— विनोद कोचर —
बौद्ध धर्म के मतावलंबियों की तादाद बढ़ते देखकर, उसके प्रभाव को खत्म करने के लिए ही, सातवीं-आठवीं शताब्दी के दौरान आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की पुनर्स्थापना में बड़ा योगदान दिया, इसके लिए ही उन्होंने देश के चारों कोनों में चार पीठों या मठों की स्थापना की।
यहां तक तो ठीक है लेकिन इसके बाद बौद्ध धर्म के तमाम मठों, विहारों और बुद्ध की प्रतिमाओं का विध्वंस क्यों किया गया? क्या इसलिये कि बौध्द धर्म की वैज्ञानिकता के सामने आस्थावादी और अवैज्ञानिक धर्म के उपासकों के तर्क टिक नहीं पाते थे जिससे बौखला कर आस्थावादियों ने बौध्द धर्म के प्रति हिंसक और विध्वंसात्मक गतिविधियों का सहारा लिया?
सोचिये कि अगर भीमराव आंबेडकर जैसी तेजस्वी प्रतिभा का जन्म नहीं हुआ होता तो भारत में बौद्ध धर्म क्या पुनर्जीवित हो पाता?
जाति व्यवस्था की सबसे निचली पायदान पर श्रम प्रधान बहुसंख्यकों को रखकर उन्हें अछूत मानते हुए घृणा का पात्र मानने वाली सवर्ण मानसिकता पर सबसे सटीक और असरदार प्रहार करते हुए डॉ आंबेडकर ने ही भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित किया है।
बकौल दिनकर –
जाति जाति रटते जिनकी पूंजी केवल पाखंड!
मैं क्या जानूं जाति?जाति है ये मेरे भुजदंड!
पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर!
जाति जाति का शोर मचाते केवल कायर क्रूर!
आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित वैदिक धर्म क्या इसीलिए बौद्ध धर्म का विरोधी है क्योंकि बौद्ध धर्म जाति व्यवस्था का कट्टर विरोधी है?