह जमीन याचिकाकर्ता को मिल गई। तब तत्कालीन डीएम ने याचिकाकर्ता को गुंडा एक्ट के तहत कार्रवाई का नोटिस थमा दिया। अदालत ने कानून के दुरुपयोग की बात कहते हुए, डीएम कार्यालय पर पांच लाख का जुर्माना भी लगाया था। तब, लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कार्रवाई उक्त व्यक्ति को उसके मालिकाना हक वाली संपत्ति जबरन खाली करने के लिए और जिला प्रशासन के पक्ष में छोड़ने के लिए विवश करने का प्रयास थी।
जस्टिस सुनीत कुमार और जस्टिस सैयद वाइज मियां की पीठ ने कानून का सम्मान नहीं करने की बात कहते हुए, यह भी निर्देश दिया था कि राज्य सरकार मामले की जांच कराए और गोरखपुर के तत्कालीन दोषी जिला मजिस्ट्रेट के खिलाफ अनुशासनात्मक जांच बैठाए। लेकिन हाईकोर्ट के हालिया रुख को देखकर लगता है कि गुंडा एक्ट के अनुपालन को लेकर उप्र में स्थिति में सुधार नहीं हुआ है बल्कि स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।
(सबरंग हिंदी की एक रिपोर्ट का अंश, साभार)