यू वापसी हुई खुदाई खदमतगार की

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Khudai Khadmatgar

— हफ़ीज़ किदवई —

मारे मुल्क में वापसी ने व्यवस्थाओं को बदला है। यह वापसी व्याक्तियों की थी, जो विचार बन इस गई। एक वापसी थी बुद्ध की। महल, तख्त-ओ-ताज सब कुछ छोड़ सत्य की तलाश में निकाल बुद्ध ने तलाश पूरी होने पर संसार में वापसी की। उस वापसी ने पूरे संसार में मानवता को सहलाया।

दूसरी वापसी गांधी की रही। ब्रिटेन हो या अफ्रीका गांधी ने खूब धरती नापी, कड़ी मेहनत की और गहरी दृष्टि से पीड़ा के कारणों का मूल्यांकन कर देश में वापसी की और जन मानस का पर्याय बन गए।

अब, तीसरी वापसी हुई है खुदाई खिदमतगार की। खुदाई ख़िदमतगार खान अब्दुल गफ्फार खान का संगठन था। जिसका मतलब था ईश्वर के बंदों की सेवा करना, क्योंकि ईश्वर को सेवा की आवश्यकता नही है, बल्कि उसके बन्दों की सेवा ही उसकी सेवा है। यही मंत्र लिए खुदाई ख़िदमतगार की वापसी होती है। फैसल खान अपने कुछ साथियों के साथ इस पुराने संगठन को पुनर्जीवित करते हैं मगर रास्ते नए अख्तियार करते हैं। फैसल खान ने खुदाई खिदमतगार के लिए एक ही साथ रचना और संघर्ष, दोनों को चुना।

बड़े विचारक कह गए हैं कि हर सामाजिक समस्या का ईलाज इतिहास में निहित है अगर उसे समझकर पकड़ सको। सम्प्रदायिकता के विरुद्ध और सामाजिक सद्भावना के लिए हमारे इतिहास में बहुत से उदाहरण रहे हैं। उन्ही में से एक थे खान अब्दुल गफ्फार खान, यानि सरहदी गांधी और उनका संगठन खुदाई खिदमतगार। यहीं से शुरुआत होती है खुदाई ख़िदमतगार की वापसी की, जो आने वाले समय में बंटे हुए दिलों का मरहम बनकर उभरता है।

मानवता की भलाई के लिए रचनात्मक होना पहली शर्त है। दूसरा है संघर्ष, हर बुराई के विरुद्ध संघर्ष हर सामाजिक कार्यकर्ता का कर्तव्य है। खुदाई ख़िदमतगार इसी बुनियादी सोचपर आगे बढ़ता है। वह इस देश के कोने कोने से ऐसे युवा, जिनकी आंखों में मानवता की भलाई और मानव मात्र के प्रति सहिष्णुता रही है, उन्हें इकट्ठे करता है। यह संगठन अपने सबसे बुनियादी कार्यक्रम “यूथ लीडरशिप कैम्प” से देशभर में बढ़ता चला जाता है। इस कैम्प में देशभर के युवा, जो अलग

अलग धर्म, जाति, लिंग और सोच के होते हैं वे साथ में रहते हैं, खाते-पीते हैं, टहलते हैं, बहस करते हैं, आस पड़ोस में रचनात्मक काम करते हैं। इससे इनके अंदर वह बदलाव आते हैं, जिनके ख्वाब हमारे स्वतंत्रता संग्राम के पुरखों ने देखे थे। यह एक दूसरे की समझ, तक़लीफ़, खुशी और व्यवहार को देखते हैं। तब केवल खुद को गुणी मानने का भ्रम टूटता है। साथ ही खुद को हीन समझने की सोच से भी आगे बढ़ते हैं। बराबर बैठकर बराबरी, न्याय, स्वतंत्रता और तरक्की की बात करते हैं।

खुदाई खिदमतगार ने देशभर में महिलाओं के बीच काफी काम किया है। उनके स्वयं सहायता बनाए। महिलाओं को घरेलू उत्पाद बनाने को प्रेरित किया। देशभर में महिलाओं के बैंक अकाउंट खुलवाए, उन्हें बचत और इन्वेस्टमेंट के बारे में जागरूक किया। महिला सशक्तिकरण के वास्तविक अर्थ को समझाया, जिससे गांव-गांव की महिलाएँ जुड़कर अपनी आर्थिक शक्ति और समृद्धि को देख समझ सकीं। खुदाई ख़िदमतगार में सन 2012-13 में ही “बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ” जैसे ही अभियान शुरू किए, जिन्हें बाद में भारत सरकार ने अपनी प्राथमिकता में रखा। खुदाई ख़िदमतगार का सदैव मानना रहा है कि रचनात्मक काम ही हमें ज़्यादा संगठित और ऊर्जावान रखते हैं।

खुदाई खिदमतगार ने देश दो महत्वपूर्ण कदम उठाए। एक, सबका घर से और दूसरा सद्भावना वाहन। सबका घर को दिल्ली में बनाया गया। इसका उद्घाटन जस्टिस सच्चर ने किया। इस घर में धर्म, जाति, लिंग, क्षेत्र, भाषा के अंतर बिना रहा जा सकता है। यहां पूरे साल रचनात्मक काम होते हैं। विश्वभर के महत्वपूर्ण लोग आते हैं, युवाओं को अपना अनुभव और उद्देश्य बताते हैं।

ऐसे ही एक समय सद्भावना वाहन का प्रयोग किया गया। यह वाहन सड़को पर दौड़कर सद्भावना और प्रेम का संदेश देता। जगह जगह खड़े करके आम लोगों को मानवता का उद्देश्य बताता। समाज को नफरत से दूर हटकर रचनात्मक कामो में लगने की प्रेरणा देता।

खुदाई खिदमतगार ने सेमिनार के मुकाबले गांव में रचनात्मक कामों को प्राथमिकता दिया। इसी कारण चाहे कश्मीर हो या फिर तमिलनाडु। पंजाब हो या फिर केरल, सब तरफ अपने रचनात्मक कामों से ही संगठन की वापसी का आधार बनाया। देश के हर महत्वपूर्ण मुद्दों पर हुए संघर्ष का नेतृत्व भी किया और साथ भी दिया। रचना और संघर्ष के अपने मूल को सदैव साथ रखा।

महात्मा गांधी के नवाखली प्रवास से खुदाई खिदमतगार ने प्रेरणा ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दंगों के दर्द को कम करने का प्रयास किया। यह संगठन टूटे हुए दिलों का मरहम बना और लोगों को नफरत के विरुद्ध प्रेम से रहने के लिए प्रेरित करता रहा। खुदाई खिदमतगार ने देशभर में अनगिनत पदयात्राएं की है, जिनका उद्देश्य समाज के भीतर तक जाकर अपने प्रेम और सहिष्णुता के विचार का प्रसार करना रहा है।

खुदाई खिदमतगार ने दिल्ली से बंगाल तक ऐतिहासिक साइकिल यात्रा निकाली। जिसका उद्देश्य सद्भावना और प्रेम था। हजारों किलोमीटर की यह यात्रा देश में मानवता और भाईचारे का बीज बोने में सफल हुई। खुदाई खिदमतगार ने ऐसी सैकड़ों पदयात्राएं की हैं। कई अलग अलग राज्यों में यह यात्राएँ की गई। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, कश्मीर, मध्यप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब समेत कई राज्यों में पदयात्राएं और यूथ कैम्प आयोजित किये गए। उसी का परिणाम है कि संगठन के सक्रिय कार्यकर्ताओं की हर ओर महत्वपूर्ण स्थिति है।

खुदाई खिदमतगार ने मछुआरा समुदाय के लिए बहुत सी नावों को भी बनवाकर उन्हें सशक्त किया है। हमारा मानना है कि रुपये पैसों की मदद के स्थान पर यदि रोज़गार का प्रगतिशील माध्यम ज़रूरतमंद को दिया जाए, तो वह निरंतर तरक्की करेंगे। इसी उद्देश्य से जगह जगह बहुत से बेरोज़गार ज़रूरतमंद लोगों को चाय के ठेले, दुकान, नाव, साइकिल, ई-रिक्शे आदि दिए गए। उन्हें संगठित किया गया। उनके साथ लगातार विचार विमर्श होता रहा ताकि आइंदा कार्यस्थल हो या समाज का कोई भी हिस्सा, वह अपना संघर्ष खुद कर सकें। स्वयं सम्मानजनक जीवन जी सकें और दूसरों को इसकी प्रेरणा भी दें।

इनका मुख्य उद्देश्य समाज में व्याप्त विभाजनों और मतभेदों को दूर करना है। लोगों को एक दूसरे के साथ जुड़ने और सहयोग करने के लिए प्रेरित करना है। यह अपने अपने राज्यों में शिक्षा, स्वास्थ्य, और आर्थिक विकास जैसे क्षेत्रों में काम करते हैं और लोगों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करते हैं। खुदाई खिदमतगार ज़मीन पर कुछ इस तरह काम करते हैं:

सबका घर बनाना और शिक्षा और जागरूकत कार्यक्रम आयोजित करना

गरीबों और कमजोरों की मदद करना

स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना

पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करना

महिला सशक्तिकरण और बाल कल्याण के लिए काम करना

खुदाई खिदमतगार के काम से समाज में यह परिवर्तन भी देखे जा सकते हैं:

लोगों के बीच स‌द्भावना और एकता में वृद्धि

समाज में व्याप्त विभाजनों और मतभेदों में कमी

शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार

पर्यावरण संरक्षण में वृद्धि

महिला सशक्तिकरण और बाल कल्याण में सुधार

इस प्रकार खुदाई खिदमतगार समाज को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। इस संगठन के सबसे महत्वपूर्ण बॉडी है एनआरसी यानी नेशनल रिप्रजेंटेटिव काउंसिल। यह 121 खुदाई खिदमतगारों का एक समूह है। यह साल में दो बार देश में कहीं भी इकट्ठे होते हैं और आने वाले समय के उद्देश्यों को चिन्हित करते हैं, लक्ष्य तय करते हैं और संसाधन जुटाकर काम का बंटवारा करते हैं। साथ ही एक 21 सदस्यीय एनएलसी भी है यानि नेशनल लीडर्स काउंसिल, जो साल में चार बार मिलकर एनआरसी द्वारा तय किये गए लक्ष्यों की निगरानी करती है। कोई भी व्यक्ति खुदाई खिदमतगार हो सकता है बशर्ते, वह अकेले में बैठकर यह शपथ ले और इस पर अपनी आस्था रखे, अमल करेः

मैं, एक खुदाई खिदमतगार कसम लेता/ती हूँ कि,

चूंकि खुदा को किसी सेवा की ज़रुरत नहीं, इसलिए

उसके बन्दों की सेवा करूंगा/गी. किसी भी प्रकार की हिंसा और बदले की भावना से

दूर रहूंगा/गी और खुदपर जुल्म करने वालों को माफ़ करूँगा/गी

हमेशा एकता, मानवता और बराबरी के लिए खड़ा रहूंगा/गी

हफ़्ते में कम से कम 5 घंटे सामाजिक काम में लगाऊंगा/गी

जीवन में कभी भी किसी हिंसक संगठन का सदस्य नहीं बनूंगा/गी

नफ़रत, द्वेष और गुटबाज़ी से सदैव खुद को दूर रखूंगा/गी

मैं कभी खिदमत के लिए किसी भी लाभ या ईनाम की ईच्छा नहीं करूंगा/गी।

इस तरह खुदाई खिदमतगार ने अपनी वापसी की यात्रा तय की। सन 2011 में वपसी शुरू हुई थी। आज यह संगठन देश के करीबन हर राज्य में मौजूद है। देश के कोने कोने में पदयात्राएं, यूथकैम्प, स्कूल, लाइब्रेरी, खेल प्रशिक्षण, पर्यावरण और दूसरे मुद्दों पर लगातार काम हो रहा है। महिला सशक्तिकरण पर ज़ोर दिया जा रहा है। खुदाई खिदमतगार महात्मा गांधी और सरहदी गांधी खान अब्दुल गफ्फार के अहिंसा के विचारों के

साथ वापिस आया। इसकी वापसी भी मानवता, देश और मूल्यों के लिए समर्पित रही है। यहां लगातार नए नए युवा जुड़ रहे हैं, जिनके साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण काम किये जारहे है। खुदाई ख़िदमतगार ने संघर्ष का रास्ता भी कभी नही छोड़ा, देश, संविधान, लोकतंत्र, स्वतंत्रता, मानवता, किसान, विद्यार्थियों, युवाओं, महिलाओं, संविधान आदि के लिए चलाए जा रहे आंदोलनों का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।

(हफ़ीज़ किदवई, खुदाई खिदमतगार के फाउंडर मेंबर, नेशनल लीडर्स काउंसिल के भी सदस्य। लेखक, स्तम्भकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)

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