— रणधीर गौतम —
हम अपने जीवन में तीन तरह के रिश्ते बनाते हैं: भाव बंधु, कर्म बंधु, और विचार बंधु। मेरे लिए, विचार बंधु के प्रति समर्पण का भाव सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। जैसा कि हम जानते हैं, भारत के राष्ट्र निर्माण में समाजवादी विचारधारा की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भारत के राजनीतिक परिदृश्य में जितने भी प्रमुख विचार सामने आए हैं, उनमें गांधीवादी समाजवादी विचारधारा ने सृजनशीलता, न्याय, उन्मुक्तता, और प्रयोगधर्मिता की समृद्ध परंपरा स्थापित की है।
आज, आलोचनाओं के बावजूद, समाजवादी विचारधारा ने भारत की राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी है।
मेरा अध्ययन बताता है कि भारत में समाजवाद ने दो प्रमुख दौर देखे हैं:
1. जब समाजवाद भारत में फैल रहा था।
2. जब समाजवाद भारत में सिकुड़ने लगा।
जब समाजवाद का प्रसार हो रहा था, तब सवालों की बौछार होती थी, और अध्ययनशील व्यक्तियों का एक बड़ा समूह समाजवादी आंदोलन से जुड़ा हुआ था। परंतु जब समाजवादी आंदोलन सिमटने लगा, तब प्रश्न करने वाले और अध्ययनशील लोगों की संख्या भी घटने लगी।
समाजवाद के प्रसार के समय, एक ओर मार्क्स और दूसरी ओर गांधी के विचार थे। इन दोनों विचारधाराओं के मध्य विमर्श को डॉ. लोहिया ने जिस प्रकार स्थापित किया, और समाजवादियों ने उस परंपरा को आगे बढ़ाया, वह समय के साथ जातिवाद तक सीमित होकर रह गया।
“समय आ गया है कि समाजवादी विचारकों को संगठित होकर कम से कम समाजवादी विचारधारा के बीज को बचाने का प्रयास करना चाहिए। इसे ही रामानंदन मिश्र ‘बीज बचाओ आंदोलन’ कहते थे। साथ ही, समाजवादी अध्ययन केंद्र स्थापित करने का भी प्रयास किया जाना चाहिए।”
आरएसएस में जिस प्रकार कैडर का निर्माण होता है, वैसा ही समाजवादियों को भी करना चाहिए। परंतु यह कैडर अंधभक्तों का समूह नहीं, बल्कि प्रश्न पूछने वाले, न्यायप्रिय, और परिवर्तनशील सोच रखने वाले लोगों का समूह होगा। डॉ. लोहिया हमेशा समाजवादियों को सलाह देते थे, “सुधरो नहीं तो टूटो।” मुझे लगता है कि अब हमारी समाजवादी विरासत की साधना को सफल बनाने का समय आ गया है।
1934 के बाद, जब 2034 आएगा, तो हमें कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की विचारधारा को सफल बनाते हुए केवल राजनीतिक परिवर्तन ही नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की मजबूत नींव भी रखनी होगी।
“इस यज्ञ को सफल बनाने के लिए हम सभी को अपनी आहुति देनी होगी।”
समाजवादी अध्ययन केंद्र के लिए सुझाव
1. समाजवादी विरासतों से जुड़े आंदोलनों, सामाजिक कार्यों और विचारों को विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ाना।
2. नए समाजशास्त्रियों, इतिहासकारों, साहित्यकारों, वैज्ञानिकों और दार्शनिकों को तलाशना और उनके साथ मिलकर समाजवादी विरासतों का दस्तावेजीकरण करना।
3. समाजवादी बुद्धिजीवियों द्वारा नीति-निर्माण के लिए दस्तावेज तैयार करने की परंपरा शुरू करना।
4. नए जुड़ने वाले लोगों को प्रोत्साहन देकर समाजवादी अध्ययन केंद्र में उनकी रुचि के अनुसार काम करने का मार्गदर्शन देना।
5. “Fundamentals of Socialism” नामक पाठ्यक्रम बनाकर प्राथमिक, माध्यमिक, और विश्वविद्यालय स्तर पर इसे पढ़ाने की व्यवस्था करना।
6. समाजवादी आंदोलन, विचार, और इतिहास को प्रचारित करने के लिए पॉडकास्ट और न्यूज़ पोर्टल की स्थापना करना।
7. समाजवादी नेताओं और विचारकों का संग्रहालय (आर्काइव) बनाना, जिसमें उनके लेखन, किताबें, और आंदोलनों का संग्रह हो।
8. विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए अर्धवार्षिक सम्मेलन आयोजित करना।
9. जातिगत राजनीति कर रहे युवकों को समाजवादी विचारधारा से जोड़ने के प्रयास करना।
10. “Never and Now” के संदर्भ में नए राजनीतिक परिवर्तन की तलाश में लोगों को एक मंच पर लाना।
11. समाजवादी सरकारों के साथ मिलकर “मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस” के विचार को बढ़ावा देना।
12. “Politics from Below” और “Politics for Local” को प्रोत्साहन देना।
13. समाजवादी शोधार्थियों और विचारकों का अलग समूह बनाकर उनके साहित्य और शोध का संवर्धन करना।
14. 21वीं शताब्दी के भारतीय समाजवाद पर विमर्श आयोजित करना और उसके आधार पर संगठन, विचारधारा, और नियमावली की संरचना बनाना।
15. नवयुवकों के लिए वार्षिक समर स्कूल और विंटर स्कूल शुरू करना।
16. 75 वर्ष से अधिक आयु के समाजवादियों का अभिनंदन ग्रंथ तैयार करना।
17. डॉ. लोहिया की सप्त क्रांति और जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति के सिद्धांतों पर आधारित कार्यक्रमों को समाज में फैलाना।
अंत में, एक शिविर का आयोजन किया जाना चाहिए, जिसमें विभिन्न आयु वर्ग के लोग भाग लें और सामूहिक नेतृत्व मंडल, मार्गदर्शक मंडल, और कार्य समूह का गठन करें।
यह प्रयास समाजवादी विचारधारा को न केवल संरक्षित करेगा, बल्कि उसे आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिक बनाकर भविष्य की राह भी प्रशस्त करेगा।