विकल्पहीन नही है दुनिया : स्वप्नद्रष्टा किशन पटनायक

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suresh khairnar

— डॉ. सुरेश खैरनार —

विकल्पहीन नही है दुनिया के स्वप्नद्रष्टा किशन पटनायक की आज बीसवीं पुण्यतिथि है ! आज ही के दिन 2004 में 74 साल की उम्र में उनका निधन हो गया है ! 1930 में जन्मे किशनजीकी आनेवाले 2030 में जन्मशताब्दी है! मेरे अपने परिचय में किशनजी जैसे कुजात समाजवादी मैंने दुसरा नही देखा ! 1962-67 के लोकसभा के सदस्य रहे थे ! लेकिन पूर्व संसदसदस्यो को मिलने वाली हर तरह की सुविधाओं को उन्होंने स्वीकार नहीं किया ! और देश के एक कोने से दुसरे कोने तक कि यात्रा तिसरे दर्जे से लेकर बसों तक करते थे ! और उपरसे दमे के मरिज को भिडभरी यात्रा कितनी तकलीफदेह होती है ? यह मैने उन्हें अपने साथ की यात्रा में खुद देखा हूँ !

कुछ लोग उन्हें लोहियावादी कहते हैं ! जहाँ तक मेरा व्यक्तिगत मानना है कि, मेरे साथ उनका परिचय एन ए पी एम के स्थापना के समय से अधिक रहा है ! कभी-कभी वह हमारे कलकत्ता के आवास पर भी ठहरे है ! और मुख्यरूपसे हमारी मुलाकातें नर्मदा बचाओ आंदोलन स्थलों पर और एन ए पी एम की विभिन्न बैठको में अधिकांश समय होते रही है ! और मैने देखा कि किशनजी किसी भी नेता के प्रभाव में नहीं थे ! वह जनतांत्रिक समाजवादी थे ! लेकिन मैंने उन्हें कभी भी किसी भी बडे समाजवादी नेता को कोट करते हुए बोलते हुए नही देखा ! यहां तक कि उनके उम्र के तीस सालों से भी कम समय में डॉक्टर राममनोहर लोहिया ने उनके जीवन के पहले लोकसभा चुनाव में उनके संभलपूर लोकसभा चुनाव में अपनी खुद की संपूर्ण ताकत झोके दी थी ! और डाक्टर लोहिया तबतक भारत की संसद में जाने में कामयाब नहीं हुए थे !

एक साल बाद उपचुनाव में जितकर वह भी लोकसभा में आ गए थे ! लेकिन किशनजी उस लोकसभा के सबसे कम उम्र के संसदसदस्य थे ! लेकिन उसके बावजूद मैंने उन्हें कभी भी डाक्टर लोहिया ने यह कहा था या यह नहीं कहा था बोलते हुए नही देखा! और अन्य किसी भी नेता के बारे में बोलते हुए नही देखा !

जहाँ तक मेरा निरिक्षण है वह खुद एक स्वतंत्र चिंतक थे ! उसके उदाहरण ‘विकल्पहीन नही है दुनिया’ से लेकर ‘भारत शूद्रों का होगा’, तथा समाजवाद, किसानों की समस्याओं से लेकर सांप्रदायिकता, सेक्युलरिज्म, जनतंत्र तथा स्त्री-पुरुष संबंधों जैसे आज के अत्यंत संवेदनशील विषयों पर उन्होंने जो भी रोशनी डाली हैं ! वह देखने के बाद मुझे लगता है कि उसमें भी मुझे उनके लेखों को पढ़ने से लेकर उनके साथ की बातचीत में कभी भी किसी को कोट करते हुए नही देखा ! हमेशा अपने खुद के चिंतन की झलक देखने को मिली है !

प्रथम पंक्ति के समाजवादी नेताओं में किशनजी एकमात्र नेता थे ! जिन्होंने जनता पार्टी के जनसंघ जैसे दक्षिणपंथी दल के साथ बनने का सिर्फ विरोध ही नहीं किया, उस पार्टी में शामिल भी नहीं हुए ! और एक बार तो उन्हें ओरीसा से बिजू पटनायक ने सिर्फ जनता पार्टी के सिंबल देने की पेशकश की तो उन्होंने ठुकरा दी ! जबकि वह उस सिंबल को ले लिए होते तो शतप्रतिशत लोकसभा में दोबारा पहुंचे होते ! लेकिन 1962 – 67 का तिसरी लोकसभा को छोड़कर वह दोबारा लोकसभा में नहीं जा सके !

लेकिन मेरी मान्यता है कि वह संसद या विधानसभा से ज्यादा पर्यायी राजनीति के हिमायती थे ! उनके ‘विकल्पहीन नहीं है दुनिया’ शिर्षक की किताब में पर्यायी विकास से लेकर पर्यायी राजनीतिक चिंतन दिखाई देता है ! उसी मे उन्होंने ‘बैलगाड़ी चाहिए या इंटरनेट’ शिर्षक से एक लेख लिखा है ! जो उसके पहले उन्होंने बनारस के लोकविज्ञान संमेलन मे सबसे पहले अपने भाषण में प्रकट किया था ! और भाषण के बाद के भोजन में हम दोनों साथ ही बैठकर भोजन कर रहे थे !

तो उन्होंने मुझे पुछा की “सुरेश आपको मेरा भाषण कैसे लगा ?” तो मैंने तपाक से कहा कि “आपने मधुमक्खी के छत्ते पर पत्थर मारा है ! इसलिए आपको इस विषय पर विस्तार से चर्चा करने के लिए सबसे पहले मैं आपको नागपुर में आमंत्रित कर रहा हूँ ! और कम-से-कम आपको सिर्फ इसी विषय पर तीन दिन नागपुर में रहना होगा !” तो वह बनारस के बाद चंद दिनो के भितर नागपुर आए ! और मेरे जीवन के सबसे बेहतरीन आयोजन में से वह आयोजन था ! जिसमें किसनजी ने वर्तमान टेक्नोलॉजी के बढ़ते हुए प्रभाव को लेकर बहुत ही विस्तृत रोशनी इस विषय पर डाली है ! जो कि एक स्वतंत्र लेख का विषय है !

इसिलिये मेरा मानना है कि वह किसी भी व्यक्ति के प्रभाव में कभी नहीं रहे हैं ! उनका अपना चिंतन-मनन था ! जिसके आधार पर उन्होंने अपने जीवन के अंत तक बोलने और लिखने का प्रयास किया है ! और काफी लोगों को समाजवादी चिंतन के वर्तमान प्रतिनिधि बोलने का चलन चल रहा है ! लेकिन मेरे विचार में वह आखिऐसे द्रष्टा थे ! जिनके बाद अभी कोई भी व्यक्ति नही है, कि जिसे समाजवादी चिंतक कहा जा सकता है ! आज उनके पूण्यस्मरण दिवस पर विनम्र अभिवादन!

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