— शिवानंद तिवारी —
विश्व गुरु के देश में महाकाल के शहर उज्जैन में दिन-दहाड़े एक ग़रीब महिला के साथ बलात्कार हुआ. लेकिन किसी ने इस वहशियाना हरकत का प्रतिकार नहीं किया. बल्कि लोग मोबाइल से वीडियो बनाते रहे. उसको वायरल भी किया. ख़ैर वहाँ की पुलिस की तत्परता से अपराधी पकड़ा गया.
देश भर में कितने हिंसक और अमानवीय अपराध सार्वजनिक रूप से हो रहे हैं. लेकिन लोग हस्तक्षेप नहीं करते हैं. जिस ढंग के अपराध हो रहे हैं वह पचीस-पचास वर्ष पहले अकल्पनीय थे. बेटा माँ की, पिता की हत्या कर रहा है. पति पत्नी की हत्या कर रहा है. पत्नी भी पति की हत्या कर या करवा रही है.एक घटना में पत्नी की हत्या के बाद पति ने उसके शरीर के टुकड़े किए. उसको फ़्रीज़ में रख कर दूसरी शादी करने चला गया. पत्नी द्वारा भी पति की हत्या करने या कराने की खबर अक्सर पढ़ने को मिलती है.
महिलाओं को नंगा कर पिटाई की खबर भी खूब सुनने को मिलती है. छोटे-छोटे बच्चे बलात्कार कर रहे हैं. गोली चला दे रहे हैं.
सबसे बड़ी और चिंता करने वाली बात यह है कि समाज ऐसी घटनाओं को दर्शक बन कर तमाशबीन की तरह देखता रहता है. ऐसा समाज या ऐसा देश विश्वगुरु का रुतबा तो छोड़ दीजिए, दुनिया की पंचायत में क्या वह कभी आदर का पात्र भी बन सकता है !
वैसे भी हमारे देश का अतीत गर्व करने लायक़ नहीं है.
एक बात ध्यान रखने की है. आबादी के मामले में हमारा देश हमेशा बड़ा रहा है. लेकिन यह इतना लूटा गया है, इतना पीटा गया है जिसकी नज़ीर दुनिया में शायद ही मिलेगी. बहादुरी का कर्म करने वाला नाम हमारे इतिहास में कम मिलता है. शायद इस मामले में सबसे चर्चित नाम महाराणा प्रताप का है. अकबर से लोहा लेने वाले के रूप इनकी गाथा सुनाई जाती है. लेकिन अकबर से कभी इनका सीधा मुक़ाबला नहीं हुआ. अकबर की ओर से महाराणा प्रताप से संघर्ष करने वाले राजा मानसिंह का नाम इतिहास में दर्ज है. वैसे भी महाराणा, अकबर का कोई उल्लेखनीय नुक़सान पहुँचा पाये हों ऐसा इतिहास में कहीं दर्ज नहीं है. जो भी हो महाराणा ही एक अपवाद के रूप में हमारे समाज में वीर नायक के रूप में प्रतिष्ठित हैं. हमारे समाज में जो भीरूता या कायरता है उससे उसको मुक्त कराने का कोई गंभीर प्रयास देश में हुआ हो इतिहास में यह दिखाई नहीं देता है.
हालिया अतीत में गाँधी ही एक मात्र अपवाद दिखाई देते हैं. गौर से देखा जाए तो गाँधी के संघर्ष के सारे कार्यक्रम आम लोगों की व्यापक भागीदारी वाले ही नज़र आते हैं. चंपारण में ही देख लीजिए. दो दिन का समय देने का करार कर गाँधी वहाँ गये. लेकिन हप्तों रह गये. हवलदार की लाल टोपी देख कर गाँव ख़ाली कर देने वाले समाज में गाँधी की मौजूदगी ने कैसा चमत्कार कर दिया इसका इतिहास पढ़ने योग्य है. यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि गाँधी बीस-बाइस बरस दक्षिण अफ़्रीका में रहने के बाद 1915 में दक्षिण अफ़्रीका से लौटे थे. उस समय तक देश के लोग उनको ना के बराबर जानते थे. स्वंय गाँधी ने कहा है कि चंपारण से ही देश ने मुझको जाना.
विदेशी वस्तुओं और कपड़ों का होलिका दहन का उनका कार्यक्रम भी जनता का कार्यक्रम बन गया था. एक ओर होलिका दहन किया तो दूसरी ओर महिलाओं के हाथ में उन्होंने चरखा दे दिया. चरखा को उन्होंने अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष का माध्यम बना दिया. महिलायें चरखा के ज़रिए ब्रिटिश साम्राज्यवाद से मज़बूत लड़ाई लड़ रही थीं.
गाँधी ने अपने इन कार्यक्रमों के ज़रिए इंग्लैंड के मैन्चेस्टर और लंकाशायर की कपड़ा मिलों को बंद करा दिया था. महिलाओं को उन्होंने शराब की दुकानों और विदेशी कपड़े बेचने वाले दुकानों के सामने पिकेटिंग करने के कार्यक्रम में लगाया. ग़ज़ब उत्साह के साथ उन महिलाओं ने उस कार्यक्रम में हिस्सा लिया था. कुछ जगहों पर उनको पुलिस और गुंडों की मार भी खानी पड़ी. पहली मर्तबा देश की महिलायें घर की चहारदीवारी से निकल कर देश के लिए पुलिस की लाठी खा रही थीं. जेल जा रहीं थीं. हिन्दुस्तान जैसे पुरातन समाज के लिए यह एक अनहोनी बात थी.
दक्षिण अफ़्रीका से लेकर आज़ादी की लड़ाई तक गाँधी के संघर्ष में लगभग बीस हज़ार महिलायें जेल गईं. दुनिया के इतिहास में ऐसी घटना शायद ही मिले! नमक सत्याग्रह याद कीजिए. कैसे लगभग संपूर्ण देश उस कार्यक्रम का हिस्सा बन गया था. लोग सरेआम सरकार के क़ानून को तोड़ रहे थे. पुलिस की मार भी खा रहे थे. जेल जा रहे थे जैसे सारा भेद-भाव भूलकर देश की जनता एकजुट होकर अंग्रेजों से लड़ रही थी.
छुआ-छूत के विरूद्ध उनकी यात्रा ने तो समाज के अंदर उथल-पुथल मचा दिया था. इस यात्रा में उन पर जान लेवा हमले हुए. 1934 में तो पुणे में उनकी मोटर गाड़ी पर बम चला. संयोग से बच गए. बिहार में भी विरोध हुआ. लेकिन देवघर की यात्रा में जसीडीह स्टेशन पर उन पर जानलेवा हमला हुआ.
इस तरह गाँधी ने देश की जनता को जगाकर उनके मन से डर को निकाल कर उन्हें निर्भीक और निडर बनाया. विश्वगुरू का शोर मचाने वाले देश की बड़ी आबादी को डरपोक और भीरु बनाने का अभियान चला रहे है. दरअसल इसका नेतृत्व ही भीरु है. आज़ादी की लड़ाई से लेकर उसके बाद लोकतंत्र की रक्षा की लड़ाई में इनका इतिहास माफ़ी माँगने वाला है. गाँधी की हत्या के बाद तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने इनके संगठन पर प्रतिबंध लगाया था. उन्होंने आरोप लगाया कि इन लोगों ने देश में नफ़रत और घृणा की जो आँधी बहाईं गाँधी की हत्या का वही कारण बना था.
देश में जब इमरजेंसी लगी थी तो उस समय भी जेल से निकलने के लिए बेक़रार इनके मुखिया ने इंदिरा जी के समक्ष समर्पण किया था. गाँधी की राजनीति या कर्म में रंच मात्र का भी छिपाव नहीं था. सबकुछ प्रत्यक्ष और खुला था. जब कि इनका हर काम पर्दा के पीछे होता है. लेकिन गाँधी मरने के बाद भी इनके रास्ते में सबसे बड़े अवरोधक हैं. इसलिए गाँधी की हत्या के दिन इनके समर्थक गाँधी का पुतला बनाकर उस पर गोली चलाने का नाटक करते हैं.
इनकी ताक़त का आधार देश की एकता और अखंडता को नुक़सान पहुँचाने वाला है. देश के एक सौ पंद्रह, बीस करोड़ हिंदू समाज को ये कायर और भीरु बना रहे हैं. देश में बीस पचीस करोड़ अल्पसंख्यकों की आबादी से हिंदुओं के मन में भय जगा कर उनको अपने पीछे गोलबंद करने के अलावा इनको दूसरा कोई काम नहीं है. एक मियाँ चार बीबी दर्जन भर बच्चे, जागो हिंदू जागो. ऐसा कहते हुए ये सालो भर हिंदू समाज को कायर और भीरु बनाने के कार्यक्रम में लगे रहते हैं. ये लोग कह रहे हैं कि मुसलमानों और ईसाइयों से देश को ख़तरा है. ढाई सौ साल इस देश पर ईसाई अंग्रेज़ों ने राज किया. लेकिन आज हमारे देश में ईसाईयों की आबादी सिर्फ़ ढाई करोड़ है. इनसे भी देश को ख़तरा है यह बताया जा रहा है. उन पर हमला किया जाता है.
एक ओर तो हिंदू हिंदू का शोर मचाया जाता है दूसरी ओर दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों को पीछे से लंगी मारी जाती है. अंबेडकर साहब की मूर्ति तोड़ी जाती है. दलितों को ज़लील करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ा जाता है. कमोबेश यही हाल पिछड़ों का भी है. देश के नामी शिक्षण संस्थानों में गाँव देहात या आरक्षण के ज़रिए पहुँचने वाले लड़कों को अपमानित और ज़लील किया जाता है. यदा-कदा इन शिक्षण संस्थानो से वैसे विद्यार्थियों की आत्महत्या की ख़बरें भी मिलती है.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ दुनिया का सबसे बड़ा और मज़बूत संगठन है. उसका दावा है कि वह देश को आदर्श और ताकतवर बनाने का काम कर रहा है. लेकिन प्रत्यक्ष रूप से समाज में जहर फैलाने के, उसको विभाजित करने की ही उसकी भूमिका दिखाई देती है.
गाँधी देश में व्याप्त सामाजिक सड़न को मिटा कर एक नई सभ्यता का निर्माण करना चाहते थे. एक ऐसी सभ्यता जो दुनिया को एक विकल्प दे सके. गाँधी ने देश के आम नागरिकों, महिलाओं, दलित, और आदिवासियों को अन्याय और ज़ुल्म के खिलाफ संघर्ष करना सिखाया था. पर आज ये लोग बीस बाइस करोड़ की आबादी से देश की सबसे बड़ी आबादी को भय दिखाकर कायर और भीरु बनाने का अभियान चला रहे हैं. नतीजा है कि लोग अन्याय और जुल्म का प्रतिकार नहीं कर रहे हैं, बल्कि उसका वीडियो बनाकर वायरल कर रहे हैं.