— अंबरीश कुमार —
राजीव जी नहीं रहे . राजीव हेम केशव नाम लिखते थे . जयप्रकाश आंदोलन की कोख से निकली छात्र युवा संघर्ष वाहिनी से जब जुड़े तो जाति सूचक नाम हटा दिया मां पिता का नाम जोड़ दिया . लखनऊ के काल्विन तालुकेदार से निकले और आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान की पढ़ाई छोड़कर जयप्रकाश आंदोलन से जुड़ गए . वे राजीव ही थे जिन्होंने मुझे आंदोलनों से जोड़ा आंदोलनकारियों से जोड़ा . छात्र युवा संघर्ष वाहिनी से जोड़ा . बिहार का बोधगया आंदोलन हो या गंगा मुक्ति आंदोलन या फिर ओडिसा के जन आंदोलन सभी जगह वे अस्सी के दशक में मुझे लेकर गए . किशन पटनायक जैसे समाजवादियों से मिलवाना हो या फिर सिद्धराज ढड्ढा या ठाकुर दास बंग जैसे गांधीवादियों से परिचय कराना सभी राजीव ने किया . उन्होंने कई संगठन बनाए कई का नेतृत्व मैंने ही किया जिसमें युवा भारत प्रमुख था
वे संगठन बनाते और कार्यकर्ता तैयार करते पर खुद कोई पद नहीं लेते. लंबी यात्रा उन्होंने मुझे भी कारवाई मद्रास के गुडवंचरी आश्रम में वाहिनी के शिविर में लेकर गए जहां मेरी मुलाकात जयप्रकाश नारायण के सहयोगी शोभाकांत दास से हुई . वे मद्रास में जड़ी बूटियों के सबसे बड़े कारोबारी थे और उनके घर के बगल में ही रामनाथ गोयनका का घर था जो उनके मित्र थे . शोभाकांत जी गांधी के आह्वान पर आजादी की लड़ाई में कूदे और गिरफ्तार होकर सरगुजा की जेल में रहे . वे जेल से भाग कर फिर भूमिगत आंदोलन में शामिल हो गए ऐसे लोगों से राजीव जी की वजह से ही मिलना हुआ
लखनऊ में दिग्गज समाजवादी सर्वजीत लाल वर्मा हों या फिर चंद्रदत्त तिवारी के विचार केंद्र तक जाना सब उन्ही की वजह से हुआ. वे ट्यूशन पढ़ाते थे और सारा पैसा राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर खर्च करते थे . बाद में राजीव फिजिक्स नामसे कोचिंग शुरू की और वह काफी चली जिसके सारे संसाधन का इस्तेमाल राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए हुआ . छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के कार्यकर्ताओं की आर्थिक मदद वे लगातार करते रहे . अन्ना आंदोलन के बाद बाबा रामदेव राजीव दीक्षित और राजीव दोनों के साथ सामाजिक बदलाव की दिशा में कुछ करना चाहते थे पर वह आगे नहीं बढ़ा पर राजीव लगातार बदलाव की उम्मीद में सक्रिय रहे और अंत तक अभी जो डेंगू हुआ वह भी भगत सिंह के कार्यक्रम की तैयारी में लगे रहने के दौरान हुआ
1978-79 में जब मैं लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ में था तभी उन्होंने हम सब को जोड़ कर कई पहल की . अनूप ,अरुण त्रिपाठी ,हरजिन्दर ,पुनीत टंडन ,अतुल सिंघल जैसे बहुत से लोग जुडते गए . मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी थिंकर्स काउंसिल और छात्र भारती जैसे संगठन उन्ही की मदद से खड़ा किया . आलोक जोशी ,अमिताभ श्रीवास्तव ,राजेन्द्र तिवारी ,देवेन्द्र उपाध्याय ,मसूद,रमन, कर्निमा,निलय कपूर ,शाहीन ,अपर्णा ,शिप्रा दीक्षित जैसे बहुत से छात्र छात्राएं इन्ही मंच से निकले . हमने लखनऊ वर्ष 1985 86 में छोड़ दिया पर राजीव जमे रहे .संपर्क संबंध बना रहा .लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वे राजीव गांधी फाउंडेशन के मुखिया के साथ मिलने आए थे उसके बाद मुलाकात नहीं हुई .
उनकी भांजी रामगढ़ में रहती हैं उन्ही से सूचना मिली तो पता किया कल उनकी स्थिति बिगड़ चुकी थी . सुबह सुबह ओमप्रकाश ने खबर दी तो 45 साल का संबंध सामने आ गया .
एक कार्यकर्ता के तौर पर उन्होंने मुझे भी गढ़ा . पहली बार जब बोधगया शिविर गया तब खाना खाने के बाद अपना बर्तन खुद साफ करने की बारी आई तो बहुत झिझका था क्योंकि ऐसा कभी किया नहीं था . फिर पटना से लेकर मद्रास शिविर तक हमारे भी संस्कार बदल गए और हम भी एक कार्यकर्ता में बदल चुके थे .राजीव के पढ़ाए लोग कहां से कहां पहुँच गए . साथियों को उन्होंने संस्कार दिए तो दूसरी पीढ़ी को पढ़ाया भी मेरे दोनों बेटे भी उनसे पढे हैं . बहुत याद आएंगे राजीव जी