चार नामचीन संपादकों के खिलाफ मणिपुर में एफआईआर, राज्य सरकार की कार्रवाई की चौतरफा निन्दा

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# सेना के अनुरोध पर मणिपुर गयी थी एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया की तथ्यान्वेषी टीम

# टीम में शामिल थे भारत भूषण, संजय कपूर और सीमा गुहा

5 सितंबर। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने मणिपुर में जातीय हिंसा और झड़पों के मीडिया कवरेज पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) की तथ्यान्वेषी समिति के सदस्यों भारत भूषण, संजय कपूर और सीमा गुहा और गिल्ड की अध्यक्ष के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मणिपुर पुलिस की कार्रवाई की कड़ी निंदा की है।

राज्य पुलिस ने दो समुदायों के बीच वैमनस्य भड़काने जैसी धाराएं लगाने के अलावा सूचना और प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए भी लगायी है, भले ही यह प्रावधान सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द कर दिया गया हो। कई मौकों पर शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया है कि इस प्रावधान के तहत किसी पर भी मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए।

यह पहला मौका नहीं है जब सही तथ्यों को उजागर करने के लिए मणिपुर गये किसी प्रतिनिधि मंडल के साथ मणिपुर सरकार इस तरह पेश आयी हो। गौरतलब है कि एनी राजा और कुछ अन्य महिला संगठनों के प्रतिनिधिमण्डल के साथ भी राज्य सरकार ने यही सलूक किया था, उनके खिलाफ कई संगीन धाराओं में एफआईआर दर्ज की गयी।

एडिटर्स गिल्ड को मणिपुर के स्थानीय मीडिया के बारे में बहुत सी शिकायतें मिली थीं। सेना ने भी शिकायत की थी, क्योंकि सेना को लग रहा था कि स्थानीय मीडिया के पक्षपातपूर्ण, निराधार और सांप्रदायिक कवरेज के कारण शांति बहाली में बहुत मुश्किल हो रही है।

एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया की टीम 7 से 10 अगस्त तक मणिपुर में थी। टीम ने पाया कि मणिपुर के स्थानीय मीडिया के बारे में मिली शिकायतें सही हैं। जमीनी स्थिति और स्थानीय मीडिया रिपोर्टों की जांच के बाद गिल्ड ने चौबीस पेज की एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि जातीय हिंसा के दौरान एकतरफा रिपोर्टें प्रकाशित की गयीं। गिल्ड की छानबीन का एक निष्कर्ष यह भी है कि इंटरनेट पर प्रतिबंध ने हालात को बद से बदतर बना दिया।

रिपोर्ट के मुताबिक, जातीय हिंसा के दौरान मणिपुर मीडिया “मैतेयी-मीडिया” बन गया था; उसने सुरक्षा बलों खासकर असम राइफल्स के खिलाफ लगातार दुष्प्रचार किया। “जनता के विचारों को व्यक्त करने” के नाम पर उसने अपने कर्तव्य और सारी पेशेवर मर्यादा को ताक पर रख दिया था।

एडिटर्स गिल्ड की रिपोर्ट यह भी कहती है कि मणिपुर सरकार ने पुलिस को असम राइफल्स के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की अनुमति देकर सुरक्षा बलों को बदनाम करने के “मैतेयी-मीडिया” के अभियान को बल प्रदान किया।

गिल्ड की रिपोर्ट कहती है कि किसी भी परिस्थिति में राज्य सरकार को अनुराधा भसीन मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों के खिलाफ नहीं जाना चाहिए।

चौबीस पेज की यह रिपोर्ट चेतावनी का एक पाठ है कि समाज में तनाव और हिंसा के हालात में मीडिया को किस तरह काम करना चाहिए और किस तरह नहीं। और पुलिस तथा प्रशासन का रुख क्या होना चाहिए। लेकिन इससे कोई सबक लेने के बजाय मणिपुर सरकार ने एडिटर्स गिल्ड की तथ्यान्वेषी टीम के सदस्यों के खिलाफ मुकदमे थोप दिये।

पहले भी दो समुदायों के बीच तनाव तथा हिंसा के दौरान स्थानीय मीडिया के एकतरफा कवरेज को लेकर तथ्यान्वेषी समितियों ने जांच की है और रिपोर्ट जारी की है लेकिन जांच समिति के सदस्यों पर मुकदमे थोप देना शायद पहली बार हुआ है।

इस रवैये से भाजपा यह बताना चाहती है कि उसे कैसा मीडिया चाहिए और किस तरह का मीडिया उसे हरगिज बर्दाश्त नहीं है।

प्रेस क्लब आफ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया और मुंबई प्रेस क्लब के अलावा और भी बहुत से पत्रकार संगठनों ने एडिटर्स गिल्ड की तथ्यान्वेषी समिति के सदस्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की निंदा की है।


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