— ध्रुव शुक्ल —
रोज़ दल बदल के, नेता दिखायें चल के
जो आज के नहीं वो कैसे बनेंगे कल के
केवल चुनाव लड़ना और कुछ न करना
वोटों की भेंट लेकर जनता से दूर रहना
हम लोग थक गये हैं मतदान खूब कर के….
रोज़ दल बदल के, नेता दिखायें चल के
जो आज के नहीं वो कैसे बनेंगे कल के?
इंसानियत के सर पे नफ़रत का ताज़ रखना
दल बदल-बदल कर सत्ता का स्वाद चखना
क्या मिला है हमको, इनको बदल-बदल के….
रोज़ दल बदल के, नेता दिखायें चल के
जो आज के नहीं वो कैसे बनेंगे कल के
अपने हैं जो सदियों से, नेता कहें — पराये
कब प्यार मिट सका है, कैसे कोई मिटाये
हम कर चुके नज़ारा, हर आंख में वो झलके….
रोज़ दल बदल के, नेता दिखायें चल के
जो आज के नहीं वो कैसे बनेंगे कल के?
हम चुन रहे हैं जिनको, नेता नहीं हमारे
ये कैसी बेबसी है, किसको कोई पुकारे
कह रहा है कबसे ये मन मचल-मचल के…
रोज़ दल बदल के, नेता दिखायें चल के
जो आज के नहीं वो कैसे बनेंगे कल के