— ध्रुव शुक्ल —
इतिहास गवाही देता है कि पूरी दुनिया का जीवन और उसकी तत्कालीन राज्य व्यवस्थाएं अपने-अपने मुल्कों में आक्रांताओं, लुटेरों और उपनिवेशवादियों का शिकारगाह बनती रही हैं। इन ताकतों के आगे राजा और नबाबों के घुटने टेकने के किस्से भी मशहूर हैं। कर्मकुशल और हुनरमंद आम जनजीवन राजकीय और व्यापारिक स्वार्थों की चक्की में पिस-पिसकर असहाय और अभावग्रस्त होता रहा है। उसकी विवशता का नाज़ायज इस्तेमाल करके उसके विश्वास को भी डिगाया गया है।
यह दुनिया आज तक नहीं बदली है। बस अन्याय के रूप बदल गये हैं। अब दूर से परमाणु बम आक्रांत करता है। नया विश्व साहूकार अपनी उधारी में हर देश को फांसकर दूर से ही लूट रहा है। जनता के द्वारा चुनी हुई सरकारें साहूकार के आगे घुटने टेक रही हैं। व्यापारियों के द्वारा प्रशिक्षित लुटेरे और आतंकी पूरी दुनिया में हड़कंप मचाये हुए हैं। अंधेरे का क्षेत्र बनती जा रही दुनिया सिर्फ विज्ञापन में चमक रही है।
बहुसंख्यक कर्मकुशल और हुनरमंद जीवन उन साधनों से लगातर दूर किया जा रहा है जिनसे उसकी गुजर-बसर होती आयी है। धरती, पानी और उसके चूल्हे की आग पर अब राज्य और व्यापारिक गठबंधन का कब्जा है। संगठित मज़हबी ज़िद के आगे उदारता और सहकार की भावना आहत हो रही है। राजनीतिक व्यापारिक स्वार्थ और कौमी क्रूरता आज भी जीवन पर बोझ बनी हुई है।
वह जीवन-धर्म आभाहीन होता जा रहा है जिसे साधकर परस्पर आश्रित होने की भावना जागती है। उससे यह बोध होता है कि सब अपने स्वभाव को पहचानकर ऐसी साम्य अवस्था को पा सकते हैं जहां अतीत की शत्रुता नहीं, मैत्री का नया वर्तमान प्रकट होता है। हम यह क्यों नहीं समझ पा रहे कि बीते समय में जीने का कोई उपाय नहीं। वहां मृत्यु के सिवा कुछ नहीं।जो जाति अपने आपको वर्तमान का सामना करने को नहीं सौंपती, वह मिटकर अतीत में खो जाती है।
यह एक-दूसरे को कोसने का नहीं, मिल-जुलकर पालने-पोसने का समय है। यह समय काम आ जाये तो बहुत अच्छा। यह देखकर आश्चर्य होता है कि हम इतिहास से सीख नहीं रहे। अब तो ऐसे अराजक बहुरूपिए संगठन सक्रिय हैं जो अतीत के शत्रुओं की ब्राण्डिंग करके शत्रुता की ही पुनर्रचना कर रहे हैं। उनकी प्रयोगशाला में मैत्री की परखनलियां खाली पड़ी हैं।