— विनोद कोचर —
(उपरोक्त शीर्षक से लिखा गया मेरा अधोलिखित लेख दिल्ली से प्रकाशित होने वाले पाक्षिक अखबार ‘जन जन की आवाज’ ने अपने 16अक्टूबर1979के अंक में प्रकाशित किया था जिसे वर्तमान पीढ़ी के लिए मैं पुनः उद्धृत कर रहा हूँ)
विश्व के जयप्रकाश नारायण जैसे महान सपूत के निधन पर उनके मन, मस्तिष्क और आत्मा के गुणों की याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करना और श्रद्धांजलि का इसी वैचारिक सीमा तक सीमित रखना, ऐसे हर किसी व्यक्ति, संगठन व देश के लिए स्वाभाविक है जिनके मन में जेपी के जीवन और विचारों के प्रति सही माने में आस्था है।
लेकिन जब कोई व्यक्ति, और संगठन निहित स्वार्थों की पूर्ति हेतु ऐसी शोकपूर्ण घड़ियों का दुर्भावना से इस्तेमाल करे तो ये कहे बिना नहीं रहा जाता कि जेपी के जीवन और विचारों में न केवल इनकी अनास्था है, बल्कि एक मरे हुए आदमी की, खंडन न कर सकने की मजबूरी से खुश होकर वे अपने ओछे स्वार्थो की पूर्ति हेतु श्रद्धांजलि देते समय झूठ बोलने की घृणित हरकत से भी बाज नहीं आते।
आरएसएस चीफ श्री बाळासाहेब देवरस ने नागपुर में जेपी को श्रद्धांजलि देते देते बीच में इस झूठ को भी शामिल कर दिया कि ‘मरने के कुछ ही दिन पहले जेपी ने उनसे बातचीत करते समय आरएसएस की सराहना की थी (आकाशवाणी, हिंदी बुलेटिन: 10-10-79प्रातः 8बजे)
राष्ट्रीय शोक की इन घड़ियों में देवरस का ये बयान उनकी कुटिल और छलप्रपंच पूर्ण नीति का ही परिणाम है।
जेपी के निधन के सिर्फ एक सप्ताह पहले विजयादशमी का पर्व आया था।विजयादशमी का दिन जेपी का जन्मदिन भी है और आरएसएस का स्थापना दिवस भी है।इस दिन झूठ और छल कपट से सराबोर देवरस का जो भाषण हुआ था वह आरएसएस के मुखपत्र ‘युगधर्म’ दैनिक ने ‘अभिव्यक्ति’ शीर्षक से प्रकाशित किया है।
इस भाषण को पढ़ने के बाद,साधारण व्यक्ति भी ये समझ सकते हैं कि विजयादशमी के दिन भाषण देते समय देवरस के दिमाग में स्वयंसेवकों को भ्रमित करने की कुटिल चाल के अलावा और कुछ भी नहीं था।
उस दिन इस बात को देवरस ने प्रयत्नपूर्वक ध्यान में रखा कि विजयादशमी के दिन दिये जाने वाले भाषण में जेपी की कहीं भूल से भी चर्चा मत हो जाय क्योंकि चर्चा करते ही जेपी के विचारों व जीवन की तेजस्विता, आरएसएस के झूठ और छल कपट की कहीं बखिया उधेड़ कर न रख दे।
निधन के पहले जेपी ने आरएसएस प्रमुख देवरस के सामने आरएसएस की जरासी भी सराहना अगर की होती तो आरएसएस के लिए प्रशंसा प्रमाणपत्र बटोरते रहने की आदत के शिकार श्री देवरस विजयादशमी के दिन दिए गए अपने भाषण में जेपी के जन्मदिन को भी याद करते हुए, उनके द्वारा की गई आरएसएस की सराहना का उल्लेख किये बिना नहीं रह सकते थे।
अभी हाल ही में, लोकदल के गठन के बारे में अखबारों में छपे जेपी के एक बयान का, जेपी के सचिव श्री सच्चिदानंद ने यह कहकर खंडन किया है कि, ‘जेपी से मुलाक़ात करने वाले कुछ लोगों को, उस बातचीत को तोड़मरोड़ कर छपवाने की आदत हो गई है।
मैं देवरसजी को ऐसे ही लोगों की पंक्ति में गिनता हूँ। आरएसएस के बारे में जेपी की राय इतनी स्पष्ट है कि देवरसजी को इस राय के बारे में अलग से कुछ कहने की जरूरत ही नहीं है।
जहाँ तक सराहना का सवाल है, जेपी ने अनेकों बार विरोधियों के गुणों की सराहना की है।आरएसएस के इस गुण की जेपी अनेकों बार सराहना कर चुके हैं कि संगठन के दायरे के भीतर (न कि देश के दायरे के भीतर) रुपये पैसों के मामले में एक ईमानदार संगठन है, बाढ़ पीड़ितों की सहायता, स्मारक जैसे कामों के लिए आरएसएस जब चंदा इकट्ठा करता है तो उस पैसे का संघ दुरुपयोग नहीं करता। आरएसएस के अनुशासन की भी जेपी तारीफ कर चुके हैं। लेकिन इस तरह की तारीफों का मतलब ये तो नहीं होता कि आरएसएस की विचारधारा कोई बड़ी अच्छी विचारधारा है।
रुपये पैसों के मामलों में सटोरिये और जुआरी भी क्या कम ईमानदार होते हैं?
आरएसएस की विचारधारा के बारे में जेपी की राय, मरते दम तक, यही रही है कि उसे अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन करना चाहिए ताकि राष्ट्रीय स्वातंत्र्य का आंदोलन लोकतंत्र, वाणी स्वातंत्र्य, प्रगतिशील आर्थिक सामाजिक कार्यक्रम आदि की जो धारा दादाभाई नौरोजी, रानाडे, गोखले, तिलक, गांधी, नेहरू, भगतसिंह और सुभाष जैसे महापुरुषों ने इस देश में चलाई है,उसमें वे शरीक हो सकें।
15सितंबर 1976को अंग्रेजी में प्रकाशित पत्र ‘पीपुल’ में छपी जेपी की भेंटवार्ता में जेपी ने कहा है कि,” …उन्हें भी( जनसंघ और आरएसएस को) अब ऐसा लगने लगा है कि जबतक वे समय के साथ कदम मिलाकर नहीं चलते और अपने आप को बुनियादी तौर पर नहीं बदलते, तबतक उनका भविष्य अंधकारमय है।हिन्दू अपील उन्हें वोट नहीं दिला सकती।अगर वे राष्ट्रीय पार्टी बनना चाहते हैं, या होनहार पार्टी बनना चाहते हैं या ऐसी पार्टी बनना चाहते हैं जो कांग्रेस को हटाकर सत्ता में आ सके, तो फिर उन्हें ऐसी अपील करनी पड़ेगी जो सभी वर्गों को आकर्षित कर सके।उन्हें हिंदुस्तान के भिन्न भिन्न वर्गों, जातियों और समूहों का समर्थन हासिल करना पड़ेगा।वह एक ऐसी पार्टी होनी चाहिए जो अधिकाधिक जनसमुदायों को आकर्षित कर सके।”
1975-77के आपातकाल के दिनों में जेपी ने आरएसएस से जिस तरह के बुनियादी बदलाव की अपेक्षा की थी, क्या उसके एक अंश को भी आरएसएस ने आजतक पूरा किया है?इस साल दशहरे के दिन नागपुर में दिया गया देवरसजी का भाषण इस प्रश्न का नकारात्मक उत्तर ही देता है।
जेपी की ख्याति की आड़ में उनकी मौत का भी, अपने क्षुद्र स्वार्थो की पूर्ति के लिए,आपराधिक दुरुपयोग करते हुए,देवरसजी ने जो कुकृत्य किया है ,उसके लिए पूरे राष्ट्र से उन्हें क्षमा मांगनी चाहिए और राष्ट्र को उन्हें तबतक क्षमा नहीं करना चाहिए जबतक वह पूरी तरह से आश्वस्त न हो जाय कि आरएसएस सच्चे दिल से, जेपी की मौत के मंच का दुरुपयोग करने के लिए पछता रहा है।
[उपरोक्त लेख मैंने 45 साल पहले लिखा था।तबसे लेकर अबतक राजनीतिक घटनाओं में जो जबरदस्त बदलाव देखने को मिले हैं, उन बदलावों के संदर्भ में सरसरी तौर पर ये नजर आ रहा है कि ‘हिन्दू अपील आरएसएस को वोट नहीं दिला सकती ‘वाली जेपी की भविष्यवाणी कहीं असत्य तो साबित नहीं हो गई है?
लेकिन नही!जेपी की यह भविष्यवाणी, ‘हिन्दू’
शब्द की जेपी की व्याख्या के मुताबिक आज भी उतनी ही सच है।
जेपी भी विवेकानंद,गांधी, लोहिया, सुभाष, भगतसिंह जैसे ही आदर्श हिन्दू थे जो ‘हिन्दू’शब्द की ‘वसुधैव कुटुम्बकम’अर्थात ‘सारा विश्व एक कुटुंब है’
वाली विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं और भारत मे आजभी, आरएसएस द्वारा इस विचारधारा को खत्म करने की तमाम कोशिशों के बावजूद,इस विचारधारा को मानने वाले हिन्दुओं का विशाल बहुमत है’। – विनोद कोचर】